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चंद्रशेखरन के लिए आसान नहीं होगा टाटा का विशालकाय साम्राज्य संभालना

इशात हुसैन, एस रामादोरई और नोएल टाटा जैसे दिग्गजों को रेस में पीछे छोड़कर सबसे ऊंचाई पर पहुंचे हैं चंद्रशेखरन

Sindhu Bhattacharya

टाटा संस के अगले चेयरमैन एन चंद्रशेखरन के पास इस पद की दौड़ जीतने के लिए कम से कम दो मजबूत आधार थे.

पहला, वह टाटा ग्रुप में लंबे वक्त से मौजूद थे. उनका करियर ग्रुप से ही शुरू हुआ था और वक्त के साथ वह टीसीएस में टॉप पोजिशन पर पहुंचे थे. दूसरा, उन्हें अक्सर भारत के सबसे अधिक सफल प्रोफेशनल सीईओ के तौर पर गिना जाता है.


टीसीएस को बुलंदियों पर पहुंयाया

टाटा ग्रुप की सबसे बेहतरीन कंपनियों में से एक टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) को चलाने की जिम्मेदारी उनके हाथ रही है. उन्होंने टीसीएस को रिकॉर्ड प्रॉफिट और मार्केट लीडर की पोजिशन पर पहुंचाया है.

लॉयल्टी और परफॉर्मेंस दोनों मोर्चों पर बेजोड़ साबित रहे चंद्रशेखरन को लेकर यह अचरज नहीं जताया जाना चाहिए कि वह टाटा संस के चेयरमैन कैसे बन गए.

उन्होंने टाटा ग्रुप में मौजूद इशात हुसैन, एस रामादोरई और यहां तक कि नोएल टाटा जैसे दिग्गजों को इस रेस में पीछे छोड़ा है.

एक बेहतरीन लीडर

मैराथॉन दौड़ने वाले और क्लासिकल संगीत के मुरीद चंद्रशेखरन टाटा संस में अपने साथ ग्लोबल मार्केट्स की समझ ला रहे हैं. उन्हें एक बेमिसाल सीईओ और काबिल लीडर माना जाता है. यही वजह है कि टाटा में मौजूद एक वर्ग इस फैसले से चकित रह गया है. इस तबके को लग रहा था कि नोएल टाटा को अब टाटा संस की कमान सौंपी जाएगी.

पिछले साल 24 अक्टूबर को टाटा संस के बोर्ड ने सायरस मिस्त्री को चेयरमैन के पद से हटा दिया था. हैरान कर देने वाले इस घटनाक्रम के बाद अगले दो महीने तक पूरे टाटा ग्रुप में उठापटक का दौर जारी रहा.

मिस्त्री और टाटा ग्रुप एक-दूसरे के आमने-सामने आ गए. आपसी झगड़े सार्वजनिक होने लगे. 2012 में सायरस मिस्त्री को टाटा संस की कमान सौंपी गई थी. उसके बाद के चार साल में लिए गए फैसलों और उनकी परफॉर्मेंस, रतन टाटा की भूमिका, हर चीज पर सवाल उठाए जाने लगे. टाटा संस में कॉरपोरेट गवर्नेंस के मसले को मिस्त्री ने उठा दिया. बात यहां तक बढ़ी कि मामला अब कोर्ट में पहुंच गया है.

सेलेक्शन कमेटी के लिए बेस्ट दांव थे चंद्रशेखरन

गौर करने वाली बात यह है कि सायरस मिस्त्री की तरह से ही एन चंद्रशेखरन का भी चयन एक सेलेक्शन कमेटी ने गहन विचार-विमर्श के बाद किया है. लेकिन, जिन लोगों ने चंद्रशेखरन का चुनाव किया है वह मानते हैं कि चंद्रशेखरन ग्रुप में स्थिरता लाएंगे.

टाटा ग्रुप के एक इनसाइडर ने बताया ‘सोचिए कि- जहाज का कप्तान पूरे माहौल को स्कैन करने वाला हो. अगर वह जहाज के डेक पर खड़ा हो तो वह कुछ दूर तक ही देख सकता है. लेकिन अगर वह जहाज के झंडे पर मौजूद हो तो दिखने वाला परिदृश्य कहीं बड़ा होगा'.

चंद्रशेखरन इस पद के लिए क्यों सबसे उपयुक्त हैं इसे इस तरह से समझा जा सकता है. वह इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की अगुवाई कर चुके हैं, उनके पास जहाज के झंडे पर चढ़कर देखने का विजन है’.

मिस्त्री जैसे टकराव की दोबारा आशंका नहीं

चंद्रशेखरन इस टॉप जॉब के लिए फिट हैं या नहीं, यह सवाल ही नहीं है. सवाल यह है कि क्या मिस्त्री जैसा बाहर निकालने का फैसला निकट भविष्य में तो नहीं होगा? या क्या टाटा ट्रस्ट्स की इच्छाओं और चंद्रशेखरन के फैसलों के बीच कोई टकराव तो नहीं होगा?

