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दिल्ली-एनसीआर में पटाखों पर बैन, लेकिन अमल कौन करवाएगा?

सुप्रीम कोर्ट इस मसले पर समय-समय पर दखल देती रही है. देश में कानून भी है, कोर्ट का ऑर्डर भी है, पर समस्या कानून को लागू करने को लेकर है

Ravishankar Singh

दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के बढ़ते स्तर पर काबू पाने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियां एक बार फिर सक्रिय हो गई हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ही दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी थी.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह कयास लगाया जा रहा है कि दिवाली के बाद प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर तक नहीं पहुंचेगा.


लेकिन भारत के किसी भी सरकारी या गैर-सरकारी संस्थान के पास अभी तक यह डाटा उपलब्ध नहीं है, जिसमें सिर्फ पटाखों से होने वाले प्रदूषण का जिक्र हो. जानकारों का मानना है कि अभी तक जितने भी डाटा आए हैं, वह सिर्फ सरकारी या गैर-सकारी एजेंसियों के मॉनिटरिंग पर आधारित हैं.

इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को पटाखों से होने वाले प्रदूषण को लेकर एक रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था, जिसे अभी तक दाखिल नहीं किया गया है.

गौरतलब है कि अभी दिवाली आई नहीं है, लेकिन दिल्लीवासियों का दम अभी से घुटने लगा है. राजधानी के अधिकतर प्रदूषण मॉनिटरिंग सेंटर में आकंड़ा खतरे की चेतावनी देने लगा है. दिल्ली के कई अस्पतालों में सांस की तकलीफ के मामले बढ़ने लगे हैं.

पिछले साल हालत थी गंभीर

पर्यावरण पर काम करने वाली कुछ गैरसरकारी एजेंसियां दिवाली के पहले और बाद में प्रदूषण को लेकर जो मॉनिटरिंग करती है, उसी अनुमान के मुताबिक यह कहा जाता है कि दिवाली में प्रदूषण का स्तर सामान्य से तीन गुना या पांच गुना बढ़ जाता है.

अगर हम पिछले साल (2016) की बात करें तो दिवाली के दिन पीएम 2.5 का स्तर सामान्य से 8 गुना ज्यादा बढ़ गया था. इसी तरह पीएम 10 का स्तर भी सामान्य से 6 गुना ज्यादा बढ़ गया था.

वहीं दिवाली के दूसरे दिन दिल्ली-एनसीआर के कई इलाकों में पीएम 2.5 का स्तर सामान्य से 16 गुना ज्यादा लगभग 999 तक पहुंच गया था.

पिछले साल दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल कमेटी ने दिवाली के दिन के मुकाबले 2 नवंबर 2016 को पीएम-2.5 का स्तर सामान्य से 62.7 गुना ज्यादा दर्ज किया था. पिछले साळ दिवाली 30 अक्टूबर को मनाया गया था.

पिछले साल दिवाली के बाद एक नवंबर की रात (12 बजे रात से सुबह 6 बजे यानी 2 नवंबर) को पीएम 2.5 का स्तर 548 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर यानी सामान्य से 9 गुना ज्यादा पाया गया था.

सिस्टम ऑफ एयर क्वॉलिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) के मुताबिक पिछले साल पीएम 2.5 का स्तर दिवाली के तीन बाद काफी खतरनाक स्तर तक पहुंच गया था.

सफर के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर में पिछले 17 सालों के इतिहास में 2 नवंबर 2016 सबसे प्रदूषित दिन था. 17 सालों में पहली बार यह देखा गया था कि दिन में भी कम दृश्यता नजर आ रही थी. इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट में दृश्यता 300-400 मीटर से भी कम थी. यह दिन के 11 बजे से ढ़ाई बजे के बीच की स्थिति थी.

सफर के मुताबिक इस साल अगले कुछ दिनों तक दिल्ली में प्रदूषण के स्तर में कमी होता नहीं दिखाई दे रही है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह उम्मीद जगी है कि हालात पिछले साल की तुलना में ज्यादा बेकाबू नहीं होंगे.

दिवाली के दिन प्रदूषण का सबसे बुरा हाल रात 11 बजे शुरू हो जाता है. रात 11 बजे के बाद प्रदूषण तेजी से फैलने लगता है. इस समय आप अगर घर से बाहर निकलें तो दृश्यता 500 मीटर से घटकर 100 या 50 मीटर तक रह जाती है.

हम आपको बता दें कि पटाखे फोड़ने से कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और नाईट्रस ऑक्साइड जैसे जहरीली गैस वायुमंडल में फैलते हैं. इन गैसों से मनुष्य के शरीर में कैंसर, और दिल से जुड़ी बीमारी होती है.

पुराने कानून भी लागू नहीं

मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रदूषण का स्तर बहुत हद तक मौसम पर भी निर्भर करता है. यह हवाओं की गति पर भी निर्भर करता है. धीमी हवा के कारण प्रदूषण जल्दी ऊपर नहीं उठा पाता. अगर कोई पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय हो जाए तो बारिश होने से प्रदूषण तेजी से कम होने लगता है.

वहीं देश के जाने-माने पर्यावरणविद गोपाल कृष्ण फर्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, ‘सुप्रीम कोर्ट इस मसले पर समय-समय पर दखल देती रही है. देश में कानून भी है कोर्ट का ऑर्डर भी है, पर समस्या कानून को लागू करने को लेकर है. इसके लिए इनफोर्समेंट मैकिनिज्म जो अपने देश में है वह बहुत कमजोर है. सरकार ने 1981 में ही इस समस्या की गंभीरता को समझते हुए एयर पॉल्यूशन कैटेगरी में इसे शामिल कर लिया था और साल 2000 कानून बना दिया, लेकिन यह अभी तक लागू नहीं हो पाया है.’

गोपाल कृष्ण आगे कहते हैं, ‘नॉइज़ पॉल्यूशन रूल्स में जो प्रावधान हैं उसको पहले लागू करना चाहिए. हम आपको कहना चाहते हैं अस्पताल, स्कूल-कॉलजों और कोर्ट के 100 मीटर के दायरे में आप नॉइज़ पॉल्यूशन बढ़ाने का काम नहीं कर सकते. जब यह काम करने में आप सफल होते हैं तो इसका असर बाकी चीजों पर दिखने लगेगा. जब इन जगहों पर आप कानून नहीं लागू कर सकते हैं तो बाकी जगहों पर क्या करेंगे? सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला स्वागतयोग्य है, लेकिन भारत में किसी भी चीज का लागू करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.’

सुप्रीम कोर्ट ने तो दिल्ली एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी है, लेकिन इसका पालन किस तरह से और कितना प्रभावी तरीके से होता है, प्रदूषण की स्थिति इस बात पर काफी हद तक निर्भर करेगी.