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सुप्रीम कोर्ट ने ऑपरेशन ब्लू स्टार में हिस्सा लेने वाले अधिकारी का सम्मान बहाल किया

सुप्रीम कोर्ट ने सेना के एक पूर्व अधिकारी का सम्मान बहाल किया है जो 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार का नेतृत्व करने वाले अधिकारियों में शामिल थे

Bhasha

सुप्रीम कोर्ट ने सेना के एक पूर्व अधिकारी का सम्मान बहाल किया है जो 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार का नेतृत्व करने वाले अधिकारियों में शामिल थे. कोर्ट ने उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों से बरी करने और सेवानिवृत्ति के पश्चात लेफ्टिनेंट कर्नल का रैंक दिए जाने के फैसले को बरकरार रखा.

शीर्ष अदालत ने मेजर (अब सेवानिवृत्त) कुंवर अंबरेश्वर सिंह को स्वर्ण मंदिर परिसर से सिख आतंकियों का सफाया करने के लिए चलाए गए अभियान के दौरान बरामद कुछ इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं को अपने पास रखने के आरोपों में सुनाई गई 'फटकार की सजा' को निरस्त करने के सशस्त्र बल अधिकरण के फैसले को बरकरार रखा.


न्यायमूर्ति ए के सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने एएफटी के आदेश के खिलाफ केंद्र की अपील को खारिज कर दिया, लेकिन सरकार पर लगाए गए जुर्माने को 10 लाख रुपए से घटाकर एक लाख रुपया कर दिया.

पीठ ने कहा, 'हम इस अपील में कोई दम नहीं पाते हैं इसलिए इसे खारिज किया जाता है. हालांकि, हम पाते हैं कि अपीलकर्ता पर लगाया गया 10 लाख रुपए का जुर्माना काफी अधिक है. इसलिए हम उसे घटाकर एक लाख रुपया करते हैं.'

कमीशंड अधिकारी न्याय पाने के लिए  33 सालों से कर रहे थे संघर्ष

एएफटी, लखनऊ ने पिछले साल 11 अगस्त को अपने फैसले में सिंह को सभी आरोपों से बरी कर दिया था और लेफ्टिनेंट कर्नल का रैंक देने से इंकार करने के सेना प्रमुख के आदेश को निरस्त कर दिया था.

एएफटी ने कहा था कि सरकार अनुमानित आधार पर सिंह को लेफ्टिनेंट कर्नल (टाइम स्केल) के पद पर पदोन्नत करेगी ताकि वेतन का बकाया और सेवानिवृत्ति के बाद के बकायों यथा पेंशन और अन्य लाभों का भुगतान किया जा सके.

अधिकरण ने कहा था, 'जून, 1984 के ऑपरेशन ब्लूस्टार का प्रभाव अब भी सता रहा है और मौजूदा मामला उसी अभियान से जुडा है जहां भारतीय सेना का एक कमीशंड अधिकारी न्याय पाने के लिए पिछले 33 वर्षों से संघर्ष कर रहा है.'

सिंह 1967 में सेना में शामिल हुए थे. वह जून 1984 में 26 मद्रास रेजीमेंट में मेजर के रूप में 38 इनफैंट्री ब्रिगेड और 15 इनफैंट्री डिवीजन के हिस्से के तौर पर जालंधर में पदस्थापित थे. उसी वक्त उन्हें अमृतसर में स्वर्ण मंदिर परिसर से अतिवादी सिखों का सफाया करने का काम सौंपा गया था.