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Sabarimala Verdict: अब हर उम्र की महिलाएं मंदिर में कर सकती हैं प्रवेश

सुप्रीम कोर्ट ने पूजा करने को मूलभूत अधिकार माना, कहा लिंग के आधार पर भेद नहीं किया जा सकता

FP Staff
12:23 (IST)

महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि अब महिलाएं ये तय कर सकती हैं कि वो जाना चाहती हैं या नहीं. पहले ये धर्म के नाम पर उनपर थोपा गया था. अगर बात समानता और धर्म के अधिकार की आती है, तो समानता की जीत होनी चाहिए.

11:31 (IST)

पीटीआई के मुताबिक, सबरीमाला के मुख्य पुजारी कंडारारू राजीवारू ने कहा है कि वो इस फैसले से निराश हैं लेकिन महिलाओं के प्रवेश पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वीकार है.

11:25 (IST)

धार्मिक प्रथाओं को अधिकारों की समानता पर नहीं परखना चाहिए. इसका फैसला प्रथा को मानने वालों के ऊपर होना चाहिए, न कि कोर्ट को इसका फैसला करना चाहिए कि कौन सा धर्म किस प्रथा को माने.

11:22 (IST)

जस्टिस मल्होत्रा का कहना है कि मौजूदा फैसला बस सबरीमाला तक ही सीमित नहीं रहेगा. इसका बड़ा असर होगा. गहरे धार्मिक भावनाओं से जुड़े मुद्दों को इतने सामान्य तरीके से नहीं लिया जाना चाहिए.

11:20 (IST)

इस केस की सुनवाई करने वाले बेंच में शामिल जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने बाकी पांच जजों से अलग मत रखा है.

11:16 (IST)हम धर्मनिरपेक्ष देश ही क्यों, लिंगनिरपेक्ष देश क्यों नहीं हो सकते?11:12 (IST)

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद त्रावणकोर देवास्वम बोर्ड के अध्यक्ष ए पद्मकुमार ने कहा है कि वो दूसरे धार्मिक गुरुओं का समर्थन जुटाकर रिव्यू पेटीशन दाखिल करेंगे.

11:06 (IST)

10 से 50 वर्ष तक की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से रोकना संवैधानिक अधिकारों का हनन है. पूजा का अधिकार सभी भक्तों को है. लैंगिक आधार पर इसमें कई भेदभाव नहीं किया जा सकता है: चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा

11:06 (IST)

केरल में रहने वाले हिंदु अधिकार एक्टिविस्ट राहुल ईश्वर ने कहा है कि वो इस मामले में रिव्यू पेटिशन दाखिल करेंगे. उन्होंने कहा कि वो अभी और जानकारी आने का इंतजार कर रहे हैं. उन्होंने कहा हमारे पास अभी भी रास्ता है. वर्तमान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा रिटायर हो रहे हैं. हमें उम्मीद दूसरे जज इस मामले का नोटिस लेंगे.

11:05 (IST)

हम रिव्यू पेटिशन दाखिल करेंगे: राहुल ईश्वर

11:01 (IST)

कोर्ट ने सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत दे दी है.

10:58 (IST)

कोर्ट ने कहा है कि महिलाओं को पूजा से रोकना उनके मूल अधिकारों का हनन है.

10:58 (IST)

भगवान अयप्पा के मानने वाले हिंदू धर्मानुयायी हैं उनके लिए अलग नियम मत बनाइए. सबरीमाला मंदिर द्वारा बनाए गए नियम मूलभूत धार्मिक नियमों के तहत नहीं आते: सुप्रीम कोर्ट

10:57 (IST)

पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ में चार जजों की राय की एक ही थी. चार जज इस मत के थे कि महिलाओं की एंट्री मंदिर में होनी चाहिए. सिर्फ जस्टिस इंदू महल्होत्रा ने अलग मत रखा.

10:54 (IST)

सबरीमाला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के प्रवेश की इजाजत दे दी है.

10:53 (IST)

महिलाओं के पक्ष में आया फैसला, सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला के दरवाजे महिलाओं के लिए खोले. 

10:52 (IST)

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि महिलाएं किसी भी तरह पुरुषों से कमतर नहीं हैं. एक तरफ तो महिलाओं की देवी की तरह पूजा होती है लेकिन दूसरी तरफ उन पर कई सारे प्रतिबंध भी हैं. ईश्वर के साथ इंसानी संबंध शारीरिक और मानसिक बाध्यताओं को ध्यान में रखकर नहीं परिभाषित किए जा सकते.

10:52 (IST)

पांच जजों की बेंच ने इस मामले में अपना फैसला सुनाना शुरू कर दिया है. 

10:48 (IST)

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने 1 अगस्त 2018 को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था.

10:48 (IST)

केरल के सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ आज अपना फैसला सुनाएगी. 

केरल के सबरीमला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने शुक्रवार को अपना फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए सबरीमाला मंदिर के दरवाजे हर उम्र की महिलाओं के लिए खोल दिए हैं.

सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय जजों की बेंच ने कहा है कि महिलाओं को पूजा न करने देना उनके मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है. कोर्ट ने ये भी कहा कि धार्मिक अधिकार लिंग देखकर तय नहीं किए जाने चाहिए.


फैसले पर लोगों ने खुशी जताई है लेकिन त्रावणकोर देवास्वम बोर्ड के अध्यक्ष एम पद्मकुमार ने कहा है कि वो इसके खिलाफ रिव्यू पेटीशन डालेंगे.

बता दें कि फिलहाल 10 से लेकर 50 साल की उम्र तक की महिलाओं को मंदिर में जाने की इजाजत नहीं है. वहीं इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन और अन्य ने इस प्रथा को चुनौती दी है. उन्होंने कहा है कि यह प्रथा लैंगिक आधार पर भेदभाव कर रही है. इसे खत्म करने की मांग की गई है. याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना है कि यह संवैधानिक समानता के अधिकार में भेदभाव है. एसोसिएशन के अनुसार मंदिर में प्रवेश के लिए 41 दिन से ब्रहचर्य की शर्त नहीं लगाई जा सकती क्योंकि महिलाओं के लिए यह बिल्कुल असंभव है.

वहीं दूसरी तरफ केरल सरकार ने भी मंदिर में सभी महिलाओं के प्रवेश की वकालत की है. याचिका का विरोध करने वालों ने दलील दी है कि सुप्रीम कोर्ट सैकड़ों साल पुरानी प्रथा और रीति रिवाज में दखल नहीं दे सकता. भगवान अयप्पा खुद ब्रहमचारी हैं और वह महिलाओं का प्रवेश नहीं चाहते. इससे पहले मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने 1 अगस्त 2018 को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था.

वहीं 3 अगस्त 2018 को केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से लेकर 50 साल की उम्र तक की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी के खिलाफ याचिका पर संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए पूछा कि महिलाओं को उम्र के हिसाब से मंदिर में प्रवेश देना क्या संविधान के मुताबिक है? इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आर्टिकल 25 सभी वर्गों के लिए बराबर है. मंदिर हर वर्ग के लिए है किसी खास के लिए नहीं है. हर कोई मंदिर में आ सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान इतिहास पर नहीं चलता बल्कि ये ऑर्गेनिक और वाइब्रेंट है.