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तीन तलाक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सलमान खुर्शीद को बनाया न्यायमित्र

संविधान पीठ मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह से जुड़े मामलों पर 11 मई से सुनवाई करेगी

FP Staff

सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद को ‘तीन तलाक’ से जुड़े मुकदमों में न्यायमित्र (एमिकस क्यूरी) बनाया है.

खुर्शीद ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस से जगदीश सिंह खेहर से यह अनुरोध किया था कि उन्हें दोनों पक्षों के बीच समझौता कराने का एक मौका दिया जाए.


कोर्ट ने खुर्शीद को इसकी इजाजत दे दी और उन्हें इस बारे में एक लिखित नोट जमा करने का आदेश भी दिया है.

क्या होता न्याय मित्र या एमिकस क्यूरी?

एमिकस क्यूरी एक तरह से अदालत का मित्र होता है. वह मुकदमे के किसी भी पक्ष से जुड़ा हुआ नहीं होता है और न ही मुकदमे में वह खुद कोई पक्ष होता है. एमिकस क्यूरी अदालत को केस से जुड़े मुद्दे पर सूचनाएं उपलब्ध करवाता है और अपनी सलाह भी देता है.

यह कोर्ट के ऊपर निर्भर करता है कि वह एमिकस क्यूरी की सलाह माने या ना माने. एमिकस क्यूरी दोनों पक्षों के बीच सुलह करवाने की भी कोशिश करता है.

बीसीसीआई से जुड़े मुकदमे में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एमिकस क्यूरी की सलाह पर बीसीसीआई के पदाधिकारियों को हटा दिया था.

11 मई से सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई 

तीन तलाक से जुड़े अलग-अलग मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ 11 मई से सुनवाई शुरू करने जा रही है. संविधान पीठ मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह से जुड़े मामलों पर सुनवाई करेगी. कोर्ट ने सभी पक्षों से इस मामले पर उनकी राय मांगी है.

केंद्र सरकार ने कोर्ट से कहा है वो तीन तलाक को खत्म करने के पक्ष में है. पीएम मोदी भी कई बार कह चुके हैं कि तीन तलाक देश की मुस्लिम महिलाओं के लिए सही नहीं है और इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए.

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे धार्मिक मसला बताया है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने 27 मार्च को सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि इन प्रथाओं को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई नहीं होनी चाहिए क्योंकि ये मसले न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र से बाहर के हैं.

तीन तलाक के मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री एम वेंकैया नायडू ने पर्सनल लॉ बोर्ड का जबाब देते हुए कहा था कि तीन तलाक कोई धार्मिक मुद्दा नहीं है और शरीयत में इसका कोई प्रावधान नहीं है.

तीन तलाक इतना पेचीदा मसला क्यों है?

तीन तलाक जिस तरह से आज मुस्लिम समुदाय में चलन में है इसका कोई भी जिक्र कुरान और हदीस में नहीं मिलता. फिर भी जनमानस में लंबे वक्त से चलते आने के कारण ये एक बड़ा ही पेचीदा मसला बन गया है.

सभी धर्मों के धर्म गुरुओं की तरह इस्लाम में भी काजी को कई तरह की व्याख्या की छूट धार्मिक रीति-रिवाजों के बारे में दी गई है तो ऐसे में ये मामला और भी उलझाऊ हो गया है.

हाल ही में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी यह कहा कि एक बार में तीन तलाक देना शरीयत के खिलाफ है और इस तरह तीन तलाक देने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा.

तीन तलाक के जुड़े ये शब्द भी कम उलझाने वाले नहीं हैं- हलाला, हुल्ला, तहलीली, इद्दत और खुला.

इद्दत- तलाक के बाद लड़की अपने मायके वापस आती है और तीन महीने 10 दिन बिना किसी पराए आदमी के सामने आए रहती है ताकि अगर लड़की प्रेग्नेंट हो तो यह साबित हो जाए कि उसका होने वाला बच्चा उसके पहले पति की है.

तीन महीने 10 दिन की यह अवधि इद्दत कही जाती है. इस अवधि के खत्म होने के बाद ही तलाकशुदा महिला किसी और पुरुष से शादी कर सकती है.

हलाला- इसे 'निकाह हलाला' भी कहा जाता है. शरिया के मुताबिक अगर एक पुरुष ने औरत को तलाक दे दिया है तो वो उसी औरत से दोबारा तबतक शादी नहीं कर सकता जब तक औरत किसी दूसरे पुरुष से शादी कर तलाक न ले ले.

हुल्ला- यह हलाला का ही एक रूप है. इसमें तीन तलाक के बाद मौलवी द्वारा तय किए गए व्यक्ति से औरत शादी करती है. इसके बाद वह व्यक्ति औरत को तलाक देता है. इसके बाद औरत फिर से अपने पहले पति से शादी कर सकती है.

तहलीली- वो इंसान जो 'हुल्ला' यानि औरत के साथ शादी करके बिना संबंध स्थापित किए तलाक दे देने के लिए राजी होता है. उसे तहलीली कहा जाता है. ये निकाह के साथ ही औरत को तलाक दे देता है ताकि वो अपने पहले शौहर से शादी कर सके.

खुला- अगर शौहर तलाक मांगने के बावजूद भी तलाक नहीं देता तो बीवी शहर काजी (जज) के पास जाए और उससे शौहर से तलाक दिलवाने के लिए कहे.

इस्लाम ने काजी को यह हक दे रखा है कि वो उनका रिश्ता खत्म करने का ऐलान कर दे जिससे उनका तलाक हो जाएगा. इसे ही 'खुला' कहा जाता है.

सुप्रीम कोर्ट के कम से कम 15 जज इस बार की गर्मियों की छुट्टियों में तीन तलाक से जुड़े तीन मामलों की सुनवाई करेंगे.