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SC/ST एक्ट: BJP के दलित सांसदों की मांग- मोदी सरकार दे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती

बीजेपी सांसदों ने भी कोर्ट के फैसले को लेकर बुधवार को केंद्रीय सामजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत से मुलाकात भी की है

FP Staff

दलितों के एक निकाय ने केंद्र से अपील की है कि वह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम को लागू करने के बारे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती दे. संगठन ने कहा कि कोर्ट के इस फैसले का सामाजिक न्याय की अवधारणा पर नकारात्मक प्रभाव होगा.

वहीं बीजेपी सांसदों ने भी कोर्ट के फैसले को लेकर बुधवार को केंद्रीय सामजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत से मुलाकात भी की है. सांसदों ने गहलोत से इस मामले को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने रखने को कहा है. सूत्रों के मुताबिक, सांसदों के साथ-साथ केंद्रीय मंत्री ने भी सरकार से कोर्ट में समीक्षा याचिका दाखिल करने को कहा है.


दलित शोषण मुक्ति मंच (डीएसएमएम) की कार्यकारिणी समिति ने फैसले को लेकर गंभीर चिंता जाहिर की और इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया. सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ एससी/एसटी (अत्याचार रोकथाम) एक्ट के सख्त प्रावधानों के भारी दुरुपयोग का मंगलवार को संज्ञान लिया और कहा कि इस कानून के तहत दायर किसी शिकायत पर तत्काल गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए.

अदालत ने कहा कि एससी/एसटी कानून के तहत किसी लोक सेवक की गिरफ्तारी से पहले कम से कम पुलिस उपाधीक्षक रैंक के अधिकारी से आरोपों की अवश्य प्रारंभिक जांच करायी जानी चाहिए. संगठन के महासचिव और पूर्व सांसद रामचंद्र डोम ने एक वक्तव्य में कहा कि मंच ने मांग की कि सरकार तत्काल समीक्षा याचिका दायर करे ताकि कानून प्रभावी बना रहे.

उन्होंने कहा, 'इस फैसले का सामाजिक न्याय की अवधारणा पर नकारात्मक प्रभाव है.' उन्होंने दावा किया कि कोर्ट ने दुरुपयोग के नाम पर बेहद दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से अधिनियम की धारा18 में संशोधन किया. हालांकि हकीकत यह है कि एससी-एसटी के खिलाफ अत्याचार के मामलों में दोषसिद्धि की दर बेहद कम है और हर स्तर पर विलंब होता है.

(एजेंसियों से इनपुट)