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कोर्ट-कचहरी में सिर धुनते सलमान को सजा तो पहले ही मिल चुकी है

सलमान को अगर जमानत मिल भी जाती है तो भी आजतक उन्होंने जितना न्याय से भागने की कोशिश की है, उससे उनको सजा मिल चुकी है

Sandipan Sharma

सालों से हम इस बात से खफा होते आए हैं कि सलमान खान को उनके अपराधों की सजा नहीं मिली. हमने कोर्ट में सालों तक केस के लटके रहने पर धीमी न्याय व्यवस्था को कोसा है. हर बार हमें गलत गवाहों, नरम पड़ जाने वाले अधिकारियों और भ्रष्ट जांचकर्ताओं की वजह से निराश होना पड़ा है. सालों से हम सलमान को हर बार दोषी घोषित होने के बाद भी गर्व से सीना फुलाए जेल से बाहर आते हुए देख रहे हैं.

इस बार भी कुछ ऐसा ही होने की संभावना है. सलमान को काले हिरण के शिकार के 20 साल पुराने मामले में जोधपुर कोर्ट की ओर से 5 साल की सजा सुनाई गई है. पिछले मामलों की तरह इस बार भी सलमान के वकील हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं. बेल की अपील कर सकते हैं. और फिर हम इस बात का रोना रोएंगे कि एक अपराधी अपने पैसों और पावर के चलते सजा भोगने से बच निकला.


एक अपराधी को उसके किए की सजा भुगतता देखने से ज्यादा तसल्ली किसी बात से नहीं मिलती है. इससे न बल्कि कानून और न्याय स्थापित होते हैं, समाज के लिए उदाहरण भी बनता है. लेकिन अगर सलमान किसी भारतीय जेल में अपनी सजा भुगते बगैर जेल से बाहर आने में कामयाब हो गए तो ये सचमुच इंसाफ का मजाक होगा.

लेकिन फिर भी, एक बार हमें सलमान के बारे में भी सोचना चाहिए. उन सालों के बारे में सोचिए, जब सलमान इस कोर्ट से उस कोर्ट तक दौड़ रहे होंगे, वकीलों, गवाहों, जांचकर्ताओं, लाइसेंस, सैंपल्स की चिंता में सिर धुन रहे होंगे, जेल में बुढ़ापा गुजारने के डर में जी रहे होंगे, यहां तक अपनी जिंदगी के फैसले और चुनाव पर न्याय के तलवार को लटका हुआ महसूस कर रहे होंगे.

अगर सलमान को जमानत मिल भी जाती है, उनकी सजा खत्म कर दी जाती है और उन्हें हाईकोर्ट बा-इज्जत बरी भी कर देता है तो भी सलमान अपने कर्मों की सजा भुगत चुके हैं. लगभग 20 सालों तक वो अनिश्चितता की परछाईं में रहे हैं, जिंदगी 4x4 की सेल में गुजारने के डर में जिए होंगे.

उन समझौतों की तरफ देखिए जो उन्होंने किए हैं. उन स्वाभिमानों की तरफ देखिए जिनकी उन्होंने तुष्टि की है. उन पैरों की तरफ देखिए जो उन्होंने छुए. उन लोगों की तरफ देखिए जिनसे उन्होंने याचनाएं और चिरौरी की, अगर पैसे से नहीं तो अपने आत्मसम्मान की कीमत पर. एक तस्वीर एकदम से दिमाग में आती है और वो तस्वीर है राजस्थान के एक मंत्री के बेटे की शादी में नाचते हुए सलमान खान की. संभव है वो मंत्री सलमान के केस पर प्रभाव डाल सकने की स्थिति में रहे हों. कल्पना कीजिए बीइंग ह्यूमन जैसे मुखौटे को चलाने के वास्तविक कष्ट की. मतलब अपना एक दानवीर चेहरा इसलिए बनाइए जिससे जनता और न्याय व्यवस्था आप पर दया खा सकें. हां, ये सच है सलमान खान अपनी सजा पहले ही पा चुके हैं.

हां ये भी सत्य है कि उनकी सफलता और सुपर-डुपर स्टारडम और उनके बुरे दिनों के बीच विडंबना भी है. 90 के दशक के दौरान जब उन्होंने जोधपुर के जंगलों में शिकार किया तब उनका स्टारडम वैल्यू आजकल की तुलना में कहीं नहीं ठहरता था. उससे पहले उनकी फिल्में लोगों के बीच उस तरह जबरदस्त कामयाबी नहीं पाती थीं जैसी आजकल पाती हैं. तब तक तो पहले दिन 50 करोड़ की ओपनिंग की बात छोड़िए पहले हफ्ते में एक अच्छे कलेक्शन की बात भी आम सोच से परे थी.

आखिर किसी के भाग्य में इतनी बड़ी असमानता की कोई कैसे व्याख्या कर सकता है? आखिर कोई कैसे जनता के बीच सलमान के लिए बढ़ते अपार-अगाध प्रेम और उनके आपराधिक इतिहास, महिला साथियों के साथ दुर्व्यवहार और न्याय पालिका को प्रभावित करने के बीच के संबंधों की व्याख्या कर पाएगा ? अगर इसको दार्शनिक लहजे में देखा जाए तो ये सोचने पर मजबूर करता है कि उन्होंने व्यक्तिगत तौर पर इतना झेला है कि उन्हें माफी मिल चुकी है. दरअसल उनके कर्मों के लिए माफी दे दी गई.

आखिर सजा से भी ज्यादा भयावह क्या होता है ? विख्यात रूसी लेखक फ्योदोर डोस्टोयवस्की ने क्राइम एंड पनिशमेंट में इसे स्थापित किया है. उनके अनुसार 'अपराध के क्षणों को याद कर पैदा होने वाला क्षोभ और सजा का भय' वास्तविक सजा से भी ज्यादा भयावह होता है.

अगर सलमान को बेहतर सलाह मिली होती तो उन्होंने अपना केस तेजी से चलाने की गुहार की होती. अपनी गलती के लिए क्षमा मांग ली होती और दया की गुहार की होती और वो इन सब कटु अनुभवों से काफी पहले ही बाहर आ चुके होते. उस रास्ते में उन्हें शायद सजा हुई होती और वो अब तक आगे बढ़ चुके होते. बजाए इसके कि वो 20 सालों तक न्याय के लिए कश्मकश कर रहे हैं. लेकिन अब जो स्थिति है उसके हिसाब से न्याय में हुई देरी ने उनकी जिंदगी से न्याय को अलग कर दिया है.

हां ये हो सकता है कि खान जल्दी ही फिर बाहर हों जैसा उनके पहले बार 2006 में सजा मिलने पर हुआ था. उस समय उन्होंने एक ऐसी सफेद टीशर्ट पहन रखी थी जिस पर दो उड़ते हुए चील बने हुए थे. अगर फिर से वैसा ही होगा तो स्वतंत्रता उनके पास अगले बीस साल बाद आएगी. वो भय और अनिश्चतितता के माहौल में बन रहेंगे जब तक कि ऊपरी अदालत से उनके दुख को समाप्त न कर दिया जाए.