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सिक्किम विवाद: लद्दाख पहुुंचे राष्ट्रपति कोविंद, क्या होगी चीन की रणनीति?

पाकिस्तान के साथ मिलकर चीन की नजर सियाचिन ग्लैशियर पर भी क्योंकि यह साफ पानी का विशाल भंडार भी है

Prakash Katoch

राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले दौरे पर रामनाथ कोविंद लद्दाख पहुंच चुके हैं. यहां वह सैन्य टुकड़ियों से भी मिले और उन्हें संबोधित भी किया. तय कार्यक्रम के मुताबिक राष्ट्रपति ने लद्दाख स्काउट के समारोह में हिस्सा लिया और विशिष्ट सेवा के लिए इस यूनिट को सम्मानित किया.

राष्ट्रपति की यात्रा से पहले सेना प्रमुख बिपिन रावत ने स्थिति का जायजा लेने के लिए लद्दाख का तीन दिवसीय दौरा किया था. लेह में जनरल रावत राष्ट्रपति की अगवानी करेंगे और समारोह के दौरान उनके साथ बने रहेंगे. राष्ट्रपति का दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब डोकलाम में पिछले दो महीने से भारतीय सेना और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के बीच गतिरोध बना हुआ है.


हालांकि भारत ने सुझाव दिया है कि दोनों पक्ष अपनी-अपनी सेना एक साथ हटाएं (एक सम्मानजनक हल) लेकिन चीन लगातार इस बात पर जोर दे रहा है कि भारत एकतरफा अपनी सेना हटाए.

यह बताना जरूरी है कि डोकलाम पर भारत के रुख से चीन हैरान रह गया है क्योंकि अब तक चीन आसानी से विदेशी भूमि पर वर्षों से कब्जा करता रहा है.

लद्दाख पहुंचे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (फोटो: फेसबुक )

चीनी सैनिकों की पत्थरबाजी ड्रैगन का रवैया दर्शाती है

चीनी मीडिया ने भी बेखौफ होकर जमकर झूठ फैलाए और धमकियों का सिलसिला भी जारी रहा. कहने की जरूरत नहीं कि दिल्ली में राजदूत और उसके नंबर दो समेत चीनी राजनयिक भी इस काम में शामिल रहे. झूठे तरीके से यह बात भी फैलाई गई कि डोकलाम भूटान का इलाका नहीं है और चीन ने बहुत पहले ही भारत को सड़क निर्माण के बारे में बता दिया था वगैरह-वगैरह.

फ्रांस में जन्मे विद्वान और इतिहासकार क्लाउड आर्पी के अनुसार इंग्लैंड और चीन के बीच 1890 कन्वेन्शन का सहारा ले रहा है जिसमे चीन सिक्किम व तिब्बत को भी उससे जोड़ रहा है ताकि जानबूझकर भ्रम पैदा किया जाए. भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड लैन्ड्सडॉन और शेंग ताई (ल्हासा से मांचू अम्बान) के बीच यह कन्वेन्शन हुआ था, जिसमें तिब्बत की सरकार से कोई सहमति नहीं ली गई थी. इस कन्वेन्शन और 1893 के ट्रेड रेगुलेशन (व्यापारिक नियम) को तिब्बत ने कभी मान्यता नहीं दी.

बाद में ब्रिटेन की सरकार ने 1904 में ल्हासा के लिए अभियान शुरू किया, जिससे 1914 में शिमला सम्मेलन का रास्ता बना. इसमें ब्रिटिश भारत, तिब्बत और चीन के बीच समान स्तर पर बातचीत हुई. बीजिंग की चाल ये रही है कि 1890 के सम्मेलन पर दोबारा वार्ता हो ताकि समानता के आधार पर 1914 में जो खासकर  तिब्बतियों के साथ शिमला सम्मेलन हुआ और फिर मैकमोहन लाइन निर्धारित करने वाला सीमा समझौता हुआ था, उन्हें रद्द किया जा सके.

चीन ट्राइ-जंक्शन को धूर्ततापूर्वक ‘गिपमोची’ कह रहा है लेकिन बतांग ला में स्थित ट्राइ जंक्शन जब प्रकृति के वाटर शेड प्रिंसिपल के आधार पर बना, तब 1890 सम्मेलन पर हस्ताक्षर हुए भी कई दशक बीत चुके थे. किसी भी तरीके से चीन ट्राई-जंक्शन को ‘गैरबराबरी का समझौता’ बताकर भी इसे ‘गिपमोची’ साबित नहीं कर सकता, क्योंकि तब कोई जानता भी नहीं था कि ‘गिपमोची’ का अस्तित्व है.

दुनिया में किसी ने भी सैनिकों को पत्थरबाजी करते नहीं सुना था, लेकिन चीन की सैन्य टुकड़ियों ने हाल ही में यह कर दिखाया है. पांगोंग त्सो के आसपास नुकीले पत्थरों का इस्तेमाल किया गया. यह संकेत है कि चीन डोकलाम को लेकर कितना बेचैन है और पीएलए कितना नीचे गिर सकता है.

