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चाह कर भी पेट्रोल डीजल की कीमत और कम नहीं कर सकती केंद्र सरकार

अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत में सरकार अपने खर्च और नहीं घटा सकती है

Sindhu Bhattacharya

मोदी सरकार, दीवाली से पहले पेट्रोल-डीज़ल पर एक्साइज़ ड्यूटी में कटौती करके ख़ुद की पीठ थपथपा रही है. कुछ राज्यों के चुनाव से ठीक पहले लिया गया ये फैसला, साफ तौर से राजनीतिक फायदे के लिए उठाया गया लगता है.

मगर हमे यहां एक बुनियादी पहलू नहीं भूलना चाहिए कि टैक्स में महज दो रुपए प्रति लीटर की कटौती की गई है. जबकि मोदी सरकार के आने के बाद पेट्रोल-डीजल पर टैक्स इससे कई गुना ज्यादा लगाया जा चुका है.


नवंबर 2014 से लेकर जनवरी 2016 के बीच पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी नौ बार बढ़ाई गई थी. कुल मिलाकर पेट्रोल पर 11 रुपए 77 पैसे टैक्स का बोझ लादा गया, तो डीजल पर 13.47 रुपए का. और ये बोझ सिर्फ 15 महीनों में सरकार ने जनता पर लाद दिया था. अब सरकार इस में से दो रुपए घटाकर खुद की वाहवाही करने में जुटी है.

सरकार के टैक्स बढ़ाने की वजह से आम आदमी का घरेलू बजट पूरी तरह से बिगड़ गया था. जबकि टैक्स का बोझ जनता पर डालकर सरकार ने, 2016-17 में 2 लाख 42 हजार करोड़ रुपए एक्साइज ड्यूटी के तौर पर वसूले. जबकि इससे एक साल पहले ये रकम 99 हजार करोड़ रुपए ही थी.

तो अब टैक्स घटाने से आम आदमी को राहत मिलेगी और सरकार की आमदनी पर फर्क पड़ेगा. लेकिन ये कोई बहुत बड़ी राहत नहीं है. इस का गणित समझने के लिए हमें कुछ आंकड़ों पर नजर डालनी चाहिए.

मोदी सरकार के सत्ता में आने से पहले पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 9.48 रुपए थी और डीजल पर 3.56 रुपए. मौजूदा सरकार ने एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर पेट्रोल पर 21.48 रुपए और डीजल पर 17.33 रुपए पहुंचा दी. साफ है कि 2014 के मुकाबले, पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी दो गुने से ज्यादा हो गई. वहीं डीजल पर ये चार गुनी बढ़ा दी गई.

हाल ही में एक नए-नए मंत्री बने महाशय ने कहा कि जो लोग स्कूटर और कार खरीदने की औकात रखते हैं, उनके पास महंगा तेल खरीदने की भी क्षमता है. मंत्री का ये बयान मोदी सरकार के तेल पर टैक्स बढ़ाने को जायज ठहराने वाला ही था. यही तर्क दे-देकर मोदी सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर टैक्स इतना बढ़ा दिया है.

तेल पर टैक्स लगाने से केंद्र और राज्य सरकारों को मोटी कमाई होती है. इसीलिए हर सरकार इस पर टैक्स ज्यादा से ज्यादा लगाकर अपना खजाना भरना चाहती है. मोदी सरकार ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम घटने का फायदा उठाते हुए टैक्स बढ़ाकर अपनी झोली भरने का सिलसिला जारी रखा. लेकिन इससे आम आदमी का दिवाला निकल गया.

ये कटौती महज चुनावी राहत तो नहीं

ऐसे में सरकार ने अचानक टैक्स घटाकर जो गरीबों के प्रति मेहरबानी दिखाई है, वो अपनी ही नीति से पलटी मारने जैसा नाटक है. असल में सोशल मीडिया और विपक्षी दलों के लगातार हमलों से बचने के लिए सरकार ने ये कदम उठाया. सरकार की नजर आने वाले चुनावों पर भी है ही.

यही वजह है कि नौ बार टैक्स बढ़ाकर और एक बार घटाकर अपनी तारीफ करने की सरकार की कोशिश नौटंकी से ज्यादा नहीं. सरकार का दावा है कि इस कदम से उसे 13 हजार करोड़ का नुकसान होगा. लेकिन हमें और आपको तो बहुत मामूली सी राहत मिली है. शायद इससे महंगाई में भी थोड़ी सी राहत मिल जाए.लेकिन सरकार अगर वाकई महंगाई घटाने को गंभीर है तो उसे तेल पर टैक्स और घटाना होगा.

सीएनबीसी-टीवी 18 की खबर के मुताबिक खुद एक्साइज ड्यूटी घटाने के बाद केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से भी कहा है कि वो पेट्रोल-डीजल पर वैट कम करें. इससे तेल और सस्ता होगा. केंद्र ने सरकारी तेल कंपनियों से भी दाम घटाने को कहा है. उम्मीद की जा रही है कि पेट्रोल-डीजल के दाम 5 रुपए प्रति लीटर तक घट सकते हैं.

