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डीयू में आए नॉर्थ ईस्ट के छात्रों को ये पांच दुख न दें, न दूसरों को देने दें

कोशिश कीजिए कि उत्तर-पूर्व से आए छात्र हमारे बीच अपनापन महसूस करें

FP Staff

दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ना देश के बहुत से बच्चों का सपना और हक है. विविधताओं से भरपूर इस यूनिवर्सिटी में हर साल लगभग 20000 नार्थ-ईस्ट स्टूडेंट्स दाखिला लेते हैं. लेकिन अफसोस अपने ही देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में आने वाले इन स्टूडेंट्स को जाने अनजाने बहुत सारे घटियापन और भेदभाव का शिकार होना पड़ता है.

सच्चे अनुभवों से भरी इस कहानी को पढ़ें और दूसरों के साथ शेयर करें ताकि भारत के उत्तर पूर्व से आए हुए छात्रों को विदेशी या पराया होने का एहसास ना हो.


1)  उत्तर पूर्व से आए छात्र विदेशी नहीं है

अपने ही देश मे नार्थ-ईस्ट स्टूडेंट्स से ऐसा व्यवहार किया जाता हैं जैसे वो किसी दूसरे देश के हैं. दिल्ली आने के बाद बार बार इसी प्रॉब्लम को फेस करने वाले डीयू के छात्र हशोकमी कमकरा बताते हैं कि दिल्ली आए डेढ़ साल हो चुके हैं लेकिन फिर भी हमें बार बार बाहर वालों की तरह ट्रीट किया जाता हैं.

हशोकमी बताते हैं कि एक बार एक एग्जामिनर ने भी उनसे पूछा था कि क्या आप नेपाल से हो ? हशोकमी कहते हैं कि इतने ज्यादा पढ़े-लिखे लोग भी हमें नेपाली या चीनी समझते हैं. कई बार दिल्ली वाले लोग ग्रुप में हूटिंग करते हुए हमें 'चाइनीज़ माल' कहकर पुकारते हैं.

नार्थ-ईस्ट स्टूडेंट्स ये भी कहते हैं कि दिल्लीवाले लोग सिर्फ दिल्लीवालों के साथ ही मिक्स हो पाते हैं. लिहाज़ा हम पूरी पढ़ाई के दौरान परायापन महसूस करते रहते हैं.

इंटरनेशनल यूथ समिट में इंडिया को रिप्रेजेंट कर चुके सैवियो खोले का कहना हैं कि हम विदेशों में जाकर इंडिया को रिप्रजेंट करते हैं जहां बाहर के लोग हमें गर्व के साथ इंडियन बुलाते हैं लेकिन यहां अपने ही देश मे हमे चाइनीज़, नेपाली समझा जाता है.

2) उत्तर पूर्व के छात्र मोमो और लड़कियां चाइनीज़ नहीं हैं

आसाम से दिल्ली पढ़ने आई प्रार्थना मेधी को दिल्ली आए दो साल हो चुके हैं. लेकिन प्रार्थना बताती हैं कि आज भी उन्हें कही भी कभी भी चिंकी सुनने की आदत हो चुकी हैं. शुरुआत में लड़ने की कोशिश की तो बदले में चिंकी हो तो चिंकी ही बुलाएंगे सुनने को मिलता था.

वेरोनिका आंगशी ने बताया कि एक बार जब मूवी देखने गए तो वहां खड़े लोगों ने दबी आवाज में बोला ये चिंकी यहां क्या कर रहे हैं, इन्हें हिंदी फिल्म समझ तो आती नही होंगी. वेरोनिका बताती हैं लड़के भद्दे टोन में चाइनीज़ डॉल कहते हैं. प्रार्थना मेधी बताती हैं जब हम एक साथ ग्रुप में होते हैं तो लोग हमें मोमो कहकर बुलाते हैं. खासकर नार्थ-ईस्ट के लड़कों को मोमो कहकर बुलाया जाता है.

