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शहीदों से बर्बरता: कब तक उठाएंगे नैतिकता का बोझ, पाकिस्तान को जवाब देना होगा

कांग्रेस और बीजेपी एक-दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हैं उन्हें फिलहाल देशहित की परवाह नहीं है

Sreemoy Talukdar

पुंछ की कृष्णा घाटी में दो भारतीय सैनिकों के सिर काटने की पाकिस्तान की करतूत की दो वजहें मानी जा रही हैं. ये बर्बरता हर सैन्य और अंतरराष्ट्रीय नियम के खिलाफ है. ये दुश्मन को खुली चुनौती देने वाला कदम है. जिसमें सामने वाले को ललकारा गया है कि वो पलटवार करे.

पाकिस्तान की फौज ऐसा कई बार कर चुकी है. 1999, 2000, 2013 और 2016 में दो बार ऐसा हमारे सैनिकों के साथ हो चुका है. भारत ने हर बार पाकिस्तान की इस हैवानियत का मुंहतोड़ जवाब दिया है.


यूं तो पाकिस्तान को अपनी करतूत से इनकार करने की आदत पड़ गई है. पर इस इनकार पर यकीन करने की कोई वजह नहीं बनती. तमाम सबूत पाकिस्तान की फौज के हाथ की तरफ इशारा करते हैं.

बुधवार को भारत ने पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल बासित को तलब करके इस घटना पर आधिकारिक विरोध दर्ज कराया. इसके बाद एक बयान में विदेश मंत्रालय ने कहा कि, 'पाकिस्तान के हमले से पहले सीमा पार से फायरिंग की गई, ताकि घुसपैठ कराई जा सके. ये फायरिंग बट्टल सेक्टर में स्थित पाकिस्तान की चौकियों से की गई. भारतीय सैनिकों के खून के नमूने और रोजा नाला के पास मिले खून के धब्बे साफ इशारा करते हैं कि हत्यारे, सैनिकों के साथ बर्बरता करके नियंत्रण रेखा के पार गए'.

भारतीय सैनिकों के साथ बर्बरता 

इस बात में कोई शक नहीं कि नायब सूबेदार परमजीत सिंह और हवलदार प्रेम सागर के साथ पाकिस्तानी फौज की बॉर्डर एक्शन टीम ने हैवानियत की. दोनों उस इलाके में बारूदी सुरंग बिछाए जाने की खुफिया खबर मिलने के बाद पड़ताल के लिए वहां गए थे. दोनों पहले पाकिस्तान की भारी गोलीबारी के शिकार हुए. फिर उनके शवों के साथ बर्बरता हुई. इस घटना के पीछे पाकिस्तान की फौज का हाथ है, इसमें तो कोई दो राय है ही नहीं.

सवाल ये है कि पाकिस्तान की फौज इस वक्त भारत से तनातनी बढ़ाना क्यों चाहती है?

इसकी पहली वजह ये हो सकती है कि पाकिस्तानी फौज को अपने वजीरे आजम नवाज शरीफ का भारतीय कारोबारी सज्जन जिंदल की मेहमाननवाजी करना पसंद नहीं आया. कहा जाता है कि सज्जन जिंदल नवाज शरीफ और नरेंद्र मोदी, दोनों के करीबी हैं.

माना जा रहा था कि सज्जन जिंदल की नवाज शरीफ से मुलाकात, कुलभूषण जाधव को लेकर बढ़ी तनातनी को शांत करने के लिए हुई थी. लेकिन पाकिस्तान के जनरलों को ये बात नागवार गुजरी. इसीलिए उन्होंने ये उकसावे वाली हरकत करके, शांति की कोशिशों को पलीता लगाया.

इंडियन एक्सप्रेस के सीनियर पत्रकार प्रवीण स्वामी ने पाकिस्तानी फौज की इस हरकत के पीछे एक और संभावना जताई है. सूत्रों के हवाले से स्वामी ने दावा किया कि इस साजिश को खुद पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा ने हरी झंडी दिखाई.

बाजवा ने 30 अप्रैल को ही हाजी पीर इलाके में स्थित पाकिस्तानी चौकियों का दौरा किया था. असल में 17 अप्रैल को भारत ने पाकिस्तान के युद्ध विराम तोड़ने पर भारी जवाबी गोलीबारी की थी. कहा जा रहा है कि भारत की फायरिंग में पाकिस्तान के सात से दस के बीच सैनिक मारे गए थे.

पाकिस्तान ने इस तरह की हरकत क्यों की?

सवाल ये उठता है कि जब पाकिस्तान को पता है कि उसकी इस हैवानियत का भारत की सेना करारा जवाब देगी, फिर भी पाकिस्तान की फौज ने ये हरकत क्यों की? अपने से ताकतवर सेना को भड़काने के पीछे आखिर उसकी मंशा क्या है?

