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धारा 377 पर 'सुप्रीम' फैसले के बाद एक बड़ा सवाल: पशुओं के साथ सेक्स करना क्रूरता है या व्यक्तिगत पसंद?

सीधी सादी सच्चाई बस इतनी भर है कि हमें बहुत से बरताव घिनौने जान पड़ते हैं लेकिन वे व्यक्ति के पसंद-नापसंद की उपज होते हैं और पशुओं के साथ यौन-संबंध बनाना भी ऐसी ही व्यक्तिगत पसंद-नापसंद का मामला है.

Praveen Swami

फांसी चढ़ने के हफ्ता भर पहले तक विलियम पॉटर सबसे सम्मानित समझी जाने वाली शख्शियतों में शुमार रहा. अदालत के दस्तावेजों से पता चलता है, ‘60 साल के उस नाजुक और कमजोर शख्स’ ने 1638 में न्यू हैवेन की प्यूरिटन कॉलोनी बनाने और इस तरह ईश्वर का विधान धरती पर साकार करने में मदद की थी. वह रेवरेन्ड जॉन डेवनपोर्ट्स चर्च का भी सदस्य था. यह चर्च सबसे सच्चे और नेक लोगों की जमावड़े की जगह के रूप में प्रसिद्ध था.

लेकिन विलियम पॉटर की जिन्दगी के कुछ छुपे हुए राज भी थे. साल 1662 की एक सुबह उसके किशोर उम्र बेटे को इस राज का पता चल गया. बेटे ने देखा कि उसका पिता एक बाड़े में नन्हें सुअर के साथ सेक्स कर रहा है.


कानून की दुनिया के इतिहास में शायद इसे गुनाह का सबसे विचित्र कबूलनामा करार दिया जायेगा. दरअसल, विलियम पॉटर अपनी पत्नी को अपने पालतू जानवरों के बीच ले गया और वहां उसने एक-एक करके उन सारे जानवरों को अंगुली के इशारे से दिखाया जिनके साथ उसने सेक्स किया था. अगली सुबह विलियम पॉटर के साथ दो बछिया, एक गाय, तीन भेड़ और एक सुअर भी फांसी पर चढ़ाये गये.

पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक यौन-संबंधों को अपराध की श्रेणी से मुक्त करने का फैसला सुनाया और इसे ठीक ही भारत में वैयक्तिक स्वतंत्रता (इंडिविजुअल लिबर्टी) की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम मानकर सराहा जा रहा है. लेकिन अंग्रेजी जमाने में बनी धारा 377 के एक हिस्से में यह भी जिक्र है कि जानवरों के साथ सेक्स करना अपराध है और अदालत ने धारा 377 के इस हिस्से को कायम रखा है. अदालत के ऐतिहासिक फैसले के इस हिस्से पर कोई टिप्पणी नहीं देखने में आयी. यहां तक कि जो लोग उदारवाद के प्रति सबसे ज्यादा निष्ठावान हैं वे भी पशुओं के साथ यौन-कर्म को हद पार करने का वाकया ही करार देंगे.

बात चाहे अभिव्यक्ति की आजादी की हो या पोर्नोग्राफी की, चाहे जाति की हो या फिर धर्म की-हमारे देश में सबसे जीवंत बहसें दो खेमे में बंटी नजर आती हैं. उनमें एक तरफ व्यक्ति के अधिकारों की दुहाई देने वाले लोग होते हैं तो दूसरी तरफ सामाजिक परिपाटी का हवाला देने वाले लोग. उदारवादी लोकतंत्र का काम है कि अगर व्यक्ति या फिर समाज का नुकसान हो रहा है तो वह ऐसा होने से रोके. उदारवादी लोकतंत्र का काम किसी व्यक्ति की पसंद या नापसंद को आपराधिक ठहराना नहीं है भले ही व्यक्ति की कोई पसंद या नापसंद चाहे कितनी भी शर्मनाक क्यों ना जान पड़ती हो.

