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WhatsApp के जरिए चला मुकदमा, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- क्या यह मजाक है

यह वाकया हजारीबाग की एक अदालत में देखने को मिला, जहां न्यायाधीश ने व्हाट्सऐप कॉल के जरिए आरोप तय करने का आदेश देकर आरोपियों को मुकदमे का सामना करने को कहा.

Bhasha

बदलते दौर के साथ तकनीकी भी अपनी पैर पसार रही है. इसके चलते दुनिया में काफी बदलाव भी देखे जा रहे हैं. इस बदलाव में एक सोशल मीडिया भी है, जहां लोग मिनटों में देश-विदेश के किसी भी कोने में बैठे लोगों से कनेक्ट हो सकते हैं. इसी के मद्देनजर एक वाकया सामने आया है जिसमें एक आपराधिक मामले में इंस्टैंट मैसेजिंग ऐप व्हाट्सऐप के जरिए मुकदमा चलाया गया. यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है, जिसने इस बात पर आश्चर्य जताते हुए कहा कि भारत की किसी अदालत में इस तरह के 'मजाक' की कैसे अनुमति दी गई.

मामला झारखंड के पूर्व मंत्री और उनकी विधायक पत्नी से जुड़ा है. यह वाकया हजारीबाग की एक अदालत में देखने को मिला, जहां न्यायाधीश ने व्हाट्सऐप कॉल के जरिए आरोप तय करने का आदेश देकर इन आरोपियों को मुकदमे का सामना करने को कहा. झारखंड के पूर्व मंत्री योगेंद्र साव और उनकी पत्नी निर्मला देवी 2016 के दंगा मामले में आरोपी हैं. उन्हें सुप्रीम कोर्ट शीर्ष अदालत ने पिछले साल जमानत दी थी. उसने यह शर्त रखी थी कि वे भोपाल में रहेंगे और अदालती कार्यवाही में हिस्सा लेने के अतिरिक्त झारखंड में नहीं आएंगे.


हालांकि, आरोपियों ने अब शीर्ष अदालत से कहा है कि आपत्ति जताने के बावजूद निचली अदालत के न्यायाधीश ने 19 अप्रैल को व्हाट्सऐप कॉल के जरिए उनके खिलाफ आरोप तय किया. न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एलएन राव की पीठ ने इस दलील को गंभीरता से लेते हुए कहा, 'झारखंड में क्या हो रहा है. इस प्रक्रिया की अनुमति नहीं दी जा सकती है और हम न्याय प्रशासन की बदनामी की अनुमति नहीं दे सकते.' पीठ ने झारखंड सरकार की ओर से मौजूद वकील से कहा, 'हम यहां व्हाट्सऐप के जरिए मुकदमा चलाए जाने की राह पर हैं. इसे नहीं किया जा सकता. यह किस तरह का मुकदमा है. क्या यह मजाक है.'

जवाब देने को कहा

पीठ ने दोनों आरोपियों की याचिका पर झारखंड सरकार को नोटिस जारी किया और दो सप्ताह के भीतर राज्य से इसका जवाब देने को कहा. आरोपियों ने अपने मामले को हजारीबाग से नयी दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग की है. झारखंड के वकील ने शीर्ष अदालत से कहा कि साव जमानत की शर्तों का उल्लंघन कर रहे हैं और ज्यादातर समय भोपाल से बाहर रहे हैं, जिसकी वजह से मुकदमे की सुनवाई में देरी हो रही है. इस पर पीठ ने कहा, 'वह अलग बात है. अगर आपको आरोपी के जमानत की शर्तों का उल्लंघन करने से समस्या है तो आप जमानत रद्द करने के लिए अलग आवेदन दे सकते हैं. हम साफ करते हैं कि जमानत की शर्तों का उल्लंघन करने वाले लोगों से हमें कोई सहानुभूति नहीं है.'

दंपति की ओर से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा ने कहा कि आरोपी को 15 दिसंबर 2017 को शीर्ष अदालत ने जमानत दी थी और उन्हें जमानत की शर्तों के तहत मध्य प्रदेश के भोपाल में रहने का निर्देश दिया गया था. उन्होंने कहा, 'मुकदमा भोपाल में जिला अदालत और झारखंड में हजारीबाग की जिला अदालत से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए चलाने का निर्देश दिया गया था.' तन्खा ने कहा कि भोपाल और हजारीबाग जिला अदालतों में ज्यादातर समय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग संपर्क बहुत खराब रहता है और निचली अदालत के न्यायाधीश ने व्हाट्सऐप कॉल के जरिए 19 अप्रैल को आदेश सुनाया.

बता दें कि साव और उनकी पत्नी 2016 में ग्रामीणों और पुलिस के बीच हिंसक झड़प से संबंधित मामले में आरोपी हैं. इसमें चार लोग मारे गए थे. साव अगस्त 2013 में हेमंत सोरेन सरकार में मंत्री बने थे.