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आलोक वर्मा के खिलाफ वोट करने वाले जस्टिस सीकरी ने ठुकराया सरकार का प्रस्ताव

जस्टिस सीकरी उस सेलेक्शन कमेटी के सदस्य थे जिसने सीबीआई चीफ आलोक वर्मा का ट्रांसफर किया है

FP Staff

जस्टिस एके सीकरी, सुप्रीम कोर्ट के दूसरे वरिष्ठ जस्टिस ने केंद्र सरकार द्वारा दिए जा रहे पार्ट टाइम असाइनमेंट की पेशकश को ठुकरा दिया है. यह ऑफर पिछले सप्ताह चीफ जस्टिस रंजन गोगोई द्वारा तीन सदस्यीय उच्चस्तरीय पैनल में उनके नामांकन के बाद उन्हें मिला था. जिसमें सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को ट्रांसफर करने के लिए दो बैठकें और विवादास्पद निर्णय लिए गए थे.

द प्रिंट वेबसाइट में लंदन स्थित कॉमनवेल्थ सेक्रेटेरिएट आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल (CSAT) के सदस्य के रूप में उनके चयन के बारे में आई रिपोर्ट के बाद जस्टिस सीकरी ने इस प्रस्ताव को औपचारिक रूप से रद्द करने के लिए रविवार की शाम कानून मंत्रालय को पत्र लिखा.


पिछले साल दिसंबर महीने के पहले सप्ताह में, सरकार ने जस्टिस सीकरी से संपर्क किया और उन्हें CSAT में खाली पड़े स्थान के बारे में सूचित किया और बाद में आठ सदस्यीय निकाय के सदस्य के रूप में नामित होने के लिए उनकी सहमति भी ली.

वेबसाइट के मुताबिक, CSAT के सदस्यों का चयन 'राष्ट्रमंडल सरकारों द्वारा एक क्षेत्रीय प्रतिनिधि के आधार पर किया जाता है, जो उच्च नैतिक चरित्र वाले व्यक्तियों में से होते हैं. और जो राष्ट्रमंडल देश में किसी उच्च न्यायिक पद पर पदस्थ हों. सदस्यों को चार साल के लिए नियुक्त किया जाता है. इस टर्म को एक बार और बढ़ाया जा सकता है.

सीबीआई चीफ का ट्रांसफर करने वाली समिति में थे जस्टिस सीकरी

जस्टिस सीकरी 6 मार्च को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होंगे और CSAT में नामित होने का अनुरोध लगभग एक महीने पहले किया गया था. इसके बाद, वर्मा को बहाल करने के सुप्रीम कोर्ट के 8 जनवरी के आदेश के बाद, जस्टिस सिकरी को सेलेक्शन पैनल के हिस्से के रूप में भारत के चीफ जस्टिस का प्रतिनिधित्व करने के लिए कहा गया. जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे भी थे.

इसके बाद, सेलेक्शन पैनल के निर्णय पर विवाद खड़ा हो गया, आलोक वर्मा ने महानिदेशक, फायर सर्विस का पद लेने से इनकार कर दिया और सरकार को अपना इस्तीफा सौंप दिया. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्मा के खिलाफ केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) की जांच की निगरानी करने वाले जस्टिस (रिटायर्ड) एके पटनायक ने जांच रिपोर्ट से खुद को दूर कर लिया. जिसने प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले फैसले का आधार बनाया था.