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अनुसूचित जाति-जनजाति कोटा: 11 साल पुराने फैसले पर संविधान पीठ करेगी विचार

शीर्ष अदालत महाराष्ट्र सरकार के दो प्रस्तावों को निरस्त करने के बंबई हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी

Bhasha

सुप्रीम कोर्ट सरकारी नौकरियों में पदोन्नति के लिए अनुसूचित जाति और जनजातियों के आरक्षण के मामले में ‘क्रीमी लेयर’ लागू करने के मुद्दे से संबंधित अपने 11 साल पुराने निर्णय पर बुधवार को विचार करने के लिए तैयार हो गया.

शीर्ष अदालत ने कहा कि पांच सदस्यीय संविधान पीठ एक सीमित विषय पर विचार करेगी कि क्या 2006 के एम नागराज बनाम केंद्र सरकार के मामले में 2006 में सुनाए गए फैसले पर फिर से गौर करने की आवश्यकता है या नहीं.


चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए के सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की तीन सदस्यीय पीठ ने स्पष्ट किया कि वह फैसले के सही होने के मुद्दे पर गौर नहीं करेगी.

एम नागराज मामले में सुनाए गए फैसले में कहा गया था कि मण्डल आयोग पर फैसले के नाम से चर्चित 1992 के इंदिरा साहनी प्रकरण और 2005 में ई वी चिन्नैया प्रकरण में सुनाए गए फैसलों की तरह सरकारी नौकरियों में पदोन्नति के मामले में अनुसूचित जाति और जनजातियों पर क्रीमी लेयर की अवधारणा लागू नहीं की जा सकती है. पहले के दोनों फैसले अन्य पिछड़े वर्गों की श्रेणियों में क्रीमी लेयर के मुद्दे से संबंधित थे.

शीर्ष अदालत महाराष्ट्र सरकार के दो प्रस्तावों को निरस्त करने के बंबई हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी. कई अन्य राज्यों ने भी इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की हैं.

इससे पहले, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस आर भानुमति की दो सदस्यीय पीठ ने सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और जनजातियों के मामले में भी क्रीमी लेयर से संबंधित मुद्दों को संविधान पीठ के पास भेज दिया थां. इस पीठ ने राज्य सरकार को किसी भी पिछडे वर्ग के पक्ष में नियुक्तयों और पद के लिए आरक्षण का प्रावधान करने का अधिकार प्रदान करने संबंधी संविधान के अनुच्छेद 16 (4), 16 (4ए) और 16 (4बी) के बारे में स्पष्टीकरण का अनुरोध किया था.