3) उत्तर पूर्व की लड़कियां को ज्यादा छेड़खानी का सामना करने से बचाएं

नार्थ-ईस्ट की वैनई को जब डीयू में दाखिला मिला तो मानों उनकी जिंदगी बदल गई. वैनई को बचपन से पता था कि दिल्ली में अवसरों का अंबार हैं और आगे की पढ़ाई के लिए वहां जाना किसी सपने जैसा है. लेकिन वैनई जब यहां आई तो आए दिन उन्हें सड़कों पर भद्दे कमेंट सुनने को मिलते रहे. वैनई बताती हैं कि हर लड़की को कभी न कभी सेक्सुअल हैरासमेंट का सामना करना पड़ता है लेकिन नार्थ-ईस्ट की लड़कियों को इन सब का सामना सामान्य लड़कियों से ज्यादा करना पड़ता है.

वैनई बताती है कि लोगो को गलतफहमी रहती है कि ये लड़कियां करियर अवसरों के लिए कुछ भी कर सकती हैं. यहां लोगो का मानना हैं कि नार्थ-ईस्ट में कुछ नही हैं और ये लोग दिल्ली में कैरियर बनाने और पैसा कमाने के लिए ही आते हैं.

4) उनके हिंदी बोलने की कोशिश की तारीफ करें हंसे नहीं

रमेचनकेंन शिंग को दिल्ली आए साढ़े तीन साल हो चुके और अब उन्हें हिंदी पूरी तरह समझ आती है और थोड़ी बहुत बोल भी लेते हैं. रमेचनकेंन शिंग  ने बताते हैं कि शुरुआत में जब मुझे गालियां सुनाई देती थी तो उसका मतलब जानने के लिए हिंदी पढ़ता था, और इसी तरह हिंदी समझ आने लगी.

इसके अलावा दिल्ली वाले हमे हिंदी बुलावाते थे और हमारी टूटी-फूटी हिंदी सुनकर बहुत हंसते थे और टूटी-फूटी बोलते-बोलते थोड़ी हिंदी बोलने भी आ गई. शुरुआत में हमें सिर्फ इंग्लिश आती थी और हमारी इंग्लिश भी यहां लोगो को कभी समझ नही आती थी तो कभी हमारे मजे लेने के लिए जानबूझकर समझते नहीं थे.

5)  मैरीकॉम, बाइचुंग भूटिया के अलावा भी नार्थ ईस्ट वाले 'बहादुर' हैं

साढ़े तीन साल से दिल्ली में रह रहे पमयोनिगशन का कहना हैं कि नार्थ ईस्ट की मैरीकॉम, सरितादेवी और बाइचुंग भूटिया जैसे अचीवर्स को तो इसी देश में  सिर आंखों पर बैठाया जाता हैं लेकिन बाकी नार्थ ईस्ट के लोगों के साथ सौतेला व्यवहार क्यों किया जाता?

पमयोनिगशन का कहना हैं कि छोटी आंखों वाले नार्थ-ईस्ट स्टूडेंट्स अपने ही देश की छोटी मानसिकता का शिकार होते रहते हैं. नार्थ-ईस्ट के अचीवर्स के अलावा बाकी सभी चाऊमीन, बहादुर और नेपाली बन के रह जाते हैं.

नार्थ -ईस्ट के पहाड़ और वादियों के अलावा वहां करियर के अवसर बहुत कम हैं और डीयू में पढ़ रहे इन नार्थ-ईस्ट स्टूडेंट्स को अक्सर इन बातों पर तंज भी झेलने पड़ते हैं.

सैवियो खोले, पमयोनिगशन, वेरोनिका, वैनई और हशोकमी जैसे लाखों नार्थ-ईस्टर्न स्टूडेंट्स का यही कहना है कि वो भारत के एक जिम्मेदार नागरिक हैं और उन्हें भी इस देश के किसी भी हिस्से में किसी भी अवसर का हक है. इसीलिए इन पर मज़ाक और तंज कसना छोड़कर इनकी सोच, इनकी समझ और इनके अंदाज को खुले दिल और बड़ी मानसिकता के साथ अपनाना चाहिए.