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सोहराबुद्दीन केस में कोर्ट ने कहा- हत्या से इनकार नहीं, लेकिन आरोप साबित नहीं होते

कोर्ट ने कहा कि उसे दुख है कि तीन लोगों की जान गई, लेकिन तंत्र की मांग है कि अदालत पूरे तौर पर सिर्फ साक्ष्यों के आधार पर काम करे

Bhasha

सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने गैंगस्टर सोहराबुद्दीन शेख, उसकी पत्नी कौसर बी और सहयोगी तुलसी प्रजापति की कथित फर्जी मुठभेड़ में हत्या किए जाने के मामले में पर्याप्त सबूतों के अभाव में सभी 22 आरोपियों को शुक्रवार को बरी कर दिया.

'तीन लोगों की मौत का दुख, लेकिन हत्या का सबूत नहीं'


फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि उसे शेख और प्रजापति परिवारों के लिए दुख है क्योंकि तीन लोगों की जान गई, लेकिन तंत्र की मांग है कि अदालत पूरे तौर पर सिर्फ साक्ष्यों के आधार पर काम करे.

सीबीआई के स्पेशल जस्टिस एसजे शर्मा ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन यह साबित करने में असफल रहा है कि इन तीन लोगों की हत्या में कोई साजिश थी और आरोपियों की उसमें कोई भूमिका थी.

उन्होंने कहा, ‘जब इस अदालत ने सबूतों और गवाहों पर गौर किया तो वह इस निष्कर्ष पर पहुंची कि साजिश का मामला साबित नहीं होता. साथ ही इन 22 आरोपियों और तीन मौतों के बीच कोई संबंध साबित नहीं हो सका.’

गुजरात और राजस्थान पुलिस के 21 कर्मियों सहित सभी 22 आरोपी करीब एक साल तक चली सुनवाई के दौरान जमानत पर बाहर थे. मुकदमे की 13 साल तक चली सुनवाई के दौरान इसमें कई मोड़ आए. अभियोजन पक्ष के 92 गवाह मुकर गए. जुलाई 2010 में अमित शाह भी इस सिलसिले में गिरफ्तार हुए, लेकिन दिसंबर 2014 में अदालत ने उन्हें आरोप मुक्त कर दिया.

'हत्या पर संदेह नहीं, लेकिन बिना सबूत के नतीजे पर नहीं पहुंच सकते'

उन्होंने कहा कि इससे कोई इनकार नहीं है कि शेख और अन्य लोगों की हत्या हुई है लेकिन ‘सबूतों के आधार पर अदालत इस नतीजे पर नहीं पहुंच सकती है कि वर्तमान आरोपियों को इन हत्याओं के लिए जवाबदेह ठहराया जा सकता है या उनसे कोई सवाल किया जा सकता है.’

हैदराबाद से महाराष्ट्र के सांगली लौट रहे तीनों पीड़ितों को 22-23 नवंबर 2005 की दरमियानी रात को पुलिस की एक टीम ने हिरासत में ले लिया. दंपति को एक वाहन में ले जाया गया और प्रजापति को दूसरे वाहन में ले जाया गया.

इस मामले में जांच एजेंसी सीबीआई ने कहा था कि गुजरात और राजस्थान पुलिस की एक संयुक्त टीम ने 26 नवंबर 2005 को शेख की कथित तौर पर हत्या कर दी और इसके तीन दिन बाद कौसर बी की हत्या कर दी. उदयपुर की केंद्रीय जेल में बंद प्रजापति की 27 दिसंबर 2006 को गुजरात-राजस्थान सीमा पर एक मुठभेड़ में हत्या कर दी गई.

सीबीआई ने कहा था कि ये 22 आरोपी उस टीम का हिस्सा थे जिन्होंने तीनों का अपहरण किया और बाद में मुठभेड़ में उन्हें मार दिया. इन 22 आरोपियों में से 21 गुजरात और राजस्थान के जूनियर पुलिसकर्मी हैं.

22वां आरोपी गुजरात के फार्म हाउस का मालिक है जहां कथित रूप से हत्या किए जाने से पहले शेख और कौसर बी को अवैध हिरासत में रखा गया था.

जस्टिस ने कहा, ‘अभियोजन ऐसा कोई दस्तावेजी या ठोस सबूत पेश करने में नाकाम रहा जिससे 22 आरोपियों के खिलाफ साजिश की थ्योरी साबित हो सके. वह उनके खिलाफ लगाए सभी आरोपों को साबित करने में नाकाम रहा. अत: सभी आरोपियों को बरी किया जाता है.’ उन्होंने कहा कि कोर्ट ‘परिस्थितिजन्य  और सुने सुनाए सबूतों’ पर विश्वास नहीं कर सकती.

पुलिस का कहना था कि सोहराबुद्दीन का संबंध लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी समूहों से था और वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की कथित तौर पर साजिश रच रहा था जो उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे.

हाईप्रोफाइल मामला, सालों तक लंबित, केस में उतार-चढ़ाव

जस्टिस ने कहा कि अभियोजन के ईमानदार प्रयासों के बावजूद मामला साबित नहीं हो सकता क्योंकि सीबीआई के पास दस्तावेजी सबूत और भरोसेमंद गवाह नहीं थे. उन्होंने कहा, ‘अभियोजन पक्ष के दो अहम गवाह मुकर गए. अभियोजन पक्ष क्या कर सकता है? वह उन्हें ना मुकरने के लिए मजबूर नहीं कर सकता.’

जब सीबीआई ने इस मामले की जांच शुरू की तो उसने गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह, राजस्थान के गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया और डी जी वंजारा और पी सी पांड्या जैसे वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों समेत 38 लोगों को आरोपी बनाया. अभियोजन ने 210 गवाहों के बयान दर्ज किए जिनमें से 92 मुकर गए.

सीबीआई अदालत ने सबूतों के अभाव के कारण शाह, कटारिया, वंजारा और पांड्या समेत 16 लोगों को आरोप मुक्त कर दिया था.

इस मामले में विवाद तब पैदा हुआ जब सीबीआई अदालत के न्यायाधीश बी एच लोया की तीन साल पहले दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. उनके परिवार ने आरोप लगाया था कि लोया को मुख्य आरोपी के पक्ष में फैसला सुनाने के लिए रिश्वत की बड़ी रकम की पेशकश की गई थी.

इस मामले की जांच शुरुआत में गुजरात सीआईडी ने की और फिर 2010 में सीबीआई को सौंप दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय एजेंसी के अनुरोध पर 2013 में निर्देश दिया कि मुकदमे को गुजरात से मुंबई ट्रांसफर किया जाए ताकि निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित हो. सीबीआई ने दावा किया था कि वंजारा ने प्रजापति की कथित मुठभेड़ का हिस्सा बनने के लिए गुजरात के आईपीएस आशीष पांड्या को बुलाया था जो छुट्टी पर थे.

अदालत ने कहा, ‘सीबीआई यह साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत, फोन रिकॉर्ड पेश करने में नाकाम रही कि वंजारा ने इस काम के लिए पांड्या को बुलाया था. ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे यह साबित हो कि वंजारा को कथित साजिश की कोई जानकारी थी.’

अदालत में सुनवाई के दौरान मौजूद रहे शेख के भाई रुबाबुद्दीन ने कहा कि वह फैसले से निराश हैं और इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे. अदालत के फैसले के बाद सभी आरोपियों ने एक-दूसरे को गले लगकर बधाई दी. उनके चेहरे पर राहत साफ देखी जा सकती थी.