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मॉब लिन्चिंग पर 'सुप्रीम' फैसला: भीड़ की हिंसा के लिए कानून बनाए संसद

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, 'किसी को भी कानून को हाथ में लेने का अधिकार नहीं है. इसे रोकने के लिए देश की संसद विचार करे और कानून बनाए'

FP Staff

देश भर में गोरक्षा के नाम पर मॉब लिन्चिंग (भीड़ द्वारा हिंसा) के मामले में सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना दिया है. मंगलवार सुबह चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूढ़ की बेंच ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि भीड़ की हिंसा को सामान्य नहीं मान सकते.

कोर्ट ने कहा कि किसी को भी कानून को हाथ में लेने का अधिकार नहीं है. इसे रोकने के लिए देश की संसद विचार करे और कानून बनाए.


अदालत ने इस मामले में सुनवाई की अगली तारीख 28 अगस्त को मुकर्रर की है.

इससे पहले इस मामले में 3 जुलाई को हुई अंतिम सुनवाई में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा था कि यह कानून का मामला है और इस पर रोक लगाना हर राज्य की जिम्मेदारी है. अदालत ने उस दिन इस पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता इंदिरा जयसिंह की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा था कि राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है कि मॉब लिन्चिंग की घटनाओं को हर हाल में रोका जाए. अदालत ने कहा है कि यह सिर्फ कानून-व्यवस्था से जुड़ा मसला नहीं है, बल्कि यह एक अपराध है, जिसकी सजा जरूर मिलनी चाहिए. कोर्ट को यह मंजूर नहीं कि देश में कोई भी कानून को अपने हाथ में ले.

(मॉब लिन्चिंग की एक प्रतीकात्मक तस्वीर)

सुनवाई के दौरान एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पी. एस. नरसिंहा ने कहा था कि केंद्र सरकार इसे लेकर सजग और सतर्क है, लेकिन बड़ी समस्या कानून व्यवस्था की है. कानून व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकारों की पहली जिम्मेदारी है. केंद्र तब तक इसमें दखल नहीं दे सकता जब तक राज्य खुद इसके लिए गुहार न लगाए.

बता दें कि गोरक्षा के नाम पर भीड़ की हिंसा के मामले में स्पष्ट गाइडलाइंस नहीं होने के कारण अभी तक पुलिस कार्रवाई में दिक्कत आ रही थी, जिससे दोषियों को बच निकलने में आसानी होती थी.