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भारत में भुखमरी: हालात उतने भी बुरे नहीं जितना मीडिया ने बताया

भुखमरी के मोर्चे पर भारत में जो भी सुधार नजर आ रहा है वो मिड डे मील, आंगनबाड़ी, मातृत्व लाभ योजना और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत मुहैया कराए जाने वाले अनुदानित राशन की देन है. इन योजनाओं पर कारगर अमल ही भुखमरी के शर्म से निजात दिलाने का एकमात्र रास्ता है

Chandan Srivastawa

नब्ज किसी नीम-हकीम ने देखी हो तो बीमार को जान का खतरा रहता है और नीम-हकीम जरुरी नहीं कि सिर्फ दवाखानों में ही मिलें. वो जरुरत के हर ठिकाने पर मिलते हैं मगर सबसे ज्यादा मिलते हैं खबरों की दुनिया में!

खबरों की दुनिया के नीम-हकीमों की खासियत है- वो सनसनी परोसते हैं. सनसनी परोसने की हड़बड़ी में ऐसे नीम-हकीम वो भी देख लेते हैं जो विषय के विशेषज्ञों को खुर्दबीन से भी ना दिखाई पड़े. नीम-हकीमी का ऐसा ही एक वाकया पेश आया वैश्विक भुखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) के आधार पर देशों का दर्जा तय करने वाली सालाना रिपोर्ट के साथ.


ग्लोबल हंगर इंडेक्स और नीम-हकीम

जीएचआई रिपोर्ट के निष्कर्ष को खबर में ढालते हुए हिंदी के एक मशहूर अखबार ने अपने पाठकों को इन शब्दों में सनसनी परोसी: ‘भारत में भुखमरी: इस मामले में पूरी तरह फेल हुई मोदी सरकार, 4 साल में 55 से 103वें पायदान पर पहुंचा देश, नेपाल-बांग्लादेश भी हमसे आगे.’

एक वेबसाइट इससे भी आगे बढ़ गया. खबर को तफ्सील और इत्मीनान से सुनाने में यकीन करने वाले इस वेबसाइट को लगा कि जीएचआई रिपोर्ट में देशों के दर्जे की सीढ़ी पर भारत की फिसलन को 4 साल के वक्फे के भीतर नहीं बल्कि साल-दर-साल बताना ठीक होगा. इसलिए वेबसाइट ने भुखमरी दूर करने की दौड़ में पिछड़ते भारत वाली खबर को आंखों देखा हाल बताने वाले किसी कमेंटेटर अंदाज में सुनाते हुए कहा, ‘केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में लगातार पिछड़ता जा रहा है. जहां साल 2014 में भारत 99वें स्थान पर था. साल 2015 में यह 93वें स्थान पर जा पहुंचा. इसके बाद साल 2016 में 97वें और साल 2017 में 100वें पायदान पर पहुंच गया.’

राहुल गांधी-नरेंद्र मोदी

और, जैसा कि होता आया है- ग्लोबल हंगर इंडेक्स के तथ्यों की इस ‘नीम-हकीम’ व्याख्या के बाद सोशल मीडिया पर छाती-कूट हाय-हाय मची. सरकार को निशाने पर लेकर व्यंग्य में पूछा गया कि 'और कितना विकास चाहिए.' खबरों में सनसनी हो तो वो सोशल मीडिया के आकाश में ज्यादा उड़ती है और सोशल मीडिया के आकाश में उड़ती खबरों की चिड़िया को पकड़ने के हुनर का नाम आजकल राजनीति है. इसलिए विरोध की राजनीति को धार देने की कोशिश में लगे राहुल गांधी ने अपने इस हुनर का प्रदर्शन किया और सरकार पर निशाना साधा कि ‘योग-भोग सब खूब किया-जनता का राशन भूल गए.’

लेख के इस हिस्से तक पहुंचकर आप सोच रहे होंगे कि आखिर जीएचआई रिपोर्ट को लेकर हुई रिपोर्टिंग में ऐसी चूक क्या हुई जो उसे ‘सनसनी परोसना’ और ‘खबरों की दुनिया की नीम हकीमी’ का नाम दिया जाए? आखिर ग्लोबल हंगर इंडेक्स में किसी देश का दर्जा साल दर साल नीचे खिसक रहा है तो कैसे ना माना जाय कि वहां भुखमरी की हालत संगीन है और भुखमरी से निबटने के सरकारी उपाय नाकाम साबित हो रहे हैं?