कोई भी राज्य सरकार कम नहीं कर रही वैट

सरकार के एक्साइज ड्यूटी घटाने से पेट्रोल महज 2.50 रुपए लीटर और डीजल 2.25 रुपए लीटर सस्ता हुआ है. अब तक किसी भी राज्य सरकार ने वैट घटाने का एलान नहीं किया है.

अगर पेट्रोल-डीजल 5 रुपए प्रति लीटर तक सस्ते होते हैं, तो देखना होगा कि तेल कंपनियों के मुनाफे पर इसका क्या असर पड़ता है. और सवाल ये भी है कि अगर राज्य की सरकारें, केंद्र के कहने पर टैक्स घटा सकती हैं, तो फिर वो तेल को जीएसटी के दायरे में लाने को भी राजी हो जातीं. ऐसा होता तो पेट्रोल-डीजल पर टैक्स अपने आप ही काफी कम हो जाता.

ट्विटर पर बहुत से लोगों ने एक्साइज ड्यूटी घटाने पर सरकार की खिंचाई की.

कमोबेश सब ने इसे भारी छूट कहकर इसका मजाक उड़ाया. इसकी तुलना ऑनलाइन कंपनियों में चलने वाली सेल से की. किसी ने कहा कि वो इतने पैसे बचा लेगा कि मर्सिडीज खरीद लेगा.

पेट्रोल-डीजल के दाम का गणित समझना बहुत आसान है. पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी लगाने से सरकार को कुल एक्साइज ड्यूटी की 84 से 87 फीसद तक की कमाई होती है. इस बारे में इंटीग्रेटेड रिसर्च ऐंड एक्शन फॉर डेवेलपमेंट ने एक रिपोर्ट तैयार की है (‘Converging the divergence between diesel and petrol prices: A case for rationalisation of the Central Excise Duty’).

पेट्रोल डीजल की कमाई के भरोसे है सरकार

इस रिपोर्ट के मुताबिक सरकार की कुल आमदनी का पांचवां हिस्सा पेट्रोल-डीजल पर टैक्स से ही आता है. ऐसे में सरकार अपनी आमदनी क्यों घटाना चाहेगी? टैक्स घटाने से तो उसे नुकसान होगा न! ऐसा कदम सरकार तभी उठाएगी जब उसे जनता को लुभाना होगा.

पिछले वित्तीय वर्ष मे सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर टैक्स लगाकर 4.4 लाख करोड़ रुपए कमाए थे. इस में से बड़ा हिस्सा यानी 62 फीसद केंद्र सरकार के खजाने में गया था. टैक्स में कटौती या बढ़ोतरी का सीधा असर राज्यों की तरफ से लगने वाले वैट पर पड़ता है.

CARE रेटिंग्स के मुताबिक पेट्रोल पर टैक्स इस वक्त 21.5 रुपए से लेकर 22.7 रुपए प्रति लीटर है. वहीं डीजल पर 17.3 से19.7 रुपए प्रति लीटर तक टैक्स सरकार वसूल रही है. फिर इन पर राज्य सरकारें भी टैक्स लगाती हैं. जो मिजोरम में 20 फीसद है, तो महाराष्ट्र में 48 फीसद. डीजल के मामले में मिजोरम में 12 फीसद टैक्स राज्य सरकार का है, तो सबसे ज्यादा 38 फीसद मध्य प्रदेश में है. केंद्र सरकार तो तादाद के हिसाब से टैक्स लगाती है. मगर राज्य सरकारों के टैक्स तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम घटने या बढ़ने के हिसाब से तय होते हैं. केंद्र के एक्साइज ड्यूटी घटाने का सीधा असर राज्यों की तरफ से लगने वाले वैट पर पड़ता है.

भले ही इस मामूली कटौती के बाद भी आम आदमी नाखुश हो, मगर सरकार इसके आगे टैक्स घटाएगी तो उसकी आमदनी काफी घट सकती है. इसका सीधा असर वित्तीय घाटे पर पड़ेगा.

बाजार की जानकार कंपनी कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज ने कहा कि सरकार के दो रुपए टैक्स घटाने से उसकी आमदनी वित्तीय वर्ष के बाकी महीनों में 13 हजार करोड़ रुपए कम होगी. पूरे साल में ये आंकड़ा 41 हजार करोड़ रुपए का होगा. ये जीडीपी का चौथाई फीसद है. इसमें रिजर्व बैंक की तरफ से सरप्लस में 28 हजार करोड रुपए की कमी भी शामिल है.

कोटक की रिपोर्ट कहती है कि अगर सरकार अपना खर्च नहीं घटाती है तो जीडीपी 3.5 फीसद रहेगा. मगर मौजूदा आर्थिक हालात से साफ है कि सरकार अपने खर्चे घटाने की हालत में नहीं है.