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तमिलनाडु के स्कूलों में होती है जाति की पहचान, रंगबिरंगे बैंड-टैटू का होता है इस्तेमाल

स्कूलों में छात्रों के बीच छोटी सी बातों पर झगड़ा होता है जैसे की शर्ट इन करना, लड़कों का लड़कियों से बात करने पर, प्रेस किए हुए कपड़े पहनने आदि पर

Bhasha

यूं तो रंगबिरंगे बैंड और टैटू फैशन में शुमार किए जाते हैं लेकिन तमिलनाडु के कुड्डालूर जिले में कई स्कूलों में ये बैंड और टैटू बच्चों की जाति की पहचान के लिए हैं. कुड्डालूर में सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग ‘वानियार्स’ की बहुलता है वहीं अनुसूचित जाति दूसरे नंबर पर हैं जो कि कुल आबादी का कम से कम 30 फीसदी है. दोनों के बीच पुराना झगड़ा है. दोनों के बीच यह लड़ाई स्कूल तक पहुंच गई है.

लाल और नीला रिस्ट बैंड दबे कुचले वर्ग को दर्शाता है


लाल और नीला रिस्ट बैंड दबे कुचले वर्ग को दर्शाता है वहीं पीला और हरा रंग वानियारों को अथवा ऐसे राजनीतिक पार्टी को दर्शाता है जो समुदाय का समर्थन करती है. छात्र, आम अथवा एक स्टार वाले टैटू का इस्तेमाल कर अपनी जाति किसी जाति विशेष के प्रति अपने समर्थन को दर्शाते हैं. जिले में काम करने वाले अधिकारी ने बताया कि यहां छात्रों के बीच छोटी सी बातों पर झगड़ा होता है जैसे की शर्ट इन करना, लड़कों का लड़कियों से बात करने पर, प्रेस किए हुए कपड़े पहनने आदि पर.

स्कूलों में जाति आधारित झगड़े आम बात है

उन्होंने बताया कि स्कूलों में जाति आधारित झगड़े आम बात है. यहां तक कि शिक्षक भी पिछड़ी जातियों के बच्चों के प्रति पक्षपात पूर्ण रवैया रखते हैं. छात्रों के बीच जाति आधारित झगड़ों को देखते हुए जिला प्रशासन ने 17 प्वाइंटों वाली आचार संहिता जारी की है जिनमें अन्य वस्तुओं के अलावा इस प्रकार के रंगबिरंगे बैंड और टैटुओं पर रोक लगाई गई है. बाद में इसे राज्य भर के स्कूलों में लागू कर दिया गया. इसे कुड्डालूर के उपायुक्त जॉनी टॉम वर्गीज के कार्यकाल के दौरान जारी किया गया था. वर्गीज ने कहा कि स्कूलों को राजनीति और चुनाव प्रचारों से दूर रखा जाना चाहिए.