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निजता के अधिकार फैसले का असर बीफ केस पर पड़ेगा: सुप्रीम कोर्ट

वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि अपनी पसंद के भोजन करने का अधिकार अब निजता के अधिकार के तहत सुरक्षित है

Bhasha

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि निजता के अधिकार को बुनियादी अधिकार घोषित करने के उसके फैसले का असर महाराष्ट्र में बीफ रखने से संबंधित मामलों पर भी कुछ हद तक पड़ेगा.

शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी बंबई हाईकोर्ट के छह मई 2016 के फैसले के खिलाफ अपीलों की सुनवाई के दौरान की जिसमें हाईकोर्ट ने ऐसे मामलों में बीफ रखने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था जिनमें पशुओं का वध राज्य के बाहर किया गया हो.


जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच को एक वकील ने बताया कि नौ जजों की संविधान बेंच द्वारा निजता को मौलिक अधिकार घोषित करने का गुरुवार को दिया गया फैसला अपील पर फैसला सुनाने के लिहाज से महत्वपूर्ण है.

पीठ ने कहा, 'हां, इस फैसले का असर कुछ हद तक इन मामलों पर भी पड़ेगा.' सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह किसी को भी अच्छा नहीं लगेगा कि उसे यह बताया जाए कि उसे क्या खाना चाहिए और कैसे कपड़े पहनने चाहिए.' उन्होंने यह कहा कि ये गतिविधियां निजता के अधिकार के दायरे में आती हैं.

जो चाहे खाएं, अधिकार सुरक्षित: जयसिंह

कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने निजता के अधिकार पर शीर्ष अदालत के फैसले का संदर्भ लाते हुए कहा कि अपनी पसंद के भोजन करने का अधिकार अब निजता के अधिकार के तहत सुरक्षित है. उन्होंने पीठ को बताया कि हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली महाराष्ट्र सरकार की अपील शीर्ष अदालत की एक अन्य बेंच के समक्ष लंबित है.

दलीलों को सुनने के बाद बेंच ने मामले को दो हफ्ते के लिए टाल दिया.

महाराष्ट्र सरकार ने हाईकोर्ट के महाराष्ट्र प्राणी संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 1995 की धाराओं 5(डी) और 9 (बी) को निरस्त करने के फैसले को 10 अगस्त को शीर्ष अदालत में चुनौती दे रखी है. इन धाराओं के तहत पशुओं का बीफ रखना अपराध है और इसके लिए सजा भी निर्धारित है, चाहे उन पशुओं का वध राज्य में किया गया हो या फिर राज्य के बाहर किया गया हो. उच्च न्यायालय ने इन्हें व्यक्ति के निजता के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए निरस्त कर दिया था.