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अजब एमपी का गजब गांव: पिता-पुत्र के सांसद अलग, विधायक और थानेदार भी अलग

1300 की आबादी वाले आमला गांव की देखभाल करने की जिम्मेदारी 2 सांसद, 2 विधायक, 4 तहसीलदार, 2 सीईओ, 4 थानों और 2 ग्राम पंचायतों के पास है

FP Staff

एक गांव में रहने वाले दो भाइयों के सांसद और विधायक अलग-अलग. एक गांव में ही रहने वाले पिता-पुत्र के जनप्रतिनिधि भी अलग-अलग. गांव में अपराध हो जाए तो चार थानों के पुलिस बल को पहले ये पता लगाता है कि अपराध किसके थाना क्षेत्र में हुआ. ये अजब कहानी है मध्य प्रदेश के एक सबसे गजब गांव की.

मध्‍य प्रदेश में 2013 में अस्तित्‍व में आए आगर-मालवा जिले में आमला नाम का एक बेहद अनूठा गांव है. इस गांव अजब ही कहानी है. यहां के कुछ मकान आगर तहसील में, कुछ सुसनेर तहसील में, कुछ नलखेड़ा में तो कुछ बड़ोद तहसील में हैं.


200 मकान और 1300 लोगों की आबादी वाले इस गांव की खासियत है कि इसे संभालने और संवारने का जिम्मा 2 सांसद, 2 विधायक, 4 तहसीलदार, 2 सीईओ, 4 थानों और 2 ग्राम पंचायतों के पास है.

इस गांव में राजगढ़ और देवास-शाजापुर के सांसद हैं, तो सुसनेर और आगर के विधायक का क्षेत्र भी इस गांव के तहत आता है. गांव की गलियां भी अलग-अलग तहसील का प्रतिनिधित्व करती हैं. एक ही गांव में रहने के बाद भी दो भाई अलग-अलग तहसील में रहते हैं. उनके विधायक और सांसद भी अलग हैं, उनके राशन कार्ड और वोटर आईडी भी भी अलग-अलग विधानसभा और लोकसभा क्षेत्र में आते हैं.

आमला गांव में रहने वाले चंदरलाल मालवीय का मकान सुसनेर विधानसभा क्षेत्र में आता है. इस वजह उनके सांसद रोडमल नागर हैं, तो विधायक मुरलीधर पाटीदार. इसी गांव में उनसे कुछ ही दूरी पर रहने वाले भाई रमेश मालवीय का घर आगर तहसील में आता है. इस वजह से उनके सांसद मनोहर ऊंटवाल हैं तो विधायक गोपाल परमार.

कुछ ऐसा ही पिता-पुत्र की जोड़ी कांशीराम और कमल के साथ भी है. एक ही गांव में रहने के बावजूद उनके सांसद, विधायक, तहसीलदार, एसडीएम, जिला पंचायत सीईओ के अलावा पुलिस थाने भी अलग-अलग हैं.

इस गांव में चार तहसीलों की सीमा लगती है. यहां के लोग दो विधायक और दो सांसदों के लिए मतदान करते हैं. चार तहसील क्षेत्रों की सीमा है, तो आगर और सुसनेर अनुविभागीय अधिकारियों के कार्यक्षेत्र के बीच भी यह गांव बंटा हुआ है.

गांव में चार थाना क्षेत्रों की सीमा मिलती है. यह गांव दो पंचायत में बंटा है. गांव का एक हिस्सा ग्राम पंचायत आमला में है, तो दूसरा हिस्सा आमला चौराहा से सात किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत सेमलखेड़ी में जुड़ा है.

यह खासियत गांव वालों के लिए है मुसीबत

यह विविधता इस गांव की खासियत बनने के साथ ही ग्रामीणों के लिए सिरदर्द भी बन गई. आमला के नागरिकों को घर, खेत के लिए अलग-अलग तहसीलों में जाना पड़ता हैं. किसी भी शासकीय योजना के लाभ के लिए अलग-अलग सांसद और अलग-अलग विधायकों से मनुहार करना होती है.

ग्रामीणों के लिए दिक्कत है कि उनके पड़ोसी के सरकारी कार्य कई बार गांव में ही हो जाते हैं, लेकिन उनका तहसील क्षेत्र अलग होने पर उन्हें कई किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है.

सड़क का निर्माण नहीं, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की सुविधा से भी वंचित

एमपी के इस अजब गांव के लोग अपनी भौगोलिक स्थिति की बहुत बड़ी कीमत चुका रहे हैं. गांव में इस वजह से कई जगह आधी सड़क बनी हुई है तो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण भी इस वजह से नहीं हो रहा है.

राशन की दुकान भी नहीं

किसी भी गांव में राशन की दुकान खुलने के लिए न्यूनतम आबादी के मापदंड पर यह गांव पूरी तरह से खरा उतरता है. लेकिन अलग-अलग तहसील में होने की वजह से गांव के किसी भी एक हिस्से की आबादी के मानक से राशन की दुकान खुलना संभव नहीं है.

टंकी से आधे गांव को मिलेगा पानी

पानी के लिए तरस रहे इस गांव के लोगों को हाल ही पानी की टंकी की सौगात मिलने का एलान हुआ है. हालांकि, ये खुशी पूरे गांव के लिए नहीं है. एक तहसील के तहत आने वाले हिस्से के लिए पानी की टंकी स्वीकृत हुई है. ऐसे में आधे गांव को ही पानी मिल सकेगा.

(हिंदी न्यूज़ 18 से साभार)