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पीएम ने बापू के गुरु पर जारी की डाक टिकट, जानिए कौन हैं राजचंद्र

गुजरात के मोरबी में जन्मे राजचंद्र ने 7 साल की उम्र में दावा किया था कि उन्हें पूर्व जन्म की चीजें याद हैं

FP Staff

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को साबरमती आश्रम पहुंचे. वहां उन्होंने महात्मा गांधी के आध्यात्मिक गुरु श्रीमद राजचंद्र पर डाक टिकट और सिक्का जारी किया. बता दें कि महात्मा गांधी के जीवन पर श्रीमद राजचंद्र का गहरा प्रभाव रहा है और अपने जीवन में हुए बदलाव का श्रेय वह उन्हें देते रहे हैं.

श्रीमद राजचंद्र जैन कवि, दार्शनिक, स्कॉलर और रिफॉर्मर थे. गुजरात के मोरबी में जन्मे राजचंद्र ने 7 साल की उम्र में दावा किया था कि उन्हें पूर्व जन्म की चीजें याद हैं. उन्होंने अवधान, 'मेमोरी रिटेंशन और रीकलेक्शन टेस्ट' का प्रदर्शन किया था, जिससे उन्हें काफी प्रसिद्धि मिली. उन्होंने दार्शनिक कविता 'आत्म सिद्धी' लिखी जो काफी प्रसिद्ध हुई.


कई बार बदला नाम

9 नवंबर 1867 को गुजरात को मोरबी में जन्मे राजचंद्र का बचपन का नाम लक्ष्मीचंदन था. बाद में उनके परिवार वालों ने 4 साल की उम्र में उनका नाम रायचंद रखा. संस्कृत से लगाव होने के कारण बाद में उनका नाम राजचंद्र पड़ गया. साल 1887 में उनकी शादी हुई. बाद में वह अपने परिवार वालों की इच्छा से मुंबई चले गए और वहीं अपनी पत्नी और चार बच्चों के साथ रहने लगे.

मुंबई में हुई थी महात्मा गांधी से मुलाकात

महात्मा गांधी और राजचंद्र की मुलाकात साल 1891 में मुंबई में ही हुई. इसके बाद गांधी अफ्रीका चले गए, लेकिन चिट्ठी के जरिए राजचंद्र से उनका संवाद बना रहा. गांधी ने अपनी किताब 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' में इसका उल्लेख किया है. गांधी ने इसमें राजचंद्रन को अपना गाइड और हेल्पर बताया है. उन्होंने ही गांधी को संयम बरतने और हिंदूत्व को अच्छे से पढ़ने का सुझाव दिया था. उन्होंने गांधी को अहिंसा का दर्शनशास्त्र भी पढ़ाया था.

कई किताब लिखा

राजचंद्र ने श्री नीति बोधक किताब लिखा. यह महिलाओं के लिए आदर्श नैतिक जीवन की प्रकृति पर आधारित है. यहां उन्होंने महिलाओं की शिक्षा की बात की है. इसके बाद साल 1887 में उन्होंन मोक्षमाला लिखी. इस बीच उन्होंने भावना बोध किताब लिखी. उन्होंने अपनी आध्यात्मिक यात्रा और शिक्षा पर 900 चिट्ठियां लिखी. उन्होंने 'वैराग्य विलास' समाचार पत्र का भी संपादन किया.

राजकोट में हुआ निधन

जीवन के अंतिम दिनों में वह गुजरात आ गए और भक्तों के साथ रहने लगे. इस बीच उन्हें कई तरह की बीमारियां हो गईं. 9 अप्रैल 1901 को गुजरात के राजकोट में उनका निधन हो गया.

(साभार: न्यूज़18)