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कच्ची उमर का प्यार, समलैंगिकता, लड़कों का रोना...सब नॉर्मल है

सरकार ने किशोरों में उनके सेक्सुएल बिहेवियर की जानकारी के लिए शिक्षण सामग्री तैयार की है

FP Staff

समलैंगिकता सरकार और न्याय व्यवस्था के लिए बहुत बड़ा सवाल बन गया है और सरकार ने इस समस्या को देखते हुए नजरिए और नियमों में कई बदलाव भी किए हैं.

स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस मसले पर किशोरों में जानकारी बढ़ाने के लिए जो शिक्षण सामग्री तैयार की है, उसमें कई मुद्दों पर सरकार का इरादा साफ है. रिपोर्ट के मुताबिक किशोरावस्था में विपरीत या समान लिंग के प्रति आकर्षण बिल्कुल ठीक है, लेकिन इसमें सबसे जरूरी बात सहमति और सम्मान है.


इस सामग्री में कहा गया है ‘हां, किशोरावस्था में बार-बार प्यार हो जाता है. उन्हें किसी दोस्त, विपरीत और एक जैसे लिंग के दूसरे व्यक्ति को देखकर आकर्षण महसूस हो सकता है. किसी के प्रति विशेष संवेदना होना सामान्य है. किशोरों को यह समझना जरूरी है कि ऐसे रिश्ते सहमति, विश्वास, पारदर्शिता और सम्मान पर डिपेंड होते हैं.

स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशा निर्देश में बनाए गए नए स्टडी मैटेरियल में लिखा गया है, 'आपके मन में जिसके लिए भी ऐसी भावना है, उससे इसके बार में बात करना बिल्कुल ठीक है, लेकिन हमेशा सम्मानजनक तरीके से. लड़कों को समझना चाहिए कि जब कोई लड़की ना कहती है तो इसका मतलब ना ही होता है.’

किशोरों को उनके सेक्सुएल बिहेवियर पर जानकारी देने वाली ये प्रशिक्षण सामग्री हिंदी में तैयार की गई है. ये किशोर सहकर्मी शिक्षण योजना के तहत राज्यों में बांटी जाएगी. देश के 26 करोड़ किशोरों को स्वास्थ्य संबंधी सही जानकारी दिए जाने की पहले के रूप में मंत्रालय ने 1.65 लाख सहकर्मी शिक्षकों को शामिल करने जा रहा है. जिन्हें 'साथिया' नाम दिया गया है.

स्वास्थ्य सचिव सी के मिश्रा ने सोमवार को इनके लिए तैयार मैटीरियल का विमोचन किया. इसमें न केवल समलैंगिक आकर्षण के मुद्दे पर बल्कि गर्भनिरोधक और लैंगिक हिंसा पर भी विस्तार से बात की गई है. साथिया को राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत ट्रेनिंग दी जा रही है.

मिश्रा ने कहा, 'मीडिया के विस्तार के बावजूद गांवों में किशोरों के दिमाग में कई ऐसे सवाल उमड़-घुमड़ रहे होते हैं जिनका जवाब उन्हें नहीं मिल पाता है. साथिया इन सवालों के जवाब देंगे. हम व्यवहार और सोच में बदलाव पर भी बात कर रहे हैं.'

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की भागीदारी से तैयार शिक्षण सामग्री के मानसिक स्वास्थ्य वाले भाग में लैंगिक रूढ़ियों को भी दूर करने की कोशिश की है जिसमें कहा गया है कि लड़कों का रोना बिल्कुल सही है और 'डरपोक' या 'खिलाड़ लड़की' जैसे वर्गीकरण बिल्कुल गलत हैं.

इसमें कहा गया है 'कोई लड़का अपनी भावनाओं को प्रवाहित करने के लिए रो सकता है. वह मृदुभाषी या शर्मीला भी हो सकता है. कठोर और संवेदनहीन होना पुरुषत्व की पहचान नहीं है. लड़कों को खाना बनाने और डिजाइनिंग जैसी चीजों में मजा आ सकता है, जिन्हें आम तौर पर लड़कियों से जोड़कर देखा जाता है.'

रिपोर्ट के मुताबिक 'विपरीत लिंग की भूमिका अपनाने का मतलब यह नहीं है कि वह पुरुष नहीं है. यही बात लड़कियों पर भी लागू होती है, जो बहुत ज्यादा बात करती है या लड़कों की तरह कपड़े पहनती है और लड़कों की तरह गेम्स खेलती है. ऐसे लोगों को 'डरपोक' या 'खिलाड़ लड़की' कहना गलत है.'

इस सामग्री से सहकर्मी शिक्षक स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के ट्रेंड करेंगे. इसके लिए उन्हें कोई ज्यादा आर्थिक मदद नहीं दी जाएगी.