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'भगवा आर्टिस्ट' कहने पर सोनल मानसिंह ने कहा, सूरज का रंग भी तो भगवा है तो क्या करें

सोनल मानसिंह ने कहा कि मैंने कभी नहीं सुना कि भगवा रंग खराब होता है. हमें रंगों को बांटना नहीं चाहिए

FP Staff

जानी-मानी क्लासिकल डांसर सोनल मानसिंह को राज्यसभा सदस्य के लिए मनोनीत किया गया है. सोनल मानसिंह ऐसी कालाकार हैं, जिनके नाम के साथ संघर्ष, प्रसिद्धि और विवाद तीनों जुड़े हैं. कई बार उन्हें 'भगवा आर्टिस्ट' बताया जाता है. हालांकि, उन्होंने इन आलोचनाओं और बयानों को कभी भी खुद पर हावी नहीं होने दिया.

वह बड़ी बेबाकी से ऐसे सवालों का सामना करती हैं. एक बार खुद भगवा आर्टिस्ट बताए जाने पर सोनल मानसिंह का जवाब था, 'सूरज का रंग भी तो भगवा है, इसमें हम और आप कुछ नहीं कर सकते.'


दरअसल, 1993 में विश्व हिंदू परिषद ने एक प्रोग्राम के सिलसिले में सोनल मानसिंह से संपर्क किया था. अमेरिका के शिकागो में स्वामी विवेकानंद के ऐतिहासिक भाषण के 100 वर्ष पूरे होने के मौके पर वॉशिंगटन में यह प्रोग्राम होना था, जिसमें सोनल मानसिंह को परफॉर्म करने के लिए बुलाया गया था. सोनल मानसिंह ने विश्व हिंदू परिषद का इनविटेशन मंजूर कर लिया.

सोनल  मानसिंह को क्यों बताया जाता है 'संघी'

हालांकि, 'आर्टिस्ट अगेंस्ट कम्युनलिज्म' नाम के संगठन ने इसके खिलाफ सोनल मानसिंह को समन भेज दिया. कुलदीप नैय्यर, शबाना आज़मी जैसे आर्टिस्ट इस संगठन से जुड़े हुए हैं. समन के बाद भी सोनल मानसिंह अपने फैसले पर डटी रहीं. उन्होंने वॉशिंगटन में परफॉर्म किया. जिसके बाद उन्हें 'संघी' कहा जाने लगा.

इस घटना के कई साल बाद एक बार फिर उन्हें 'भगवा आर्टिस्ट' बताया गया. इस बार मामला दिल्ली के जंतर-मंतर का था. सोनल मानसिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक रैली में शामिल हुई थीं. केरल में आरएसएस कार्यकर्ताओं पर हो रहे हमले के विरोध में ये रैली आयोजित हुई थी.

राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा सदस्य के तौर पर मनोनीत होने के बाद सोनल मानसिंह ने 'News18' से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने खुद को 'भगवा आर्टिस्ट' बताए जाने, राष्ट्रीयता और अपने कमिटमेंट पर खुलकर बात की.

सोनल मानसिंह से हुई बातचीत के खास अंश:-

राज्यसभा के लिए मनोनीत होने के बाद अब आर्ट और कल्चर को लेकर आपकी क्या प्लानिंग रहेगी?

मेरा पूरा जीवन आर्ट और कल्चर को ही समर्पित रहा है. इसके आधार पर मैं कह सकती हूं कि संस्कृति और परंपरा के साथ भारत एक महान देश है. यहां एक साथ कई संस्कृतियां हैं, फिर भी लोग जुड़े हुए हैं. सभ्यता, संस्कृति, परंपरा ही हमें-आपको एक दूसरे से कनेक्ट करती है. ऐसे कई मुद्दे हैं, जिन्हें आर्ट के जरिए उठाया जा सकता है. भारतीय कला कैसे ऐसे मुद्दों को देखती है, ये विचार का विषय है. मुझे मौका मिला तो इन मुद्दों पर काम करना पसंद करूंगी.

आपको कई बार 'भगवा आर्टिस्ट' करार दिया जाता है? ऐसे कमेंट्स को आप किस तरह से लेती हैं?

रंगों के बारे में क्लासिफिकेशन को लेकर मुझे कई बार दुख होता है. प्रकृति का हर रंग खूबसूरत है. प्रकृति में हर वो रंग है, जिसकी हम कल्पना कर सकते हैं. सूरज का रंग भगवा है. नदियां और समुद्र का रंग नीला है. इसमें आप और हम कुछ नहीं कर सकते. किसी खास चीज से रंग की पहचान करना और इसे अपनी समझ से सही ही ठहराना सरासर गलत है. दरअसल, पूरी बहस भगवा रंग को लेकर है. करियर की शुरुआत में मेरे साथ ऐसा नहीं होता था. मैंने कभी नहीं सुना कि भगवा रंग खराब होता है. हमें रंगों को बांटना नही चाहिए. इनसे अपनी जिंदगी के कैनवास को रंगीन करना चाहिए.

आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमित स्वतंत्रता सेनानियों की रही है. आपके दादा भारत के पहले पांच गवर्नर्स में से एक थे. राष्ट्रीयता पर चल रही बहस पर क्या कहेंगी?

हैरान करने वाली बात है कि आजादी के 70 साल बाद भी राष्ट्रीयता के मुद्दे पर बहस छिड़ी है. सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया और टीवी चैनलों ने इन चीजों को बढ़ावा दिया है. राष्ट्रीयता के नाम पर हर कोई खुद को दूसरों से ज्यादा आंकने लगता है. वास्तव में राष्ट्रीयता का कोई सेट फॉर्मेट और पैमाना है नहीं.

(न्यूज 18 से साभार)