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बुनकरों का कारोबारियों से ताना-बाना जोड़ता कपड़ा मंत्रालय

स्मृति ईरानी और अनंत कुमार कपड़ा मंत्रालय में नए तरीकों से काम करके अच्छे परिणामों की उम्मीद कर रहे हैं.

Pallavi Rebbapragada

केंद्रीय सचिवालय की वो सड़कें, जो गोल चक्करों पर अपना ही साथ छोड़कर दोबारा अपने-आप से ही मिल जाती हैं, उन्हीं सड़कों पर ऐसी इमारतें भी हैं जो घेराबंदी का पर्दा पहनकर कब से वहीं पर वैसे ही खड़ी हैं.

इनमें सरकारी बाबू पलटती सरकार और बदलते मौसम के बीच आते-जाते रहते हैं. कमरों के बाहर लगी प्लेट्स पर नाम बदल जाते हैं पर कानून और काम करने का तरीका वही रहता है. शर्ट-पैंट पहने हुए पुरुष और हल्के-फुल्के प्रिंट वाले सलवार-कमीजों में महिलाएं, दोनों ही किसी बदलाव से प्रभावित हुए बगैर बड़ी कुशलता से देश चलाने के कामों में लगे रहते हैं.


बदलते वक्त का गवाह

उद्योग भवन में एक व्यक्ति हैं, जो धोती-कुर्ते के अवतार में आ गए हैं और अब अपनी सर्विस के आखिरी सालों में समर्पण भाव से देश की सेवा करना चाहते है. ये कोई और नहीं, कपड़ा मंत्रालय के सेक्रेटरी अनंत कुमार सिंह है.

जुलाई 2016 में स्मृति ईरानी को कपड़ा मंत्रालय का मंत्री बनाया गया था और आज दोनों मिलकर भारत के कारीगरों की तकदीर की सुई में आशाओं के धागे पिरो रहे हैं.

फ़र्स्टपोस्ट ने जब उनसे नई नीतियों पर बातचीत छेड़ी, तो दोनों के अनोखे ढंग से काम करने का तरीका भी सामने आया. स्मृति हंसकर कहती हैं, ‘जब यह मेरे साथ काम करने आए तो मैंने इन्हें बोला कि आपने मेरे बारे में बहुत सुना होगा और जो भी सुना होगा, वह सब सच हैं.’ उन्होंने आगे जोड़ा, ‘जब मुझे यह नया मंत्रालय सौंपा गया तो लोगों ने कहा कि मेरा डिमोशन हुआ है पर मेरे बॉस को पता था कि मुझे बारीकी से काम करने की आदत है.’

भारतीय कारीगरी पर गर्व करने की जरूरत

स्मृति ईरानी ने अपनी संस्कृति और कला पर गर्व करने की जरूरत पर कहा, ‘हमेशा से कारीगरी और दस्तकारी से जुड़ी गरीबी को ही दुनिया के सामने पेश किया जाता हैं. ऐसा नहीं है कि बाकी देशों के अर्थ-प्रबंधन में दिक्कतें नहीं हैं, फिर भी वह अपनी पारंपरिक कलाओं को बड़े गर्व से दुनिया के सामने रखते हैं. अब वक्त आ गया है कि हम भी वही करें. शान से सर उठाकर बोलें कि भारत में जो मिलता है, वैसा दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा.’

वहीं उनके सामने धोती-कुर्ता पहनकर बैठे अनंत कुमार दिखाते हैं कि वह सुबह-शाम अपने कपड़ों के जरिए देश प्रेम का एलान करते हैं. जब हमने उनसे इस बारे में पूछा तो वो बोले, ‘मैंने किसी सोशल फंक्शन में कभी पैंट-शर्ट नहीं पहना. पहले एसएआर मायने रखता था, इसीलिए दफ्तर में नहीं पहनता था. पर अब उन बंधनों से मुक्त हो गया हूं, अब तो बस समर्पण भाव से देश की सेवा करनी है.’

