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दलित राजनीति पर ग्राउंड रिपोर्ट (पार्ट 3): क्या भीम आर्मी पश्चिमी यूपी की दलित राजनीति में बदलाव ला रही है?

सहारनपुर के दलित इलाकों में भीम आर्मी का समर्थन वही कर रहे हैं, जो बीएसपी के कोर वोटर्स हैं. ये लोग बीएसपी और भीम आर्मी को अलग-अलग नहीं देखते

Vivek Anand

एडिटर नोट: बीजेपी, इसकी वैचारिक शाखा आरएसएस और दलितों से पहचानी जानी वाली पार्टियां यहां तक कि बीएसपी भी, पिछले कुछ महीनों में दलित समुदाय से दूर हो रही है. इस समुदाय ने भारतीय राजनीतिक पार्टियों और समाज में खुद को स्थापित करने का नया रास्ता खोजा है. फ़र्स्टपोस्ट यूपी में घूमकर दलित राजनीति का जायजा लेगा. गांवों, शहरों और कस्बों में क्या है दलित राजनीति का हाल, जानिए हमारे साथ:

रविवार को सहारनपुर में सोशल मीडिया पर एक मैसेज बड़ा तेजी से वायरल हुआ. मैसेज में बताया गया था कि भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद रावण कैराना का उपचुनाव लड़ने जा रहे हैं. चंद्रशेखर आजाद रावण सहारनपुर हिंसा के बाद यहां की जेल में बंद हैं. उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगा है. पिछले दिनों उन पर लगे एनएसए को तीन महीने के लिए बढ़ा दिया गया है.


चंद्रशेखर रावण के कैराना उपचुनाव लड़ने की खबर बाद में अफवाह निकली. इसके बाद भीम आर्मी के राष्ट्रीय प्रवक्ता मंजीत नौटियाल ने वॉट्सऐप मैसेज के जरिए अपने समर्थकों में संदेश भेजे. उन्होंने लिखा, ‘कुछ लोग फेसबुक पर माहौल खराब कर रहे हैं. आपलोग बहुजन समाज के लिए लड़ने वाले चंद्रशेखर आजाद रावण के समर्थन में एकजुटता दिखाएं. चंद्रेशेखर आजाद उर्फ रावण की फोटो लगाकर लिखें कि हम चंद्रशेखर के साथ हैं.’

भीम आर्मी कितनी बड़ी ताकत है?

यहां की स्थानीय मीडिया के मुताबिक, इस तरह की अफवाह उड़ाकर चंद्रशेखर रावण और उनकी भीम आर्मी चर्चा में बने रहना चाहते हैं. सवाल है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की दलित राजनीति में भीम आर्मी कितनी बड़ी ताकत है? भीम आर्मी क्या कर रही है और उसका मकसद क्या है? क्या ये लोग आने वाले चुनावों पर असर डाल सकते हैं?

इन सवालों के जवाब पाने के लिए हमने भीम आर्मी के राष्ट्रीय प्रवक्ता मंजीत नौटियाल से संपर्क किया. मंजीत नौटियाल से हमारी मुलाकात सहारनपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर बेहट इलाके में हुई. इस इलाके में दलितों की अच्छी खासी आबादी है. हालांकि इसके बावजूद मंजीत यहां खुलेआम घूमने-फिरने से परहेज करते हैं. मेरे ये पूछने पर कि आपको किस बात का डर है, वो कहते हैं कि इलाके के बहुजनों के समर्थन में आवाज उठाने की वजह से उनके कई दुश्मन बन गए हैं. ऐसे लोग उनपर नजर रखते हैं. चंद्रशेखर आजाद रावण की तरह उन पर भी पुलिस ने 27 मुकदमे दर्ज कर रखे हैं. वो कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. मंजीत नौटियाल ने एक प्राइवेट कॉलेज से बीटेक की पढ़ाई कर रखी है. वो कहते हैं कि नौकरी छोड़कर उन्होंने बहुजनों के हक और अधिकार की लड़ाई लड़ने का फैसला किया.

