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सबरीमाला मंदिर पर क्यों मचा है हंगामा, जानिए 12 साल से चल रहे विवाद की पूरी कहानी

7 नवंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने नजरिये से साफ कर दिया था कि वह हर उम्र की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश देने के पक्ष में है

FP Staff

केरल का प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर खूब चर्चा में है. इस मंदिर के कपाट आज शाम से पूजा के लिए खुल रहे हैं. लेकिन मंदिर के बाहर भारी पुलिस बल तैनात किया गया है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने हर उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश और पूजा की अनुमति दे दी है. इससे पहले 10 साल से 50 साल तक की आयु की महिलाओं को मंदिर के अंदर जाने की अनुमति नहीं थी.

क्या है सबरीमाला विवाद, क्यों मचा है इस पर हंगामा


केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 साल से 50 साल तक की आयु की महिलाओं को मंदिर के अंदर जाने की अनुमति नहीं थी. लेकिन विवाद की शुरुआत कन्नड़

अभिनेत्री जयमाला के दावे से हुई थी.

दरअसल 2006 में मंदिर के ज्योतिषी परप्पनगडी उन्नीकृष्णन ने कहा था कि मंदिर में मौजूद भगवान अयप्पा अपनी शक्ति खो रहे हैं और वह नाराज हैं. उन्नीकृष्णन ने कहा था कि किसी युवा महिला के मंदिर में प्रवेश करने की वजह से ऐसा हुआ है.

इसके बाद कन्नड़ अभिनेता प्रभाकर की पत्नी जयमाला का दावा सामने आया था. जयमाला ने कहा था कि उन्होंने अयप्पा की मूर्ति को छुआ था, बात 1987 की है, वह अपने पति के साथ मंदिर गई थीं और धक्का लगने की वजह से अयप्पा के चरणों में गिर गईं. अब वह इस बात का प्रायश्चित करना चाहती हैं.

जयमाला के दावे के बाद सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई थी याचिका

कन्नड़ अभिनेत्री के दावे के बाद पूरे केरल में हंगामा मच गया. जिससे पूरे देश का ध्यान इस मुद्दे पर गया कि एक मंदिर ऐसा भी है जहां महिलाओं के प्रवेश पर रोक है.

सुप्रीम कोर्ट में 2006 में राज्य के यंग लॉयर्स एसोसिएशन ने याचिका दायर की और महिलाओं के प्रवेश न होने देने की प्रथा पर सवाल उठाए लेकिन 10 सालों तक यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लटका रहा.

जब मामले की सुनवाई शुरू हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के बोर्ड से पूछा कि महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति क्यों नहीं है? इसके जवाब में बोर्ड ने कहा भगवान अयप्पा के ब्रह्मचर्य की वजह से केवल वह बच्चियां और महिलाएं इस मंदिर में जा सकती हैं जिनका मासिक धर्म या तो खत्म हो चुका हो या शुरू न हुआ हो.

लेकिन 7 नवंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने नजरिये से साफ कर दिया था कि वह हर उम्र की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश देने के पक्ष में है.

राजनीतिक गलियारों में खूब हवा बना सबरीमाला मंदिर

सबरीमाला मंदिर की पूरे देश में चर्चा होने लगी थी. क्योंकि महिलाओं के प्रवेश न देने का मामला पूरे देश में उठने लगा था. ऐसे में राजनीतिक पार्टियां कहां पीछे रहतीं. जब मंदिर से जुड़ी पहली याचिका 2006 में दायर हुई तब 2007 में एलडीएफ ने इसके पक्ष में रुझान दिखाया लेकिन यूडीएफ ने इस वाकये पर कहा कि यह परंपरा 1500 साल से चली आ रही है. इसलिए वह मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ है.

लेकिन राजनीतिक बयानबाजी को दरकिनार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में इस मामले को संविधान पीठ को दे दिया और जुलाई 2018 में मामले की सुनवाई शुरू हो गई. पांच जजों की बेंच ने इस मामले की सुनवाई शुरू की.

12 सालों के बाद आखिरकार 28 सितंबर 2018 को इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया. कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देते हुए कहा भारत में महिलाओं को देवियों की तरह पूजा जाता है लेकिन उन्हें मंदिर में अंदर जाने से रोका जा रहा है जिसे बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया जा सकता.