सुप्रीम कोर्ट ने कुछ निर्देशों के साथ इच्छामृत्यु की इजाजत दे दी है. हालांकि इसे 'निष्क्रिय (पैसिव)' की श्रेणी में रखा गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने फैसले में कहा कि इंसानों को इज्जत के साथ मरने का हक है. इस मामले की सुनवाई 5 जजों की बेंच कर रही थी जिसकी अगुआई देश के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने की. बेंच में जीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस एके सिकरी, जस्टिस एएम खनविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल हैं.
पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस मामले की याचिका में कोर्ट से गुहार लगाई गई थी कि शांति से मरने का अधिकार भारतीय संविधान की धारा 21 के तहत राइट टू लिव में आता है, इसलिए लोगों को इच्छामृत्यु का अधिकार मिलना चाहिए.
याचिका का विरोध करते हुए केंद्र सरकार ने अदालत में कहा था कि 'निष्क्रिय इच्छामृत्यु' का अधिकार देना सही नहीं होगा क्योंकि दुरुपयोग बढ़ सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, इच्छामृत्यु की इजाजत दी जाएगी लेकिन ऐसा चाहने वाले शख्स के परिजनों की इजाजत के बाद ही. साथ ही डॉक्टरों की एक टीम यह तय करेगी जिसे लगे कि उस व्यक्ति को ठीक करना नामुमकिन है.
क्या है लिविंग विल?
लिविंग विल का अर्थ उस हालत से है जिसमें किसी व्यक्ति को लाइफ सपोर्ट की जरूरत पड़ती है. ऐसा तब होता है जब वह अतिगंभीर बीमारी से पीड़ित है या जीवन रक्षक प्रणाली के बिना जीना मुमकिन नहीं है या अब वह हिल-डुल सकने लायक भी नहीं है. इसके अंतर्गत ट्यूब की मदद से खिलाना या आर्टिफिशियल हाईड्रेशन भी आता है. लिविंग विल की चरम स्थिति तब मानते हैं जब कोई बीमार व्यक्ति अपनी इच्छा खुद से जाहिर न कर सके.
क्या है निष्क्रिय इच्छामृत्यु
किसी व्यक्ति की मौत के लिए उसके लाइफ सपोर्ट को हटा दिया जाए है या उसे ऐसा कुछ दिया जाए जिससे वह मृत्यु को प्राप्त हो सके.