चूंकि पशुओं के साथ यौन-संबंध बनाना हमें बहुत ही घिनौना जान पड़ता है सो इस तथ्य को यहां हम एक लेंस के रूप में इस्तेमाल करते हुए अपने सिद्धांत की परीक्षा कर सकते हैं.

पशुओं के साथ यौन-संबंध बनाने के खिलाफ कुछ लोगों की दलील होगी कि दरअसल मुख्य बात सहमति की है. मनुष्य चाहे वो होमोसेक्सुअल हो या हेट्रोसेक्सुअल, अपने यौन-संबंध के लिए आपसी रजामंदी जाहिर कर सकते हैं लेकिन पशु बेजुबान होते हैं, वे ऐसी रजामंदी नहीं जाहिर कर सकते. यहां थोड़ी देर के लिए भूल जायें कि वैवाहिक संबंध के दायरे में जोर-जबरदस्ती से स्थापित यौन-संबंध को अब भी भारत में अपराध की श्रेणी में नहीं गिना जाता क्योंकि हिन्दू विधि के मुताबिक यौन-संबंध स्थापित होने को विवाह-संबंध कायम होने की एक पूर्वशर्त माना गया है. इस एक अपवाद को थोड़ी देर के लिए परे रखें तो कहा जा सकता है कि यौन-संबंधों के मामले में अच्छे-बुरे की पहचान (नैतिकता) की लोकतांत्रिक कसौटी है ऐसे संबंध के लिए आपसी रजामंदी का होना.

जो लोग बच्चों के साथ यौन-संबंध बनाते हैं वे अपराधी हैं. ऐसा इसलिए कि कोई नाबालिग ऐसी सहमति नहीं दे सकता जिसे सही अर्थों में सहमति कहा जा सके. बलात्कार को लेकर जो कानून हैं उनमें भी मूल विचार यही है कि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के शरीर के साथ अपना मनमाना बरताव नहीं कर सकता. और, इसी तर्क का आगे विस्तार करके यह कहा जाता है कि पशु चूंकि रजामंदी नहीं जाहिर कर सकते इसलिए उनके साथ यौन-संबंध बनाना एक अपराध है.

लेकिन दार्शनिक आधार पर देखें तो इस दलील की बुनियाद बहुत कमजोर नजर आती है. चाहे कोई बालिग हो या नाबालिग लेकिन यह बात तो है ही मनुष्य अपने साथी मनुष्य की इच्छा के अनुकूल आचरण करके साझे अनुभव के आधार पर एक अंतर्दृष्टि तक पहुंच सकता है. लेकिन जहां तक पशुओं का मामला है, उनके बारे में ऐसी बात नहीं कही जा सकती. दरअसल यह जानने का कोई साधन नहीं कि रजामंदी जैसा शब्द किसी जानवर के लिए कोई मायने रखता भी है या नहीं.

दर्शनशास्त्र के धरातल पर पैदा होने वाली इस मुश्किल की तरफ थॉमस नेगल ने 1974 के अपने एक आलेख में ध्यान दिलाया था.. नेगल ने पूछा कि क्या मनुष्य उन अनुभवों का अर्थ समझ सकता है जो चमगादड़ होने के नाते किसी प्राणी को होते हैं ? नेगल ने तर्क दिया कि मनुष्य ये तो कल्पना कर सकता है कि उसके बाहें किसी पंख की भांति फैली हुई हैं और इन पंखदार बाहों के सहारे वह सुबह और शाम के वक्त उड़ते हुए अपने मुंह से कीट-पतंगे पकड़ रहा है. मनुष्य घड़ी भर को यह भी मान सकता है कि उसकी नजर बहुत कमजोर है और वह अपनी आस-पास की दुनिया को ऊंची आवृति वाली ध्वनि-तरंगों के माध्यम से ही पकड़ और समझ सकता है. मनुष्य यह भी कल्पना कर सकता है कि वो पेड़ की किसी डाली पर सिर नीचे और पैर ऊपर किये हुए दिन भर लटका हुआ है.

