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सिमी एनकाउंटर में पुलिसिया लापरवाही ने उठाए सीएम पर सवाल

भोपाल सेंट्रल जेल से भागे आठ संदिग्ध सिमी आतंकियों के एनकाउंटर के बाद मुख्यमंत्री को एक पल ठहरकर आत्मविश्लेषण करना चाहिए.

Sanjay Singh

सोमवार को भोपाल सेंट्रल जेल से भागे आठ संदिग्ध सिमी आतंकियों के एनकाउंटर के बाद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को एक पल ठहरकर आत्मविश्लेषण करना चाहिए. उन्हें गंभीरता से विचार करना चाहिए कि क्यों उनके शासनकाल में मध्य प्रदेश में लॉ एंड आर्डर, खुफिया जानकारी जुटाने और जेल प्रशासन समेत पुलिस के सभी पहलुओं में तेजी से गिरावट आई है.

जबकि पुलिस बल में हेड कांस्टेबल राम शंकर यादव जैसे बहादुर और प्रतिबद्ध जवान हैं, जो सिमी कार्यकर्ता को जेल से भागने से रोकने के लिए अपनी जान की बाजी लगा देते हैं. ऐसे में यह घटना कुछ गंभीर सवाल पैदा करती है.


यादव एक ऐसे पुलिस बल में काम करते हैं जहां उनके लिए कोई बैकअप नहीं था? उनके बचाव के लिए कोई क्यों नहीं आया? जेल तोड़े जाने के समय कोई अलार्म क्यों नहीं बजा? ऐसा लगता है कि यादव जैसे जवान अपवाद है. इसके अलावा मध्य प्रदेश पुलिस अक्षम है.

मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज ने आधिकारिक और नैतिक रूप से अच्छा किया. वे शहीद हेड कांस्टेबल के घर गए. उन्हें श्रद्धांजलि दी. उनके अंतिम संस्कार में भाग लिया. अनुग्रह राशि की घोषणा की. यादव की बेटी की शादी के लिए अतिरिक्त पैसे आवंटित किए.

एनकाउंटर पर हमलावर राजनीति

शिवराज ने एनकाउंटर के राजनीतिकरण करने के लिए अपने राजनीतिक विरोधियों पर निशाना भी साधा. उन्होंने कहा कि उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी एनकाउंटर पर सवाल उठा रहे हैं. उन्हें हेड कांस्टेबल का बलिदान दिखाई नहीं पड़ता है.

सरकार पर लग रहे आरोपों को खारिज करते हुए उन्होंने कहा,'खतरनाक अपराधियों का सफाया कर दिया गया है. अगर ये भागने में सफल हो जाते तो पता नहीं कितना अपराध फैलाते.'

वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस महासचिव और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने जेल तोड़ने की घटना को बिल्कुल अलग मोड़ दिया. उन्होंने सवाल उठाया कि यह कैसे संभव हुआ केवल मुस्लिम सिमी कार्यकर्ता जेल तोड़कर भागने में सफल हुए, कोई हिंदू नहीं. फिर इस आरोप का जवाब शिवराज के लिए देना आसान रहा क्योंकि दिग्विजय का बयान राजनीति से प्रेरित लग रहा था.

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि शिवराज सिंह ने स्थिति का सही आंकलन क्यों नहीं किया. एनकाउंटर के बारे में दावा करने से पहले सारे तथ्यों को सही तरीके से इकट्ठा क्यों नहीं किया गया?

उन्होंने आठ कथित सिमी आतंकियों की हत्या करने के लिए अक्षम पुलिस बल की तारीफ क्यों की. कथित आतंकी पहाड़ की एक चोटी पर चारो तरफ से घिर गए थे और उनके भागने के मौके बहुत कम थे.

हालांकि आप इसको लेकर यादव की बहादुरी और प्रतिबद्धता पर सवाल नहीं खड़ा कर सकते हैं. यादव के दो बेटे सेना में हैं और बेटी की अगले पांच हफ्ते में शादी है. समस्या यह है कि शिवराज ने दोनों बातों को मिला दिया.

यादव की मौत और एनकाउंटर को लेकर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के विरोधी बयान दो अलग—अलग समीकरण हैं.

वास्तव में इन दो अलग—अलग बातों को मिलाकर जनता को गुमराह करने की कोशिश की गई. यहां कुछ है जिस पर शिवराज की चिंता और बढ़ जाएगी.

भारत में सबसे पहले भोपाल सेंट्रल जेल को 2004 में आइएसओ (इंटरनेशनल आॅर्गनाइजेशन फॉर स्टैंडर्डआइजेशन) 9001-2000 सर्टीफिकेट दिया गया था. यह सर्टिफिकेट कैदियों को बेहतर सुविधाएं देने के लिए दिया गया था.

लचर कानून व्यवस्था पर जवाब देते नहीं बन रहा

यह शिवराज के गद्दी पर बैठने से एक साल पहले की बात है. जितनी आसानी से सिमी के कथित आतंकी भागने में सफल हुए उससे पता चलता है कि प्रशासन के सुरक्षा मानक कितने कमजोर थे. सीसीटीवी कैमरे काम नहीं कर रहे थे.

खाने के बर्तन को आसानी से धारदार हथियारों में बदला गया. चाबियों को अंदर ही बनाया गया या फिर बाहर से मंगाया गया? उंची दीवारों को आसानी से मापा गया. सुरक्षा कर्मी ड्यूटी के दौरान सोते रहे.

प्रशासन ने इसी समूह के सदस्यों द्वारा खंडवा जेल तोड़ने से कोई भी सबक नहीं लिया. कथित आतंकी जब भाग रहे थे तब अधिकारी दिए जलाने और पटाखे फोड़ने में व्यस्त रहे. यह पूरा मसला सिविल और पुलिस अधिकारियों द्वारा भ्रष्ट—अक्षम जेल मैनेजमेंट की तरफ इशारा करता है.

ऐसे में यह विडंबना है कि जेल वेबसाइट आइएसओ सर्टीफिकेशन और सुरक्षा रिकॉर्ड का दावा करती है. जिस तरीके से सैकड़ों पुलिसकर्मी भागे हुए कथित आतंकियों की तलाश करते हैं और जिस तरीके से यह कथित मुठभेड़ होती है. अक्षमता और मूर्खता की एक गाथा का पता चलता है.

इससे साफ पता चलता है कि मध्य प्रदेश पुलिस ने वास्तविक एनकाउंटर के हालात का सामना नहीं किया है. खासकर हाल के दिनों में. मुख्यमंत्री और उनकी सरकार को राज्य पुलिस बल की इस कार्रवाई को समझाने के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा.

एनकाउंटर के जो कथित वीडियो सामने आए हैं उन्हें देखकर नहीं लगता कि ये वर्दीधारी और प्रशिक्षित पुलिस अधिकारियों द्वारा किया गया है. लगता है कि एक उन्मादी भीड़ नफरत करने वाले लोगों को मार रही है.

वीडियो में पुलिस कर्मी 303 राइफलों से शूटिंग करते दिखते हैं. कुछ पुलिसकर्मी अपने फोन पर इसकी रिकॉर्डिंग करते हैं. कुछ पुलिसकर्मी दूरी से फायरिंग करते दिखते हैं. कुछ शवों पर गोलीबारी करते दिखते हैं. यह सब कुछ इस एनकाउंटर को फर्जी और मूर्खतापूर्ण बनाता है.

यह कैसी प्रभावी पुलिस है? शिवराज को आत्मविश्लेषण करना होगा और जवाब देना होगा