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बाबरी मस्जिद विवाद: सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को सुना सकता है फैसला

तीन सदस्यीय जज बाबरी मस्जिद-राम मंदिर जमीन विवाद पर 2010 में आए इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका पर अपना फैसला सुना सकते हैं

FP Staff

सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम याचिकाकर्ता की याचिका पर अपना फैसला सुना सकता  है. 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ यह याचिका दायर की गई थी. याचिकाकर्ता की अपील है कि इस मामले में बड़ी बेंच सुनवाई करे. 28 सितंबर शुक्रवार को तीन सदस्यों का बेंच इस मामले में फैसला सुना सकता है. मुमकिन है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले को संवैधानिक पीठ को भी भेज सकता है.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर यह फैसला करेंगे कि इस मामले को संवैधानिक पीठ को भेजा जाए या नहीं. 20 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने बहस के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.


शिया वक्फ बोर्ड ने अदालत में अगस्त 2017 में कहा था कि जमीन के जिस हिस्से में मस्जिद था वहां राम मंदिर बनवाया जा सकता है. इसके बाद नवंबर 2017 में शिया वक्फ बोर्ड ने कहा कि राम मंदिर अयोध्या में और मस्जिद लखनऊ में बना लेना चाहिए.

क्या था इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला

30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने यह फैसला सुनाया था कि विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा जाए. एक हिस्सा रामलला के लिए, दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा हिस्सा मुसलमानों को दिया जाए.

पिछली सुनवाई के बाद सीनियर वकील राजीव धवन ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के 1994 के उस फैसले पर दोबारा विचार करना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा था कि इस्लाम में नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद की जरूरत नहीं है. इसके बाद तीन सदस्यीय बेंच इस फैसले के खिलाफ 13 याचिकाओं पर सुनवाई की है. इनमें एक याचिकाकर्ता एम सिद्दिकी हैं और राजीव धवन इनकी तरफ से ही पैरवी कर रहे हैं.

मामले की सुनवाई के दौरान शिया वक्फ बोर्ड ने अदालत में अगस्त 2017 में कहा था कि जमीन के जिस हिस्से में मस्जिद था वहां राम मंदिर बनवाया जा सकता है. इसके बाद नवंबर 2017 में शिया वक्फ बोर्ड ने कहा कि राम मंदिर अयोध्या में और मस्जिद लखनऊ में बना लेना चाहिए.