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नेता फुल टाइम कर्मचारी नहीं, कर सकते हैं अदालतों में प्रैक्टिस: SC

कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें पेशे से वकील जनप्रतिनिधियों के अदालतों में प्रैक्टिस करने पर रोक लगाने की मांग की गई थी

FP Staff

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पेशे से वकील नेता देशभर की अदालतों में प्रैक्टिस कर सकते हैं. कोर्ट उस याचिका की सुनवाई कर रहा था, जिसमें पेशे से वकील जनप्रतिनिधियों के अदालतों में प्रैक्टिस करने पर रोक लगाने की मांग की गई थी.

कोर्ट ने मंगलवार को उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें पेशे से वकील जनप्रतिनिधियों के देशभर की अदालतों में प्रैक्टिस करने पर रोक लगाने की मांग की गई थी. शीर्ष अदालत ने कहा कि कानून अदालतों में उनके प्रैक्टिस करने पर कोई पाबंदी नहीं लगाता है.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविल्कर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि वकील के सांसद या विधायक बनने पर उनके प्रैक्टिस करने पर रोक लगाने का आदेश नहीं दिया जा सकता क्योंकि बार काउंसिल ऑफ इंडिया जनप्रतिनिधियों के वकीलों के तौर पर प्रैक्टिस करने पर रोक नहीं लगाता है.

शीर्ष अदालत बीजेपी नेता और वकील अश्चिनी उपाध्याय की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इसमें पेशे से वकील जनप्रतिनिधियों (सांसद, विधायकों और पार्षदों) के कार्यकाल के दौरान अदालत में प्रैक्टिस करने पर रोक लगाने की मांग की गई थी. अदालत ने इस जनहित याचिका पर नौ जुलाई को आदेश सुरक्षित रख लिया था.

बेंच ने केंद्र के उस जवाब पर गौर किया जिसमें कहा गया था कि सांसद या विधायक निर्वाचित प्रतिनिधि होता है. वह सरकार का पूर्णकालिक कर्मचारी नहीं होता इसलिए याचिका विचारयोग्य नहीं है.

उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ वकील शेखर नाफड़े ने कोर्ट को बताया कि जनप्रतिनिधि राजकोष से वेतन पाते हैं और बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने वेतनभोगी कर्मचारी के अदालत में प्रैक्टिस करने पर रोक लगा रखी है.

इसपर बेंच ने कहा कि रोजगार अपने आप में ही मालिक-नौकर का संबंध बताता है और भारत की सरकार संसद के सदस्य की मालिक नहीं होती.

याचिका में कहा गया था कि कोई भी जनसेवक वकील के तौर पर प्रैक्टिस नहीं कर सकता है जबकि कई जनप्रतिनिधि विभिन्न अदालतों में प्रैक्टिस कर रहे हैं और यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.

(भाषा से इनपुट)