लेकिन नेगल ने यह भी कहा कि ‘इन सारी बातों से सिर्फ इतना भर पता चलता है कि किसी चमगादड़ सरीखा बरताव करने का अर्थ मेरे लिए क्या होता है. लेकिन यहां मूल सवाल तो यह है ही नहीं. मैं तो यह पूछ रहा हूं कि किसी चमगादड़ के लिए चमगादड़ होने का क्या अर्थ है?’

पशुओं के साथ यौन-संबंध बनाने के खिलाफ दूसरा सबसे मजबूत तर्क यह है कि ऐसा संबंध बनाना दरअसल पशुओं के साथ क्रूरता का बरताव करना है. इस दलील की परख के लिए जो सबूत हैं उन्हें मिला-जुला कहा जा सकता है. साल 2012 में वाइस मैगजीन ने कार्टागेना(कोलंबिया) के पुरुषों के बीच प्रचलित एक प्रथा के बारे में बताया. यह प्रथा गदहों के साथ सेक्स करने के बारे में है. डाक्यूमेंट्री से पता चलता है कि इसमें शामिल पुरुष जो कुछ कर रहे हैं उसे पशुओं के प्रति उनके प्यार का इजहार माना जा सकता है. दूसरी तरफ, यह भी दिख रहा है कि प्यार के इस इजहार का पशुओं पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ा यानि वे प्रकट रूप से किसी दुख-तकलीफ में पड़े नजर नहीं आ रहे.

माइक्रोसॉफ्ट के सियटल स्थित मुख्यालय के करीब इनेम्कलॉव में 2005 में एक विचित्र मामला पेश आया. पता चला कि यहां एक आलीशान महल में एक किस्म की वेश्यावृति चल रही है. पशुओं से यौन-संबंध बनाने में रुचि रखने वाले दुनिया भर के धनी लोग यहां अपनी लालसा की पूर्ति के लिए जुटते थे. मामले में जानवरों के साथ क्रूरता के बरताव का कोई आरोप नहीं लगा. और विडंबना कहिए कि पूरे प्रकरण में पीड़ित के रूप में कोई जानवर नहीं बल्कि एक व्यक्ति सामने आया. इस शख्स का नाम केनेथ पिनयन था जो घोड़े के साथ गुदा-मैथुन(एनल सेक्स) करते हुए मारा गया था.

बेशक यह नहीं कहा जा सकता कि किसी पशु ने दुख-तकलीफ में होने के लक्षण नहीं जाहिर किये तो इस स्थिति को उसकी रजामंदी मान लिया जाय. लेकिन यहां यह बात भी ध्यान रखने की है कि जानवरों की रजामंदी का मामला सिर्फ और सिर्फ तभी उठाया जाता है जब बात उनके साथ यौन-संबंध स्थापित करने से जुड़ी हो. जहां तक मानव जाति का मामला है, जब बात जानवरों के कृत्रिम गर्भाधान या फिर उन्हें बधिया करने की आती है या फिर उन्हें मारकर खा जाने की तो हम जरा भी उनकी रजामंदी की फिक्र नहीं करते.

बेशक कानून यह बात कहता है कि जानवरों को इस तरह ना मारा जाय कि उन्हें ज्यादा तकलीफ पहुंचे लेकिन फिर यही बात तो जानवरों के साथ यौन-संबंध बनाने को लेकर भी कही जा सकती है. पशुओं के साथ यौन-संबंध स्थापित करने के बारे में इस दलील को बुद्धिसंगत आधार की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.

पशुओं के साथ यौन-संबंध स्थापित करने के विरोध में खड़े लोग एक तीसरा तर्क भी दे सकते हैं. वे कह सकते हैं कि पशुओं के साथ यौन-संबंधन बनाना अप्राकृतिक है. लेकिन यह मान्यता सच्ची नहीं है.