भारत की तमाम सरकारें इस सवाल का जवाब तलाशने और पाकिस्तान की ऐसी हरकतों का ठोस जवाब देने में नाकाम रही हैं. यही वजह है कि हम बार-बार ऐसे सवाल से दो-चार हो रहे हैं. जहां पाकिस्तान की फौज हमारी सेना से कमतर होने के बावजूद लगातार उकसावे वाली कार्रवाई करती है.

पाकिस्तान बार-बार ऐसी हरकत करके भारत के सब्र का इम्तिहान लेता रहा है. पाकिस्तान की फौज, जो कि वहां की असल हुकूमत है, वो विचारधारा की लड़ाई को जीतने वाली जंग में तब्दील कर चुकी है.

भारत नैतिकता का बोझ उठाए हुए है. वो सिद्धांतों पर चलता है और बार-बार हमें ऐसा नुकसान उठाना पड़ता है. जब हमारे सामने ऐसा दुश्मन है जो किसी नियम-कायदे को मानता ही नहीं, तो फिर हम पता नहीं क्यों सिद्धांतवादी बने हुए हैं? ये हमारी नाकामी नहीं तो और क्या है?

क्या था शंकर रॉय चौधरी का सुझाव?

उरी में आतंकी हमले के बाद जनरल शंकर रॉय चौधरी ने भारत को अपने खुद के फिदाइन दस्ते तैयार करने का सुझाव दिया था. जनरल रॉय चौधरी की इस सुझाव के लिए काफी निंदा हुई थी.

हमारे साथ यही दिक्कत है. हम ऐसे मुल्क हैं, जो नैतिकता का बोझ उठाए फिरता है. इस चक्कर में हम हकीकत से मुंह फेरे हुए हैं. जबकि सच तो ये है कि पाकिस्तान की फौज हमें स्थायी दुश्मन मानती है.

तो क्या हमारे पास ये ताकत नहीं कि हम पाकिस्तान को सबक सिखा सकें? हमारी दिक्कत ताकत की नहीं, इरादे की है. हम उस पड़ोसी देश के साथ अमन का ख्वाब देखते हैं, जिसकी बुनियाद ही बंटवारे से पड़ी.

हम ऐसे देश से शांति की उम्मीद करते हैं, जो हिंदुस्तान से नफरत करता है. पाकिस्तान की फौज ने भारत से जंग को अपना मिशन बनाया हुआ है. वहां की फौज खुद को देश की हिफाजत की अलंबरदार समझती है.

भारत को तरक्की से रोकना है मकसद?

पाकिस्तान हर कीमत पर भारत की तरक्की को रोकना चाहता है. इस काम में उसे चीन से भी मदद मिलती है. भारत से जंग की बात करके वहां के हुक्मरान, अपने देश की दिक्कतों पर भी पर्दा डालते हैं. कश्मीर को लेकर उसकी बुरी निगाह आजादी के बाद से ही है. पाकिस्तान, कश्मीर को हड़पकर अपना दायरा और हैसियत बढ़ाना चाहता है. ऐसे हालात में भारत की दोनों देशों के बीच शांति की कोशिशें बेमानी हैं.

इस मुद्दे पर बहस शायद अगली सदी में भी जारी रहे. लेकिन पाकिस्तान की मानसिकता वही रहेगी. वहां की फौज भारत से हजार साल तक लड़ने के ख्वाब देखेगी और अपनी जनता को दिखाएगी. वो कभी आतंकियों की मदद से छापामार लड़ाई लड़ेगी, कभी सैनिकों के सिर काटने जैसी हरकत करेगी और कभी छोटी-मोटी इलाकाई जंग छेड़ेगी.

जब किसी मुल्क का अस्तित्व ही दुश्मनी की बुनियाद पर टिका हो, तो हमारा सब्र रखना बेकार है. इसे हमारा दुश्मन हमारी कमजोरी मानता है. हम कल को पाकिस्तान को कुछ इलाके दे भी दें, तो उससे वो शांत हो जाएगा, ये सोचना गलत है. उसका लालच बढ़ेगा. वो अपनी नापाक हरकतें बढ़ा देगा.

क्या है पाकिस्तान की नीयत?

अमेरिका की डिफेंस एक्सपर्ट क्रिस्टीन फेयर ने पाकिस्तान के बारे में विस्तार से लिखा है. उन्होंने अपनी किताब Fighting to the End में लिखा है कि, 'पाकिस्तान की नीयत सिर्फ कश्मीर हड़पने की नहीं है. वो हमेशा भारत की तरक्की की राह में मुश्किलें खड़ी करना चाहता है. वो नहीं चाहता कि भारत एक बड़ी ताकत बनकर उभरे.

ऐसा करते हुए उसे बार-बार की हार का डर भी नहीं सताता. पाकिस्तान को लगता है कि भारत के सामने झुकना उसकी सबसे बड़ी हार है, उसकी सबसे बड़ी तौहीन है'.