यह सवाल बेशक जायज है लेकिन उसी सूरत में जब इस साल की जीएचआई रिपोर्ट की तुलना पिछली रिपोर्टों से वर्षवार कर पाना मुमकिन हो. एक अफसोस तो यह कि इस साल की जीएचआई रिपोर्ट की तुलना पिछले सालों की रिपोर्ट से करना जायज नहीं और दूसरा अफसोस यह कि रिपोर्ट जारी करने वाली संस्था ने इस बुनियादी बात को मोटे-मोटे अक्षरों में दर्ज कर रखा है. लेकिन भुखमरी के मोर्चे पर सनसनी परोसने की हड़बड़ी में हिंदी मीडिया के एक बड़े हिस्से का इन अक्षरों की तरफ ध्यान ही नहीं गया.

रिपोर्टिंग मे गलती कहां हुई

इस साल के जीएचआई रिपोर्ट का शीर्षक है, ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स-फोर्स्ड माइग्रेशन एंड हंगर’ और इसके लेखकों ने आगाह किया है कि इंडेक्स में किसी देश को इस साल जो दर्जा दिया गया है उसकी तुलना पिछले साल के रिपोर्टों में उस देश को हासिल दर्जे से नहीं की जा सकती. इसी तरह 2018 के जीएचआई रिपोर्ट में किसी देश को अलग-अलग मानकों के आधार पर जो अंकमान दिया गया है, उसे भी पिछले साल की रिपोर्टों में हासिल अंकमान से तुलना कर के नहीं देखा जा सकता.

(फोटो: फेसबुक से साभार)

इसकी वजह बताते हुए लेखकों ने कहा है कि एक तो हर साल रिपोर्ट की तैयारी करते समय में डेटा का पुनरावलोकन किया जाता है और किसी देश से संबंधित उपलब्ध नवीनतम डेटा का उपयोग होता है. डेटा में संशोधन का असर रिपोर्ट में शामिल देशों के अंकमान पर पड़ता है. दूसरे, समय-समय पर रिपोर्ट में आकलन की पद्धति में बदलाव होता है और तीसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि हर साल जीएचआई रिपोर्ट में देशों की संख्या एक समान नहीं रहती. भुखमरी की हालत के आकलन के लिए रिपोर्ट में हर साल कुछ नए देशों को शामिल किया जाता है और किन देशों को शामिल किया जाएगा यह बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि उन देशों से संबंधित जरुरी, नवीनतम और पर्याप्त डेटा मौजूद है या नहीं.

ऊपर की इन बातों को हम कुछ मिसाल के जरिए समझें: साल 2014 की जीएचआई रिपोर्ट में भुखमरी की हालत के लिहाज से दर्जा तय करने के लिए कुल 76 देशों का आकलन किया गया था और इस साल भारत 55वें स्थान पर था. जबकि साल 2017 के जीएचआई रिपोर्ट में देशों की संख्या बढ़कर 119 हो गई और भारत खिसककर 100वें स्थान पर जा पहुंचा. भारत के दर्जे में 45 अंकों की यह गिरावट भुखमरी की स्थिति में किसी भारी तब्दीली के कारण नहीं हुई. इस हैरतअंगेज गिरावट की वजह रही रिपोर्ट में नए देशों को शामिल करना और भारत में मौजूद भुखमरी की स्थिति (जीएचआई अंकमान) की तुलना में इन नए देशों की स्थिति (जीएचआई अंकमान) से करना.

दूसरा उदाहरण 2016 का है. इस साल जीएचआई रिपोर्ट में देशों का दर्जा तय करने का तरीका बुनियादी तौर पर बदला. साल 2016 से पहले चलन था कि जिन देशों का जीएचआई अंकमान 5 या उससे ज्यादा हो, उन्हें ही इंडेक्स में दर्जावार सजाया जाएगा लेकिन 2016 में आकलन में शामिल सभी देशों को दर्जावार सजाया गया (चाहे उनका जीएचआई अंकमान 5 से कम हो या ज्यादा) और इस कारण भी रिपोर्ट में देशों की रैंकिंग खासी बदली.

जीएचआई रिपोर्ट में देशों के दर्जे को निर्धारित करने के लिहाज से सबसे निर्णायक साबित होने वाला बदलाव 2015 में हुआ था. इस साल आकलन की पद्धति (मेथ्डोलॉजी) में बदलाव हुआ. देशों का जीएचआई अंकमान तय करने के लिए बाल-कुपोषण की गंभीरता दिखाती दो स्थितियों चाइल्ड स्टंटिंग (5 साल से कम उम्र के बच्चों का अनुपात जिनकी लंबाई उनके उम्र के हिसाब से बहुत कम है) और चाइल्ड वेस्टिंग (5 साल से कम उम्र के बच्चों का अनुपात जिनका वजन उनकी लंबाई को देखते हुए बहुत कम है) को भी शामिल किया गया. पद्धति में हुआ यह बदलाव 2018 के जीएचआई रिपोर्ट के लेखकों के मुताबिक देशों के जीएचआई अंकमान में बहुत ज्यादा बदलाव लाने वाला साबित हुआ. 2015 से रिपोर्ट में शामिल तकरीबन हर देश का जीएचआई अंकमान 2014 या उससे पहले के वर्षों के अंकमान से ज्यादा आता है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उन देशों में भुखमरी की स्थिति पहले की तुलना में बहुत ज्यादा बढ़ गई है.

ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2018 में भारत में भुखमरी की स्थिति में सुधार है मगर अभी भी करोड़ों की आबादी भोजन की समस्या से जूझ रही है (फोटो: रॉयटर्स)

भारत और भुखमरी: क्या कहती है रिपोर्ट?

इस साल की जीएचआई रिपोर्ट का एक निष्कर्ष है कि भारत भले ही भुखमरी की गंभीर दशा वाले देशों में एक है लेकिन हालात पहले की तुलना में बिगड़े नहीं बल्कि सुधार पर हैं. आप पूछ सकते हैं कि अगर इस साल के जीएचआई रिपोर्ट की तुलना पिछले साल की रिपोर्टों से कर ही नहीं सकते तो फिर भुखमरी की संगीन हालत में हो रहे सुधार के किसी निष्कर्ष तक कैसे पहुंच सकते हैं भला?

दरअसल, इस साल की जीएचआई रिपोर्ट आपको पिछले वर्षों में भारत में मौजूद भुखमरी की दशा से तुलना करने से रोकती नहीं बल्कि ऐसा करते वक्त जरुरी सावधानी बरतने की बात कहती है. इस साल की रिपोर्ट में तुलना के लिए कुछ संदर्भ-अवधि (रेफरेंस पीरियड) दी गई है. आप इस साल के जीएचआई रिपोर्ट में भारत को हासिल अंकमान की तुलना साल 2000, साल 2005 और साल 2010 में हासिल अंकमान से कर के देख सकते हैं कि बीते सालों में भारत की स्थिति भुखमरी के मोर्चे पर सुधरी है या बिगड़ी है.

तुलना करने पर आप पाएंगे कि 2000 और 2005, इन दोनों ही वर्षों में भारत का जीएचआई अंकमान 38.8 था जबकि 2010 में यह कम होकर 32.2 पर पहुंचा और 2018 में 31.1 पर. जीएचआई इंडेक्स के लिए किसी देश का अंकमान निर्धारित करना हो तो उस देश की 4 स्थितियों- कुपोषण (यानी देश की आबादी में ऐसे लोगों का अनुपात जिन्हें एक मानक मात्रा से कम कैलोरी का भोजन मिलता है), चाइल्ड स्टंटिंग, चाइल्ड वेस्टिंग और 5 साल से कम उम्र के बच्चों के मृत्यु-दर की गणना की जाती है. जिस देश का अंकमान जितना ही कम होता जाएगा उसकी स्थिति ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) पर उतनी ही सुधरी हुई मानी जाती है. जाहिर है, वक्त बीतने के साथ घटता जीएचआई अंकमान भुखमरी के मार्चे पर भारत की स्थिति के सुधार के संकेत करता है, बिगाड़ के नहीं.

इस साल की जीएचआई रिपोर्ट में भारत (जीएचआई अंकमान 31.1) भुखमरी के हालात में सुधार के लिहाज से बेशक नेपाल (जीएचआई अंकमान 21.2) और बांग्लादेश (जीएचआई अंकमान 26.1) से पीछे हैं लेकिन पाकिस्तान(जीएचआई अंकमान 32.6) और अफगानिस्तान (जीएचआई अंकमान 34.3) से भारत की स्थिति बेहतर है.

प्रतीकात्मक

आखिर में एक सवाल

क्या ऊपर की बातों के आधार पर मान लें कि जीएचआई इंडेक्स पर भारत की स्थिति अब इतनी सुधर चली है कि आने वाले एक दशक के भीतर मुल्कों की बिरादरी के बीच भारत भुखमरी के शर्म से उबरकर अपना चेहरा दिखा सके? इस सवाल का उत्तर है- ना. जीएचआई इंडेक्स पर इस साल 20 से 34.9 तक के अंकमान वाले देशों में भुखमरी की दशा को ‘गंभीर’ करार दिया गया है. भारत ऐसे ही देशों में शामिल है. भुखमरी के मोर्चे पर जो भी सुधार नजर आ रहा है वो मिड डे मील, आंगनबाड़ी, मातृत्व लाभ योजना और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत मुहैया कराए जाने वाले अनुदानित राशन की देन है. इन योजनाओं पर कारगर अमल ही भारत के लिए भुखमरी के शर्म से निजात का एकमात्र रास्ता है.