ग्रुप के अंदरूनी लोगों का कहना है कि इस बात की आशंका न के बराबर है. क्योंकि चंद्रशेखरन (जिन्हें चंद्रा नाम से उनके सहयोगी बुलाते हैं) का कोई फैमिली बिजनेस नहीं है.

दूसरी ओर, सायरस मिस्त्री और उनके परिवार (ताकतवर शापूरजी पल्लोनजी ग्रुप) की टाटा संस में 18 फीसदी हिस्सेदारी है. इसके चलते मिस्त्री और टाटा ट्रस्ट्स के बीच कई चीजों पर मतभेद पैदा हुए.

टाटा ग्रुप के चेयरमैन के तौर पर सायरस मिस्त्री का चार साल का कार्यकाल विवादों से भरा रहा

कुल मिलाकर अब चंद्रा की टाटा संस के चेयरमैन के तौर पर नियुक्ति हो चुकी है. चंद्रशेखरन पर एक भीमकाय कारोबारी समूह को चलाने की जिम्मेदारी है.

चंद्रशेखरन के लिए गुरुवार का दिन बेहद खास रहा होगा. दोपहर तक वह बतौर सीईओ और एमडी, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के तिमाही नतीजों का ऐलान कर रहे थे. दिन के अंत में वह पूरे देश की निगाहों में आ गए. उन्हें टाटा संस की जिम्मेदारी सौंप दी गई.

टीसीएस के उम्मीद से बेहतर नतीजे

अमेरिका में नए निजाम के आने पर भारतीय इंजीनियर्स के लिए वीजा की दिक्कतों की आशंका के बीच टीसीएस ने उम्मीद से बेहतर वित्तीय नतीजे पेश किए हैं.

अक्टूबर से दिसंबर 2016 की तिमाही में कंपनी का नेट प्रॉफिट इससे पिछली तिमाही के मुकाबले 2.9 फीसदी ऊपर चढ़ा है. जबकि 2015-16 की इसी तिमाही के मुकाबले कंपनी का नेट प्रॉफिट 10.9 फीसदी चढ़ा है. कंपनी का नेट प्रॉफिट 6,778 करोड़ रुपये रहा है.

सालाना आधार पर कंपनी की टोटल इनकम भी 10.1 फीसदी बढ़कर 30,927 करोड़ रुपये पर पहुंच गई. जो पहले 28,071 करोड़ रुपये था.

जिम्मेदारियों का बोझ रहेगा चंद्रशेखरन पर

2012 के उनके एक इंटरव्यू से पता चलता है कि चंद्रशेखरन छह भाई-बहनों में एक हैं. दसवीं तक वह एक तमिल-मीडियम स्कूल में पढ़े. गणित में बेजोड़ चंद्रा को पढ़ाई के लिए दूसरे शहर जाने पर होटल में रहना पड़ा. अपनी अब तक की संरक्षित जिंदगी के लिहाज से यह एक बड़ा बदलाव था.

टाटा संस की सबसे बड़ी जिम्मेदारी पर पहुंचने के बाद उन्हें टाटा ट्रस्ट और ग्रुप की अन्य कंपनियों के बीच अस्पष्ट रिश्तों को भी संभालना पड़ेगा. साथ ही उन्हें घाटे में चल रही कई कंपनियों और वेंचरों पर भी फैसले लेने होंगे.

एन चंद्रशेखरन के कंधों पर टाटा ग्रुप की कंपनियों के बीच सामंजस्य बिठाने की जिम्मेदारी रहेगी (फोटो: पीटीआई)

टाटा ग्रुप का प्रॉफिट मुख्य तौर पर केवल दो कंपनियों से आ रहा है. ये हैं- टीसीएस और जगुआर लैंड रोवर. ये दोनों कंपनियां टोटल टर्नओवर में करीब 50 फीसदी हिस्सा रखती हैं.

प्रॉफिट के लिहाज से देखा जाए तो इन दोनों कंपनियों की हिस्सेदारी ग्रुप के टोटल प्रॉफिट में शायद 90 फीसदी से भी ज्यादा है.

लॉस मेकिंग कंपनियों से निपटना मुख्य चुनौती

आंकड़े बताते हैं कि मिस्त्री के कार्यकाल के दौरान ग्रुप को मिलने वाला डिविडेंड (लाभांश) तकरीबन 20 फीसदी गिर गया है. 2015-16 के दौरान टाटा संस को ग्रुप की कंपनियों से महज 2 करोड़ रुपये के करीब डिविडेंड मिला.

इसके अलावा अगर टाटा स्टील और टाटा डोकोमो के फंसे हुए मामलों को देखा जाए तो टाटा संस के नए चेयरमैन के रास्ते में मुश्किलें ज्यादा नजर आती हैं.

यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि चंद्रशेखरन के ऊपर दायित्वों का जो बोझ पड़ा है. वह निभाना उनके जैसे परफॉर्मर के लिए भी आसान नहीं होगा.