ऐसे में भारत के पास एक ही रास्ता बचता है. हम पाकिस्तान को इसकी भारी कीमत चुकाने को मजबूर करें. हम एटमी जंग के दायरे से दूर रहते हुए पाकिस्तान के खिलाफ फौरी, मगर बेहद कारगर सैन्य कार्रवाई करें.

हम एटमी जंग की सोच से ही डरे बैठे रहते हैं. इसका पाकिस्तान की फौज खूब फायदा उठाती है. पाकिस्तान से न्यूक्लियर वार के खतरे से डरना बेमानी है. पाकिस्तान की फौज की हरकतें भले ही जाहिलाना हों, मगर पाक जनरल इतने भी बेवकूफ नहीं कि वो भारत के खिलाफ एटमी जंग छेड़ देंगे. पिछले साल की सर्जिकल स्ट्राइक इस बात का सबूत हैं. भारत की कार्रवाई के बावजूद, पाकिस्तान की फौज लगातार इससे इनकार ही करती रह गई.

पाकिस्तान बार-बार उकसावे की कार्रवाई इसीलिए करता है, क्योंकि उसे पता है कि भारत एटमी जंग छिड़ने के डर से बड़ा एक्शन नहीं लेगा. हमने खुद को एटमी जंग से डराकर, बार-बार हारने को मजबूर किया है.

पाकिस्तान क्यों उकसा रहा है?

राजेश्वरी पिल्लै राजगोपालन ने आउटलुक पत्रिका में लिखा है...'भारत को एटमी जंग का डर छोड़ देना चाहिए. पाकिस्तान को भी पता है कि एटमी जंग की सूरत में क्या होगा. उसे मालूम है कि न्यूक्लियर हथियार का वाकई में इस्तेमाल करना बेहद मुश्किल है.

अगर हम ये मान भी लें कि पाकिस्तान की फौज, अपने कब्जे वाले कश्मीर पर कार्रवाई करने गई भारतीय सेना पर एटम बम गिरा देगी, तो भारत की न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन कहती है कि भारत इसका बेहद भयानक जवाब देगा. ऐसे में पाकिस्तान की फौज एटमी हथियार का इस्तेमाल करने का फैसला इतना आसान नहीं. हां, इसकी धमकी देना पाकिस्तान के लिए काफी कारगर रहा है'.

भारत ने अपने ऊपर सब्र का जो पहरा बैठाया हुआ है, वो काफी भारी पड़ रहा है. हम इसकी वजह से पाकिस्तान को सही सबक नहीं सिखा पा रहे हैं. इसी के चलते उसकी हिमाकतें दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं.

महंगी पड़ेगी भारत की जवाबी कार्रवाई

क्रिस्टीन फेयर ने अपने लेख War on the Rocks में लिखा है, 'एटमी हथियारों की वजह से भारत की जवाबी कार्रवाई काफी महंगी पड़ेगी. क्योंकि अगर जंग एटमी हथियारों के इस्तेमाल तक खिंची, तो उसकी किसी भी देश को भारी कीमत चुकानी पड़ती है.

एटमी हथियारों का डर ऐसा है कि पाकिस्तान की हर उकसावे वाली कार्रवाई के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय भारत पर सब्र करने का दबाव बनाता है. इससे पाकिस्तान को अपनी हरकत की कीमत नहीं चुकानी पड़ती.

साथ ही पाकिस्तान एटमी हथियारों का डर दिखाकर दूसरे देशों से आर्थिक मदद भी हासिल करता रहता है. और इस तरह पाकिस्तान के हुक्मरान, उनकी फौज ऐसी कायराना नीति पर अमल जारी रखते हैं'.

भारत के लिए जरूरी है कि वो एटमी जंग की पाकिस्तान की गीदड़भभकी से डरना छोड़ दे. इससे सिर्फ हमारा ही नहीं, पूरे दक्षिण एशिया का भला होगा.

सवाल ये है कि हमारे नेताओ के पास किरदार की ऐसी मजबूती है कि वो ये फैसला ले सकें? क्या वो पाकिस्तान से जंग का फैसला लेने के लिए तैयार हैं? पुंछ में जो हुआ, उसके बाद के बयान तो ऐसा कोई इशारा नहीं करते.

कांग्रेस हो या बीजेपी, दोनों बस बयानों से एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ में ही लगे दिखे हैं. उन्हें फिलहाल तो देशहित की परवाह नहीं दिखती. राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले पर भी हम एकजुट नहीं हो सके हैं, ये बेहद शर्मनाक है.

हालात के बारे में सीनियर पत्रकार आर जगन्नाथन की स्वराज्य पत्रिका में की गई टिप्पणी बड़ी माकूल लगती है. उन्होंने लिखा कि, 'चुनौती पाकिस्तान नहीं है, चुनौती हम खुद हैं'.