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वैज्ञानिक कर रहे हैं विलुप्त हो चुकी सरस्वती नदी की खोज

सरस्वती नदी की प्रस्तावित खोज से जुड़ी रिपोर्ट के आधार पर यह कार्य राजस्थान के पांच जिलों में शुरू किया गया है

Bhasha

प्राचीन काल की विलुप्त नदी सरस्वती के मौजूदगी, नदी के बहाव मार्ग, आकार और इसके विलुप्त होने के कारणों तथा इसे पुनर्जीवित करने की पहल के तहत राजस्थान एवं हरियाणा में भूगर्भीय जीवाश्म, भूगर्भ रसायन, भूगर्भ भौतिकी से जुड़े विविध आयामों पर खोज शुरू की गई है.

इसके तहत जीआईएस डाटाबेस का उपयोग करते हुए कुंओं की खुदाई एवं नक्शा तैयार करने का कार्य किया जा रहा है.


सरस्वती नदी का अस्तित्व हकीकत

जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि सरस्वती नदी का अस्तित्व हकीकत है और इस दिशा में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के उपयोग के जरिये जमीन के नीचे इस प्राचीन नदी के बहाव का पता लगाया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार इस पर काम कर रही है. यह नदी जैसलमेर से गुजरात के कच्छ तक बहती थी. अब जैसलमेर एवं बाड़मेर में कुंओं की खुदाई की जा रही है जिसमें अच्छी गुणवत्ता के जल स्रोत मिले हैं.

मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, जैसलमेर एवं बाड़मेर में 72 कुंओ की खुदाई की जानी है जिनमें से अब तक 55 कुंए खोदे गए हैं.

पेयजल और सिंचाई में मिलेगी मदद

मेघवाल ने कहा कि सरस्वती नदी के प्रवाह मार्ग का पता लगाने के लिये व्यापक शोध और तकनीकी इनपुट प्राप्त करके बहाव का पता लगाया जा रहा है. इससे पेयजल और सिंचाई में मदद मिल सकती है. राजस्थान सरकार ने इसकी खोज के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए चार वर्षों का एक खाका तैयार किया था और अब बाड़मेर एवं उससे लगे क्षेत्रों में इस कार्य को आगे बढ़ाया जा रहा है.

राजस्थान के जल संसाधन मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस सिलसिले में एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करके केंद्र सरकार को भेज दी गई है. इस कार्य को करीब 70 करोड़ रुपये की वित्तीय राशि से आगे बढ़ाने का प्रस्ताव किया गया है. बाड़मेर एवं उससे लगे इलाके में कच्चे तेल के साथ जल के भंडार भी मिले हैं.

आदि बद्री हेरिटेज बोर्ड का गठन

दूसरी ओर, हरियाणा सरकार ने भी आदि बद्री हेरिटेज बोर्ड का गठन किया है जिसके तहत सरस्वती नदी के संभावित रास्तों पर नयी नहर बनाने की योजना है. इस सिलसिले में खुदाई का कार्य घग्घर हाकरा नदी इलाकों में किया जा रहा है. माना जाता है कि कभी इस इलाके से सरस्वती नदी गुजरती थी.

बेंगलूरू स्थित जवाहर लाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस साइंटिफिक रिसर्च के प्रोफेसर के एस वाल्डिया के नेतृत्व में गठित समिति ने इस विषय पर अध्ययन किया था.

सरस्वती नदी की खोज की कल्पना सबसे पहले अंग्रेज इंजीनियर सी एफ ओल्डहैम ने 1893 में की थी. ओल्डहैम को यह विचार तब आया था जब वे हनुमानगढ़ के पास बरसाती नदी घग्घर से गुजर रहे थे. सरस्वती नदी की खोज संबंधी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) के मुताबिक, जीआईएस डाटाबेस का उपयोग करते हुए एक ऐसा नक्शा तैयार किये जाने की बात कही गई है जो सरस्वती नदी के जीवाश्म नेटवर्क को प्रदर्शित करेगा. इससे जुड़ी एजेंसिया कुंओं का एवं अन्य प्रकार की खुदाई का कार्य करेंगी और विभिन्न मापदंडों के आधार पर हाइड्रोलॉजिक डाटा तैयार किया जायेगा.

सरस्वती नदी की प्रस्तावित खोज से जुड़ी रिपोर्ट के आधार पर यह कार्य राजस्थान के पांच जिलों में शुरू किया गया है जिसकी लम्बाई 543.36 किलोमीटर है.

इसका मकसद पीने के पानी, सामाजिक आर्थिक विकास और समाज के अन्य उद्देश्यों विशेष तौर पर भारत-पाक सीमा पर तैनात भारतीय सेना के लिए भूजल संसाधनों की तलाश करना है. इसके तहत जीवाश्म के आधार पर नदी के जल स्रोत को पुनर्जीवित करने की संभावना तलाशी जायेगी.

खोज के दायरे में शामिल जिले

प्रस्तावित खोज कार्य में वैदिक काल की नदी सरस्वती के बहाव मार्गो और उसके अस्तित्व से जुड़े आयामों को स्थापित करने का कार्य किया जायेगा. इसके तहत खुदाई करके भूगर्भीय तत्वों की आयु निर्धारित की जायेगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि खोज का दायरा हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर और बाड़मेर जिले होंगे.

हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि उपग्रह के चित्रों से नदियों की जलधाराओं के पुराने निशान मिल जाते हैं. बरसात के दिनों में उनमें जमीन में मौजूद पानी के स्तर बढ़ने से इनमें कुछ पानी भी ऊपर आ जाता है. लेकिन इनके मूल जल स्रोतों को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता. इनकी खुदाई करके नहरों का निर्माण किया जा सकता है.