view all

धारा 377 पर बहस हुई पूरी, सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को रखा सुरक्षित

मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने LGBTQ समुदाय द्वारा बीमारी फैलाए जाने को खारिज करते हुए कहा कि मूल समस्या बातों को दबाना (छिपाना) है

FP Staff

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने धारा 377 पर अपने फैसले को सुरक्षित रख लिया है. कोर्ट में धारा 377 पर चल रही बहस मंगलवार को पूरी हो गई है. इससे पहले कोर्ट ने पिछले सप्ताह के बाद एक बार फिर धारा 377 पर सुनवाई शुरू की. मंगलवार को कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने पिछले सप्ताह हुई सुनवाई को आगे बढ़ाते हुए कहा कि आज इसे निर्णायक स्थिति में ले जाया जाएगा.

मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि मौलिक अधिकारों के उल्लंघन होने की स्थिति में हम मामले को विधायिका पर नहीं छोड़ सकते. पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट में धारा 377 पर सुनवाई के दौरान सरकार ने अपना पक्ष रखने से इनकार कर दिया था. केंद्र सरकार ने कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा था कि वो इस मामले को सुप्रीम कोर्ट के विवेक पर छोड़ते हैं.

इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच कर रही है. सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली इस पीठ में जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, मंगलवार को मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने LGBTQ समुदाय द्वारा बीमारी फैलाए जाने को खारिज करते हुए कहा कि मूल समस्या बातों को दबाना (छिपाना) है. उन्होंने दक्षिण अफ्रीका का उदाहरण देते हुए कहा कि एचआईवी को लेकर उस समय देश के नेतृत्व ने अंतरराष्ट्रीय मदद लेने से इनकार कर दिया था. लेकिन वहां कि अदालत ने इस फैसले को पलट दिया था क्योंकि देश के नागरिकों को मदद की जरूरत थी.

ईसाई संगठनों के लिए सुप्रीम कोर्ट में वकालत कर रहे मनोज जॉर्ज ने जिरह के दौरान कहा कि धारा 377 की संवैधानिक बैधता पर फैसला लेने के निर्णय को संसद पर छोड़ देना चाहिए. इसके जवाब में जस्टिस आरएफ नरीमन ने कहा कि जिस वक्त हमें लगेगा कि यहां पर मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, हम उस वक्त इसे विधायिका पर नहीं छोड़ सकते.