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सैम मानेकशॉ: एक हीरो जिसे याद करना हम भूल जाते हैं

हमें सैम मानेकशॉ की कहानी कोर्स में शामिल करनी चाहिए.

Shantanu Mukharji

पिछले कुछ सालों में हमने देखा है कि हम आजादी के लिए लड़ाई लड़ने वालों, शहीदों और नेताओं के प्रति तो शुक्रिया अदा करते हैं. उन्हें याद करते हैं. मगर हम अपने फौजी बहादुरों की अक्सर अनदेखी कर देते हैं. जैसे हम देश के लिए योगदान देने वाले बाकी लोगों को याद करते हैं, उतने उत्साह से हम अपने सैन्य वीरों को नहीं याद करते.

सैम मानेकशॉ को हम 1971 की जीत के लिए तो याद करते ही हैं. हम उन्हें इस बात के लिए भी याद करते हैं कि वो नेताओं के आगे हमेशा सीना तानकर खड़े रहे. वो नेताओं के आगे झुके नहीं. मानेकशॉ ने अपने शानदार फौजी करियर में देश को बेहतरीन सैन्य नेतृत्व दिया. उन्होंने 1962 की लड़ाई में चीन से हारी सेना में नया जोश भरा. उन्होंने सेना का मनोबल बढ़ाकर हमारे सदा के दुश्मन पाकिस्तान के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ने का हौसला दिया. 1971 में भारत ने पाकिस्तान को जंग में जिस तरह पटखनी दी, वो सैम मानेकशॉ जैसे जनरल की अगुवाई में ही मुमकिन थी.


नेताओं के आगे सीना तानकर खड़े होने की बात करें, तो सैम का इंदिरा का फरमान मानने से इनकार करने का किस्सा काफी मशहूर है. इंदिरा गांधी बेहद ताकतवर प्रधानमंत्री थीं. लेकिन जब उन्होंने ने मानेकशॉ से पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध छेड़ने को कहा तो सैम ने उन्हें साफ मना कर दिया. उन्हें पता था कि उनके सैनिक अभी पूरी तरह तैयार नहीं थे. फिर मौसम का रुख भी ठीक नहीं था. मानेकशॉ ने इंदिरा गांधी को ये भी चेतावनी दे दी कि अगर उनकी राय ठीक नहीं लगती, तो वो किसी और को सेनाध्यक्ष बना सकती हैं. मगर वो पूरी तैयारी के बगैर जंग नहीं लड़ेंगे. आज के दौर में किसी जनरल से ऐसी सपाट बात करने की उम्मीद ही नहीं की जा सकती.

सैम मानेकशॉ अपने मजाकिया मिजाज के लिए जाने जाते थे. वो सैनिकों के बीच बेहद लोकप्रिय थे. वो हमेशा मजाक करते रहते थे. उनमें गजब का सेंस ऑफ ह्यूमर था. कहते हैं कि एक बार उनकी पत्नी सिलू ने एक महफिल में कहा कि सैम सोते वक्त बहुत जोर से खर्राटे लेते हैं. इससे सिलू की नींद खराब हो जाती है. सैम ने फौरन इसका जवाब दिया, 'किसी और महिला ने तो कभी मुझसे इसकी शिकायत नहीं की, तुम पहली हो, जिसे मेरे खर्राटों से दिक्कत है'.

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब वो बर्मा में घायल हो गए, तो उन्हें अस्पताल ले जाया जा रहा था. गोली लगने से उनकी आंत बाहर लटक रही थी. जब डॉक्टर ने उनसे पूछा कि क्या हुआ, तो सैम ने हाजिर जवाबी से कहा कि बस एक गधे ने उन्हें लात मार दी है. यानी जिस वक्त वो घायल हालत में थे और जिंदगी की जंग लड़ रहे थे, तब भी उनकी मजाक करने की आदत कायम रही.

लंदन के मशहूर ट्रैफलगर स्क्वॉयर से वेस्टमिंस्टर जाने के रास्ते में इंग्लैंड के बहुत से ऐसे शूरवीरों की आदमकद मूर्तियां लगी हैं, जिन्होंने जंग के मैदान में देश को कामयाबी दिलाई. लेकिन बेहद अफसोस की बात है कि फील्ड मार्शल मानेकशॉ के नाम की सड़कें सिर्फ कैंट इलाकों में मिलती हैं. आखिर ऐसा क्यों है कि मानेकशॉ और हमारे दूसरे सैनिक वीरों के नाम की सड़कें शहरों में नहीं हैं? मानेकशॉ के बुत सिर्फ कैंट इलाकों में क्यों हैं? क्या वो सिर्फ भारतीय फौज के हीरो थे? वो तो पूरे देश के लिए आदर्श हैं न!

हमारे देश में अक्सर सिलेबस में बदलाव होते रहते हैं. हमें सैम मानेकशॉ की कहानी भी कोर्स में शामिल करनी चाहिए ताकि आने वाली नस्लें देश के इस महान सपूत को जानें और गर्व से कहें कि भारत में ऐसे-ऐसे वीर हुए हैं. देश के लिए मानेकशॉ का योगदान बेशकीमती है.

अगर हम ऐसे हीरो को उनकी सालगिरह पर भी याद नहीं करेंगे, उनका शुक्रिया नहीं अदा करेंगे, तो हम कैसे एक महान देश होने का दावा कर सकते हैं?