प्राणिविज्ञानियों(जूलॉजिस्ट) ने ऐसी घटनाएं दर्ज की हैं जिनमें हिरण के साथ बंदर के और फर सील के किंग पेंग्विन के साथ सेक्स करने का जिक्र है. अनुवांशिक रूप से एक दूसरे के बहुत करीब पड़ने वाले जंतु जैसे कि कोयोतो और भेड़िए (वुल्व्ज्) या फिर ग्रिजली बीयर और पोलर बीयर तो दरअसल आपसी संबंध से संतान भी पैदा करते हैं. मनुष्यों में नियन्डेरथल प्राणियों का डीएनए मिलता है जिससे ये बात स्पष्ट हो जाती है कि 40 हजार साल पहले जब ये दो प्रजातियां मिली थीं तो आपसी संबंध के सहारे संतान को जन्म दिया था.

और, बातों के इस सिलसिले में यहां यह भी जोड़ा जा सकता है कि मनुष्यों के बीच बहुत किस्म के यौन-कर्म (सेक्सुअल प्रैक्टिसेज) प्रचलित हैं जिन्हें प्राकृतिक नहीं माना जा सकता लेकिन उन्हें अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया. मिसाल के तौर पर सेक्स ट्वायज् के इस्तेमाल या फिर कंडोम के इस्तेमाल पर ही विचार कीजिए कि यह प्राकृतिक है या नहीं.

पशुओं के साथ यौन-संबंध स्थापित करने को हम घृणित मानते हैं तो इसकी वजह खोजने के लिए हमें और गहरे झांकना होगा. हमें अपने सबसे गहरे और सबसे पुराने भय की तरफ नजर दौड़ानी होगी.

ओल्ड टेस्टामेंट में आता है कि ‘अगर कोई आदमी किसी जानवर के साथ सोए (सेक्स करे) तो उसे मृत्युदंड दिया जाना चाहिए और ऐसे जानवर को भी मार देना चाहिए.’ पालतू जानवरों के साथ सेक्स करने की प्रथा चली आ रही थी और उसकी तरफ खास तवज्जो नहीं दी जाती थी. साल 1640 के दशक से ‘नई दुनिया’ ने विचारधारा के स्तर पर एक नये आतंक से अपने को जूझता पाया. उपनिवेशों में एकल पुरुषों की तादाद ज्यादा थी और समुदायों के भीतर इस चिंता ने जोर पकड़ा कि शैतान इन पुरुषों को ऐसे कर्म करने के लिए उकसा रहा है जिससे ईश्वर का कोप जागेगा. पशुओं के साथ यौनाचार के बारे में माना गया कि दरअसल यह शैतान के इशारे पर किया जाने वाला कुकर्म है.

जॉन म्यूरिन

इतिहासकार जॉन म्यूरिन ने लिखा है, ‘पशुओं के साथ यौनाचार ने पुरुषों को उसी तरह लांछित किया जिस तरह विचक्राफ्ट (डायनपन/कालाजादू) ने स्त्रियों को’.  साल 1642 से 1662 के बीच ‘न्यू इंग्लैंड’ ने पशुओं के साथ यौनाचार करने के अपराध में छह पुरुषों को मृत्युदंड दिया. इसी वक्त शैतान के साथ कामलीला करने के अपराध में 13 महिलाओं और दो पुरुषों को फांसी दी गई.

लोगों में यह विश्वास प्रचलित था कि जानवरों के साथ सेक्स करने से राक्षस सरीखी संतान पैदा होगी. यह मान्यता देर तक घर किये रही. मिसाल के लिए 1812 के एक मुकदमे का जिक्र किया जा सकता है. यह जानवरों के साथ यौन-संबंध स्थापित करने से जुड़ा मामला था. उस वक्त एक प्रसिद्ध राजनेता विलियम मॉलटन पर आरोप लगा कि उसने मादा कुत्ते के साथ सेक्स किया है और इस संबंध के कारण मादा कुत्ते ने बच्चे जने हैं जिनके 'सिर बहुत बड़े हैं, सिर या पूंछ पर बाल नहीं है और सिर के आजू-बाजू कान बहुत ही छोटे हैं.'