निटवेयर की नई राजधानी तिरुपुर

अनंत कुमार आजकल निटवेयर क्षेत्र के लिए एक पैकेज तैयार कर रहे है. इससे पहले उन्होंने स्मृति ईरानी के साथ पावरलूम के लिए व्यापक स्कीम पर काम किया था. किसी भी स्कीम को बनाने के पहले स्मृति और अनंत कुमार सारे साझेदारों (बनारस के निम्न-माध्यमवर्गी कारीगर से लेकर बिरला जैसे बड़े व्यापारी तक) से बातचीत करते हैं. स्मृति कहती हैं, ‘यह मंत्रालय लोगों से पूछे बिना स्वतंत्र रूप से कोई फैसला नहीं लेगा.’

हाल ही में तमिलनाडु के तिरुपुर के निटवेयर इंडस्ट्री पर 200 करोड़ रुपए का एनपीआर था. स्मृति और अनंत कुमार को जब यह पता चला, तो तिरुपुर को इस भारी रकम से मुक्ति मिली. नतीजा यह है कि आज तिरुपुर भारत की निटवियर राजधानी बनने जा रहा है. दोनों ने समझाया कि चर्चा करना जरूरी है. चार्ज संभालने के कुछ दिन बाद ही यह पता चला कि फूड-पैकेजिंग में जो कपड़ा लगता है, अगर उसमें कुछ कमी पाई जाती थी तो उस कपड़े की कंपनी के मालिक को जेल हो जाती थी. इसका कारण यह था कि शर्ट पर कपड़े की एक्सपायरी डेट नहीं होती थी.

दोनों कहते हैं, ‘अब शर्ट की एक्सपायरी डेट कहां से लाएंगे? हमने दो मंत्रालयों की बातचीत से मामला सुलझा दिया जिसको लेकर लोग बीस-बीस साल से लड़ रहे थे.’

स्मृति और अनंत कुमार ने पांच साल के रिकॉर्ड चेक कर पता लगाया कि 40 सरकारी स्कीमों में से 22 हर साल सरेंडर कर दी जाती थीं और एनजीओ-कॉर्पोरेटिव के नाम पर सरकार से पैसा लिया जाता था जो कारीगरों तक नहीं पहुंचता था, आज इन संस्थाओं से भी पिछले रिकॉर्ड सरकार मांग रही है.

वो बताती हैं, ‘हम बिचौलिए हटा रहे हैं और मध्यम स्तर के कारीगरों और व्यापारियों को सूरत, भिवंडी, बनारस जैसी जगहों से बुलाकर नीति विकसित और लागू करने के काम में शामिल करते हैं.’

कपड़ा उद्योग को संगठित करने की जरूरत

कपड़ा उद्योग के क्षेत्र में दोनों ने महसूस किया कि देश को संगठित करने की आवश्यकता थी क्योंकि एक राज्य को पता ही नहीं कि दूसरे राज्य में क्या नयी तकनीक आ गई है. जैसे कि तिरुपुर में प्रोसेसिंग के बाद 40 पैसे में एंफ्लुएंस ट्रीट होता है और वही एफ्लुएंस बैंगलोर में 4 पैसे में ट्रीट होता है. इस काम के लिए दोनों देश के हर कोने में, अलग-अलग स्तर पर लोगों को फोन लगाते हैं, कभी सेक्रेटरी को तो कभी सीएम को.

राज्यों में आज 28 बुनाई सेंटर हैं, इन में भी नई ऊर्जा डाली जा रही है. भारत के जाने-माने शिल्प सुधारक जैसे कि लैला त्याबजी और जया जेटली और बंगाल के कारीगरों से जुड़ी हुए डिजाइनर अनाविला मिश्रा जैसे लोग सामग्री और तकनीक पर सलाह दे रहे है. यदि धागों की कमी भी हुई तो स्मृति बताती हैं कि अनंत जी खुद फोन करते हैं और उच्च स्तर पर मीटिंग भी करते हैं.

कुछ हफ्ते पहले कपड़ा मंत्रालय में #cottoniscool कैंपेन ने ट्विटर पर 70 मिलियन से अधिक लोगों को आकर्षित किया.

ट्विटर के बाहर जो दुनिया है, वहां केवल स्मृति ही नहीं, धोती-कुर्ता पहने अनंत कुमार भी हैंडलूम और पॉवरलूम पर देश की तरक्की के सपने बुन रहे हैं. ऐसा ताना-बाना कपड़ा मंत्रालय के अलावा आखिर और कहां देखने को मिलेगा.