मंजीत नौटियाल (फोटो- विवेक आनंद)

मंजीत कहते हैं, ‘बहुजनों के खिलाफ जहां भी अत्याचार के मामले सामने आते हैं, भीम आर्मी उनकी मदद के लिए वहां खड़ी रहती है. सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में दलितों और ठाकुरों के बीच हुए झगड़े के बाद शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे बहुजनों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया. चंद्रशेखर रावण खुद वहां शांति बहाल करने के मकसद से गए थे. लेकिन पुलिस ने उनपर मुकदमे दर्ज कर दिए. पुलिस प्रशासन लगातार बहुजनों को दबाने का काम कर रही है. लेकिन हम इस लड़ाई में झुकने वाले नहीं हैं. हम बहुजनों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष करते रहेंगे.’

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इस तरह सुर्खियां बनी थी भीम आर्मी

भीम आर्मी पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर तब सुर्खियों में आई थी, जब इसके संस्थापक चंद्रशेखर आजाद रावण ने अपने गांव घड़कौली के रास्ते में द ग्रेट....(जातिसूचक शब्द) लिखा हुआ बोर्ड लगाया था. अनुसूचित जाति के एक खास समुदाय के लिए गाली बन चुके उस शब्द को बोलने या लिख देने भर से एससी-एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज हो सकता है. उसके आगे द ग्रेट लगाकर चंद्रशेखर रावण ने दलितों के भीतर गर्व की भावना भरने वाले संदेश दिया.

चंद्रशेखर का अपने नाम के साथ ‘रावण’ टाइटल लगाना भी उसे सुर्खियां दे गया. फिर शब्बीरपुर गांव में हुई हिंसा के बाद दलितों के विरोध प्रदर्शन में भीम आर्मी का शामिल होना इसे चर्चित कर गया. चंद्रशेखर के खिलाफ पुलिस के 27 मुकदमे दर्ज होना, दिल्ली में उसका विरोध प्रदर्शन करना, डलहौजी में पुलिस का नाटकीय तरीके से उसे गिरफ्तार करना, उसके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मुकदमा दर्ज होना. इन सबने मिलकर चंद्रशेखर रावण और उनकी भीम आर्मी का कद बड़ा कर दिया. सहारनपुर के दलित मानते हैं कि सरकार चंद्रशेखर रावण के साथ ज्यादती कर रही है. वो भीम आर्मी के साथ सहानुभूति रखते हैं.

भीम आर्मी के राष्ट्रीय प्रवक्ता मंजीत नौटियाल कहते हैं,‘ अभी पिछले दिनों ही चंद्रशेखर रावण पर लगे एनएसए की अवधि तीन महीने के लिए बढ़ा दी गई. इससे आप समझिए की प्रशासन हमसे किस कदर घृणा करती है. इसके खिलाफ बहुजनों में आक्रोश है. हम पर हिंसा फैलाने और लोगों को उकसाने का जो आरोप लगाते हैं, पहले वो अपने गिरेबां में झांककर देखें. कासगंज में किन लोगों ने हिंसा फैलाई. करणी सेना जैसे संगठन छोटे-छोटे बच्चों के बसों पर हमले करते हैं. ये सब उन्हें नहीं दिखाई देता है. दरअसल भीम आर्मी के प्रभाव को देखकर उनकी पतलून गीली हो गई है.’

चंद्रशेखर रावण.