स्वाभाविक रूप से हमारी सेना ने जवाब दिया और दोनों ओर के लोग घायल हुए. यह हास्यास्पद है कि चीन कह रहा है कि उसे घटना के बारे में पता नहीं है क्योंकि इसके राजनीतिक कमांडर अपनी सेना की गर्दन पर चौबीसों घंटे खड़े रहते हैं. पत्थरबाजी की घटना के बाद छुसुल में उसी दिन फ्लैग मीटिंग के दौरान चीन ने इसका आरोप भारत पर मढ़ा, जैसा कि हमेशा वह करता रहा है.

जल स्रोत पर कब्जा करना चाहता है चीन

चीन रणनीतिक रूप से जमीन हड़पने को छोड़कर हर तरह से आक्रामक रहा है जिसका मकसद प्राकृतिक संसाधनों, जैसे जल स्रोत, पर कब्जा करना रहा है. चीन ने आक्रमण किया और अवैध तरीके से तिब्बत पर कब्जा जमाए हुए है जहां पानी, खनिज का विशाल भंडार है. अक्साई चीन में यूरेनियम (और दूसरे खनिज) और शख्सगाम में साफ पानी का भंडार है. डोकलाम पर आक्रमण और उस पर कब्जा करने का मकसद न सिर्फ रणनीतिक रूप से ऊंची जमीन पर क़ब्ज़ा करना है जो सिलिगुड़ी कॉरिडोर के पास है बल्कि उसका मकसद यहां से निकलने वाली तीस्ता नदी पर भी नियंत्रण करना है.

चीन ने हाल में वियतनाम को भी हमले की धमकी दी है और वियतनाम के एक्सक्लूसिव इकॉनोमिक जोन के भीतर ब्लॉक 136-03 में तेल का दोहन करने वाली स्पेन के रेप्सोल ड्रिलिंग को रुकवा दिया. जबसे यह बात सामने आयी है कि यह इलाका तेल और गैस का भंडार है, चीन इसे विवादास्पद होने का दावा कर रहा है.

डोकलाम गतिरोध के बाद चीन इस पर कब्जा करने की कोशिश में है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कोशिश भारत को परेशान करने की है क्योंकि वे खुद परेशान होना नहीं चाहते. लेकिन चीन इस बात पर जोर दे रहा है कि भारत ने डोकलाम में चीनी क्षेत्र में घुसपैठ की है तो इसका मतलब ये है कि चीन को इस बात का बिल्कुल मलाल नहीं है कि उसने घुसपैठ की है. पीएलए उत्तराखंड के चमोली जिले के बाराहोती इलाके में भी घुसपैठ करता रहा है. चीन के राजदूत दार्जिलिंग के डीएम से मिले और चीन लद्दाख के मैदानी देपसांग इलाके में भी घुसपैठ करता रहा है.

हिटलर जैसा है चीन

पाकिस्तान के साथ मिलकर चीन की नजर सियाचिन ग्लैशियर पर भी क्योंकि यह साफ पानी का विशाल भंडार भी है और यह शख्सगाम घाटी (जिस पर अवैध रूप से चीन ने कब्जा कर रखा है) से सटा भी है. यह चीन का बेहद आक्रामक रुख है और वह भारत को उग्र प्रतिक्रिया के लिए न्योता दे रहा है.

लेकिन अगर चीन को घुसपैठ में सफलता मिल जाती है और उस ज़मीन पर उसका कब्जा हो जाता है जिसकी जद में साल्ट्रो की पहाड़ियों पर उत्तरी और मध्य ग्लेशियर जाने वाले रास्ते आते हैं या पूरब की ओर से उसे कोई ऐसा बेस कैम्प मिल जाता है जहां से ऊंची जमीन से वह निगरानी कर सके, तब चीन के लिए डोकलाम पर बातचीत करना भी आसान हो जाएगा.

कराकोरम दर्रा (जहां केवल पेट्रोलिंग होती है) के दक्षिण और दक्षिण पश्चिम का इलाका चीन के लिए इस नजरे से महत्वूपर्ण है और यह उसे ऐसा अवसर देता है. निश्चित रूप से यह कठिन ऑपरेशन होता लेकिन भारत ने अब तक क्यों नहीं साल्ट्रो माउंटेन पर कब्जा किया? सभी विकल्पों और व्यावहारिकता को ध्यान में रखकर इस पर सर्दी के मौसम में चौंकाते हुए कदम उठाया जा सकता है.

अगला ब्रिक्स सम्मेलन की अध्यक्षता चीन करने जा रहा है (3-5 सितंबर) और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) का 19वां राष्ट्रीय सम्मेलन भी इसी सर्दी में प्रस्तावित है. भारत के साथ तकरार मोल लेना चीन के लिए मूर्खतापूर्ण है लेकिन एडोल्फ हिटलर भी खुद समझता था कि वह खास प्रजाति का है और वही सुपरमैन है. अपने आसपास गलत औरा बनाकर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी चीन को वैसी ही स्थिति में धकेलती दिख रही है.

(लेखक भारतीय सेना के सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल हैं)