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साबरमती एक्सप्रेस धमाका मामले में 16 साल बाद एएमयू का पूर्व छात्र बरी

30 जुलाई 2001 को जब वानी को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था, उस वक्त वह एएमयू से अरबी में पीएचडी कर रहे थे

Bhasha

साल 2000 में हुए साबरमती एक्सप्रेस धमाके के मामले में उत्तर प्रदेश की एक अदालत की ओर से शनिवार को सुनाए गए फैसले के बाद इस मामले में आरोपी और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व शोधार्थी गुलजार अहमद वानी 16 साल बाद जेल से रिहा होंगे. अदालत ने उन्हें साबरमती एक्सप्रेस धमाके की साजिश रचने के आरोप से बरी कर दिया है. इस धमाके में नौ लोग मारे गए थे.

वानी के वकील एम एस खान ने फोन पर बताया कि बाराबंकी के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एम ए खान ने हिज्बुल मुजाहिदीन के संदिग्ध सदस्य 43 साल के वानी और सह-आरोपी मोबिन को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया.


2001 में पुलिस ने किया था गिरफ्तार 

साल 2001 में कथित तौर पर विस्फोटकों और आपत्तिजनक सामग्रियों के साथ दिल्ली पुलिस की ओर से गिरफ्तार किए गए वानी श्रीनगर के पीपरकारी इलाके के रहने वाले हैं और लखनउ की एक जेल में बंद हैं.

स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर कानपुर के पास यह धमाका उस वक्त हुआ था जब साबरमती एक्सप्रेस मुजफ्फरपुर से अहमदाबाद जा रही थी. इस घटना में नौ लोग मारे गए थे और कई अन्य जख्मी हो गए थे.

वकील ने बताया, ‘अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एम ए खान की अदालत ने दोनों आरोपियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया, क्योंकि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों को साबित नहीं कर पाया.’

हत्या, हत्या की कोशिश, आपराधिक साजिश, युद्ध छेड़ने, हथियार इकट्ठा करने और देश के खिलाफ अपराध के लिए साजिश रचने के कथित अपराधों के लिए आईपीसी के तहत बाराबंकी के जीआरपी पुलिस थाने में उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक मामला दर्ज किया था.

सुप्रीम कोर्ट ने दी थी जमानत 

भारतीय रेलवे कानून और विस्फोटक पदार्थ कानून के तहत भी उनके खिलाफ मामले दर्ज किए गए थे. वकील ने बताया कि वानी के खिलाफ 10 अन्य मामले भी दर्ज किए गए थे. 11 मामलों में से 10 में वानी को आरोपमुक्त या बरी किया जा चुका है.

हालांकि, दिल्ली में एक धमाके को अंजाम देने के लिए विस्फोटक रखने के जुर्म में वानी को दोषी करार दिया गया था और 10 साल जेल की सजा सुनाई गई थी. बहरहाल, दिल्ली उच्च न्यायालय ने वानी की सजा पर रोक लगा रखी है.

उच्चतम न्यायालय ने इस साल अप्रैल में वानी को जमानत दे दी थी और कहा था कि वह 16 साल से ज्यादा समय तक सलाखों के पीछे रहे हैं और 11 में से नौ मामलों में बरी किए जा चुके हैं.

न्यायालय ने कहा था कि निचली अदालत की ओर से तय की गई शर्तों पर वानी को एक नवंबर से जमानत पर रिहा किया जाएगा, भले ही सुनवाई पूरी हुई हो या न हुई हो.

अरबी में पीएचडी कर रहे थे वानी

30 जुलाई 2001 को जब वानी को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था, उस वक्त वह एएमयू से अरबी में पीएचडी कर रहे थे. दिल्ली में विस्फोटकों की कथित बरामदगी के सिलसिले में उन्हें गिरफ्तार किया गया था.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनउ पीठ ने 26 अगस्त को वानी को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था, ‘ऐसे लोगों की रिहाई से समाज के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.’

वानी ने उच्च न्यायालय के आदेश को उच्चतम न्यायालय के समक्ष चुनौती दी थी. उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल निचली अदालत को निर्देश दिया था कि वह छह महीने में मामले के गवाहों से तेजी से जिरह करे.

अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने 14 अगस्त 2000 को साबरमती एक्सप्रेस में धमाके को अंजाम देने के लिए मई 2000 में एएमयू के हबीब हॉल में साजिश रची थी. उनके खिलाफ जुलाई 2001 में आरोप तय किए गए थे.

बचाव पक्ष के वकील खान ने दलील दी थी कि ठोस साक्ष्यों के अभाव के कारण आरोपी बरी होने का हकदार है.