‘गे सेक्स’ पर कानूनी शिकंजा

साल 1646 में न्यू हैवन में विलियम पेन को दो पुरुषों के साथ यौन संबंध बनाने के आरोप में फांसी की सजा सुनायी गई. विलियम पेन शादीशुदा था. सुनवाई के दौरान दस्तावेज में यह भी दर्ज किया गया, ‘विलियम पेन ने गिल्फोर्ड के बहुत से नौजवानों को हस्तमैथुन (मास्टरबेशन) कर भ्रष्ट किया है, वह खुद हस्तमैथुन करता है और दूसरों को भी बहकाता है कि वे सौ-सौ दफे हस्तमैथुन करें.’ मुकदमे के दौरान यह भी दर्ज किया गया, 'कुछ लोगों ने उसके इस गंदे आचरण को गैरकानूनी बताकर उसपर सवाल उठाये तो वह (विलियम पेन) ईश्वर में अविश्वास की बहकी-बहकी बातें करने लगा, उसने खुद ही सवाल दाग दिया कि क्या ईश्वर होता भी है.’

नैतिक मामलों में अपनी शुद्धता की दुहाई देने वाले प्यूरिटन्स ने अमेरिका को अपना उपनिवेश बनाया था और इन प्यूरिटन्स के विपरीत भारत में पशुओं के साथ यौन-संबंध बनाने को लेकर शायद ही कभी कोई पूर्वाग्रह पाला गया. अगर प्राचीन कला-शिल्प को देखें तो पता चलेगा कि हमारे पुरखे पशुओं के साथ यौन-संबंध बनाने को विभिन्न प्रकार के यौन-कर्म का एक हिस्सा ही मानते थे.

बाल्लेगवि, बरसुर, नाद-कलशी तथा खजुराहो के मंदिरों के शिल्प में साफ-साफ देखा जा सकता है कि मनुष्य पशुओं के साथ यौन-संबंध बना रहा है और ऐसे संबंधों पर कोई नैतिक फैसला नहीं सुनाया गया. बहुत सी ऐसी दंतकथाएं मिलती हैं जिनके किरदार मनुष्य और पशुओं के आपसी संयोग से उत्पन्न हुए हैं. जैसे ऋष्यशृंग के बारे में कहा जाता है क उनका जन्म एक ऋषि और एक हिरण के संयोग से हुआ. इसी तरह नर और सिंह के मिले जुले रूप नरसिंह को लिया जा सकता है जिसे विष्णु का अवतार माना जाता है.

मनुस्मृति में विधान है कि जो व्यक्ति पशुओं के साथ यौन-संबंध स्थापित करने का अपराध करे या फिर स्त्रियों के साथ अस्वाभाविक रीति से संसर्ग करे या जल में रति-कर्म करे या फिर रजस्वला स्त्री(मेन्स्ट्रूएटिंग विमेन) के साथ यौन-संबंध बनाये तो उसे इसके प्रायश्चित स्वरूप ‘संतापन’ करना होगा. संतापन तो बहुत हल्का सा दंड कहलाएगा क्योंकि इसमें दिन-रात (आठ प्रहर) गोमूत्र, गोबर, फटे हुए दूध, घी तथा कुश नामक घास के काढ़ा के सहारे जीवन बिताना होता है.

प्यूरिटन लोगों का ख्याल था कि व्यक्ति की पसंद-नापसंद को सामाजिक रीति-नीति के अनुसार होना चाहिए और ऐसा ना होने पर व्यक्ति को दंड दिया जाना चाहिए. यौन-संबंधों को लेकर प्यूरिटन लोगों की यही धारणा अंग्रेजों के साथ भारत पहुंची और इस धारणा की अभिव्यक्ति भारतीय दंड संहिता की धारा 377 में हुई.

सीधी सादी सच्चाई बस इतनी भर है कि हमें बहुत से बरताव घिनौने जान पड़ते हैं लेकिन वे व्यक्ति के पसंद-नापसंद की उपज होते हैं और पशुओं के साथ यौन-संबंध बनाना भी ऐसी ही व्यक्तिगत पसंद-नापसंद का मामला है. लोकतंत्र के प्रति निष्ठा की एक परीक्षा यह भी है कि समाज व्यक्ति की इस पसंद को किस सीमा तक मंजूर करने के लिए तैयार है.