सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड से जुड़ी जानकारियों से नीजता के हनन पर चिंता जताई है. बुधवार को एक सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संवैधानिक पीठ के सदस्य जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से पूछा कि ऐसा तो नहीं है संसद ने आधार बनाने वाले यूआईडीएआई को ज्यादा ही ताकत दे दी है.
सरकार ने यूआईएडीआई को बायोमेट्रिक लेने का अधिकार दिया है. आधार कानून के एक नियम जिसमें कहा गया है, 'बायोमेट्रिक सूचना का मतलब है फोटोग्राफ, अंगुलियों के निशान, आंखों की पुतलियों का स्कैन या ऐसी ही अन्य शारीरिक जानकारियां'. इस नियम की ओर इशारा करते हुए बैंच ने इसे परिभाषित करने को कहा.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'कल को यूआईडीएआई कह सकता है कि आपके डीएनए टेस्ट करने के लिए खून के नमूने दो. क्या यह आधार बनाने वाले यूआईडीएआई को दी गई ज्यादा ताकत नहीं है.'
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने क्या कहा?
इस पर वेणुगोपाल ने जवाब दिया कि वह भविष्य को लेकर टिप्पणी नहीं कर सकते लेकिन सुप्रीम कोर्ट किसी अन्य जरूरत की जांच कर सकता है. उन्होंने कहा, 'खून, पेशाब, डीएनए जोड़े जा सकते हैं लेकिन वह कोर्ट की जांच के विषय होंगे जैसे कि अभी कोर्ट जांच रहा है कि अंगुलियों के निशान और आंखों की पुतलियों का स्कैन निजता का हनन तो नहीं है.'
उन्होंने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि उसने सामाजिक सुरक्षा कार्ड के लिए अंगुलियों के निशान लेने को बरकरार रखा है. हालांकि बैंच ने माना कि यूरोपीय अदालतों का रूख ऐसे मामलों में अमेरिकी अदालतों से अलग रहा है. संविधान पीठ आधार योजना और इससे जुड़े 2016 के कानून की वैधता का परीक्षण कर रही है.
अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने बताया कि आधार ‘धनशोधन रोकने और सब्सिडी और लाभ देने’ का बेहतरीन जरिया है. उन्होंने कहा कि ‘विशेषज्ञों द्वारा मंजूर सरकार के नीतिगत निर्णयों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती.’
वेणुगोपाल ने विश्व बैंक सहित कई अन्य रिपोर्टों का हवाला दिया और कहा कि उन्होंने माना है कि भारत ने ‘गरीबों में गरीब’ की पहचान के लिए एक कदम उठाया है जिससे सभी के लिए वित्तीय समावेश का लक्ष्य प्राप्त करने में आखिरकार मदद मिलेगी.
टेक्निकल मामलों में दखल न दे कोर्ट
वेणुगोपाल ने कहा कि यदि सरकार के हर कदम की न्यायिक समीक्षा होने लगी तो विकास की रफ्तार थम जाएगी. उन्होंने कहा कि ‘अदालतों को टेक्निकल चीजों के मामलों में दखल नहीं देना चाहिए.’ उन्होंने कहा कि अदालत का एकमात्र कर्तव्य कानून की भाषा की व्याख्या करना है और वह यह तय नहीं कर सकती कि कोई नीतिगत निर्णय उचित है कि नहीं.