'किसी राजनीतिक पार्टी से कोई लेना-देना नहीं'

मंजीत नौटियाल नेताओं की तरह बोलते हैं लेकिन भीम आर्मी के किसी राजनीतिक संगठन से जुड़ाव की बात से इनकार करते हैं. वो कहते हैं कि भीम आर्मी पूरी तरह से गैर राजनीतिक संगठन है. ये सिर्फ बहुजनों के हितों के लिए काम कर रही है. भीम आर्मी दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़ी जाति से आने वाले गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए पाठशालाएं चला रही है, महिलाओं की मदद कर रही है, गरीब घर की लड़कियों की शादी करवा रही है, बहुजनों के लिए ब्लड डोनेशन के कार्यक्रम चला रही है. मंजीत नौटियाल से हमने पूछा कि क्या बीएसपी के साथ भी उनके किसी तरह के संपर्क नहीं हैं. वो कहते हैं, ‘देखिए बीएसपी अपना काम कर रही है और भीम आर्मी ग्राउंड स्तर पर जहां इस देश के बहुजन समाज का आखिरी गांव पड़ता है उसकी समस्या को सुलझा रही है. हमें किसी पार्टी से लेना-देना नहीं है.’

भीम आर्मी की ओर से चलाए जा रहे स्कूल. (फोटो- विवेक आनंद)

सहारनपुर के दलित इलाकों में भीम आर्मी का अच्छा खासा प्रभाव दिखता है. शब्बीरपुर गांव जहां पर पिछले साल दलितों और ठाकुरों के बीच हिंसा हुई, वहां के दलित मानते हैं कि भीम आर्मी वालों ने उनकी मदद की. वो कहते हैं कि हम चंद्रशेखर आजाद के साथ हैं. सहारनपुर से करीब 50 किलोमीटर दूर बेहट विधानसभा क्षेत्र के खुशहालीपुर गांव के दलितों के बीच भीम आर्मी ने अपनी पैठ बनाई है. बेहट विधानसभा क्षेत्र में दलितों की सबसे बड़ी आबादी वाली जाटों वाले गांव के दलित भीम आर्मी के साथ खड़े रहने की बात करते हैं.

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दलितों के लिए भीम आर्मी और बीएसपी एक हैं

इन सब इलाकों में भीम आर्मी ने अपने कार्यकर्ताओं की फौज बना रखी है. ज्यादातर युवा दलित जुड़े हैं. दलित बुजुर्ग भी इस नए संगठन के लिए अच्छी राय रखते हैं. हर गांव में किसी दलित युवा को भीम आर्मी ने ग्राम अध्यक्ष का पद दे रखा है. ये लोग मोबाइल फोन और सोशल मीडिया के जरिए एकदूसरे से जुड़े रहते हैं. भीम आर्मी को उसके सामाजिक कार्यों की वजह से दलितों के बीच प्रतिष्ठा मिल रही है. जाटों वाले गांव के दीपचंद कहते हैं, ‘पिछले दिनों हमारे गांव में एक दलित लड़की पेड़ से गिरकर बुरी तरह से घायल हो गई. भीम आर्मी वालों ने मदद की. उन्होंने लड़की को हॉस्पिटल में भर्ती करवाया. अगर ये लोग नहीं होते तो हॉस्पिटल में कोई देखने भी नहीं आता.’

सहारनपुर के दलित इलाकों में भीम आर्मी का समर्थन वही कर रहे हैं, जो बीएसपी के कोर वोटर्स हैं. ये लोग बीएसपी और भीम आर्मी को अलग-अलग नहीं देखते. जब मैंने दलितों से ये पूछा कि बीएसपी और भीम आर्मी में से आप किसे चुनेंगे. लोगों का जवाब था कि ये दोनों एक ही हैं.

खुद को लेकर भीम आर्मी के दावे बड़े हैं. मंजीत नौटियाल कहते हैं कि उनकी पहुंच विदेशों तक में है. वो देश के 14 राज्यों में असर रखने का दावा करते हैं. मंजीत नौटियाल कहते हैं कि वो हाल ही में बिहार के कुछ बड़े दलित नेताओं से मिलकर आए हैं. वहां एक बड़ी रैली आयोजित करने वाले हैं. जल्दी ही राजस्थान के दौरे पर निकलने वाले हैं. बातचीत के दरम्यान उनका मोबाइल बजता है. फोन पर बातचीत के बाद वो कहते हैं कि शाम को जेल में चंद्रशेखर से मिलने जाना है. बड़ी मुश्किल से जेल में मुलाकात हो पाती है.