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जानिए, किस फ्रेंच क्रांतिकारी के जीवन को हूबहू जी गए शहीद भगत सिंह

भगत सिंह फ्रांसीसी क्रांतिकारी से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने उनके जैसा ही जीवन जिया.

Mridul Vaibhav

यह कैसे हुआ कि मामूली हथियारों से लैस कुछ नौजवानों ने ब्रिटिश साम्राज्य की चूलें हिला दीं? ऐसा क्या था, जिसने उन्हें 20-22 साल की उम्र में ऐसा कुछ कर गुजरने को प्रेरित किया और जो भारतीय इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज हुआ. इसे जानकर आज भी युवा पीढ़ी की रगों में लहू दौड़ने लगता है.

लेकिन अगर हम इतिहास के पन्ने टटोलें तो दोनों क्रांतिकारियों के बारे में हमें कई चौंकाने वाली जानकारियां मिलेंगी. आप यह जानकर हतप्रभ रह जाएंगे कि क्रांतिकारियों के इतिहास में भगतसिंह अकेले ऐसे बलिदानी हुए हैं, जिन्होंने एक फ्रांसीसी बलिदानी के जीवन को हूबहू जीकर दिखा दिया.


यह ऐसा है जैसा कि मशहूर शायर फै़ज़ अहमद फै़ज़ ने कहा है-

मकाम फ़ैज़ कोई राह में जचा ही नहीं,

जो कूए यार से निकले तो सू ए दार चले...

सू ए दार यानी कि फांसी का फंदा. प्रेम करने वाले दिनों में भगतिसंह ने फांसी का फंदा चूमा और मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए झूल गए.

दोनों क्रांतिकारी अराजकतावाद से प्रभावित रहे

हम जिस फ्रांसीसी क्रांतिकारी की बात कर रहे हैं, वे मशहूर क्रांतिकारी थे ऑगस्टे वैलिएंट. वैलिएंट 27 दिसंबर, 1861 को फ्रांसीसी शहर मेजिएरेज में पैदा हुए थे. वे अराजकतावादी थे. वे महज 32 साल जिए. उन्हें तीन फरवरी 1894 को फ्रांसीसी सरकार ने मौत की गोद में सुला दिया था. उन्होंने फ्रांसीसी समाज में क्रांति के लिए वैसे ही काम किए, जैसे भगतसिंह और उनके साथियों ने किए.

सरदार भगतसिंह भी मार्क्सवाद, समाजवाद और गणतंत्रवाद से ही नहीं, वे अराजकतावाद से भी बहुत प्रभावित रहे थे. मशहूर रूसी क्रांतिकारी और विचारक मिखाइल बकूनिन अराजकतावाद के जनक विचारकों में थे.

उनसे अनेक भारतीय क्रांतिकारी प्रभावित रहे. इनमें लाल हरदयाल भी प्रमुख थे, जिन्होंने बाद में विवेकशील मानवतावाद की विचारधारा की प्रस्थापना भारतीय क्रांतिकारियों में की और इसे अागे बढ़ाया.

सरदार भगतसिंह ने इस फ्रांसीसी क्रांतिकारी का जीवन पढ़ा तो वे उससे इतने प्रभावित हुए कि उसके जीवन को ही जैसे हूबहू जी लिया.

वैलिएंट की तरह भगतसिंह भी अराजकतावाद से प्रभावित रहे थे. भगतसिंह ने अपने मुकदमे में कहा था, 'हम कोई हिंसक आंदोलनकर्ता नहीं है. हम न्यायिक पवित्रता और ईमानदारी में विश्वास करते हैं.'

'बहरों को सुनाने के लिए महाघोष चाहिए'

वैलिएंट और भगतसिंह विश्व भर के क्रांतिकारियों के बीच आश्चर्यजनक समानताओं के कारण प्रसिद्ध हैं. वैलिएंट ने फ्रांस के चैंबर ऑफ डेपुटीज पर 9 दिसंबर, 1893 को बम फेंका था. वजह यह थी कि एसेंबली एक जनविरोधी कानून पारित करने जा रही थी.

वैलिएंट ने एसेंबली पर देसी बम फेंका था. बम में कमजोर डिवाइस लगाई गई थी, ताकि कोई जनहानि न हो. वैलिएंट पर मुकदमा चला तब भी उन्होंने कहा कि उनका मकसद किसी की जान लेना नहीं था. वे तो बस फ्रांस की गूंगी-बहरी सरकार को कुछ सुनाना चाहते थे.

वैलिएंट के बचाव के लिए बहुत कोशिशें की गईं लेकिन न्यायाधीशाें ने उन्हें फांसी की सजा दी. जैसे भगतसिंह को फांसी की सजा सुनाई गई. वैलिएंट को जब फांसी दी जा रही थी तो उन्होंने नारे लगाए, 'डेथ टू दॅ बॉर्ज्वीज! लॉन्ग लिव ऐनार्की!!!'

सरदार भगतसिंह को जब फांसी दी गई थी तो उन्होंने भी फांसी का फंदा चूमते हुए नारे लगाए, 'अधिनायकवाद, तेरा नाश हो! क्रांति अमर रहे! इंकलाब जिंदाबाद!!!'

यही नहीं, जिस समय एसेंबली पर बम फेंका गया, तब भी भगतसिंह और वैलिएंट के शब्द एक जैसे ही थे, 'टू मेक दॅ डेफ हियर यानी बहरों को सुनाने के लिए महाघोष चाहिए.'

सैंटे गेरोनिमो कैसेरियो और एमिल हेनरी.

वैलिएंट ने बहुतों को प्रभावित किया

वैलिएंट काे तो फांसी दे दी गई, लेकिन उनके जीवन से भगतसिंह, एमिली हेनरी और सैंटे गेरोनिमो कैसिरेयो जैसे क्रांतिकारी योद्धा बहुत प्रभावित हुए. भगतसिंह को जिस समय फांसी दी गई, वे महज 23 साल के थे.

एमिल हेनरी महज 22 साल के युवा थे और उन्होंने फ्रांस में अपनी गतिविधियों से तूफान मचा दिया था.

कैसिरेयो थे तो इटैलियन लेकिन उन्होंने फ्रांसीसी क्रांतिवीरों वैलिएंट और हेनरी को मौत की सजा के खिलाफ फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैरी फ्रैंक्विस सादी कार्नोट को चाकू घोंपकर मार डाला था. इस पर कैसरियो को 21 साल की उम्र में फांसी हुई थी.