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आरएसएस का मंदिर राग, आखिर चुनाव से पहले फिर क्यों याद आए राम?

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने केंद्र सरकार से कानून बनाकर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए रास्ता साफ करने को कहा है.

Amitesh

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने केंद्र सरकार से कानून बनाकर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए रास्ता साफ करने को कहा है. संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने नागपुर में विजयादशमी के मौके पर अपने सालाना संबोधन के दौरान साफ-साफ शब्दों में कानून के जरिए राम मंदिर बनाने की मांग का समर्थन की. मोहन भागवत ने कहा, ‘चाहे जैसे बने मंदिर बनना चाहिए. इस मुद्दे पर सरकार को कानून लाना चाहिए.’

गौरतलब है कि साधु-संतों के साथ विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की बैठक के बाद देश भर में राम मंदिर को लेकर सरकार और सांसदों पर कानून बनाने को लेकर दबाव बढ़ाया जा रहा है. लेकिन, अब संघ परिवार के मुखिया की तरफ से इस मुद्दे पर कानून बनाने की मांग करने के बाद मोदी सरकार पर दबाव और बढ़ जाएगा.


मोहन भागवत ने इस मुद्दे पर तंज कसते हुए कहा, ‘सत्ता बदलने से मांगें पूरी होती हैं, ऐसा भ्रम है. लोग कहते हैं कि अब तो आपकी सरकार आ गई है.’ भागवत की तरफ से सरकार को आईना दिखाने की कोशिश भी की गई है, क्योंकि अबतक बीजेपी और सरकार की तरफ से साफ-साफ कहा जाता रहा है कि या तो आपसी सहमति के आधार पर या फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर ही राम मंदिर मुद्दे पर सरकार आगे बढ़ेगी.

चुनाव से पहले क्यों उठा यह मुद्दा ?

प्रतीकात्मक तस्वीर

राम मंदिर मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में 29 अक्टूबर से सुनवाई शुरू हो रही है. इस बात की उम्मीद की जा रही है कि अब सुप्रीम कोर्ट से फैसला जल्द आ जाएगा. लेकिन, कोर्ट के फैसले के इंतजार के बगैर संघ परिवार ने हर हाल में राम मंदिर बनाने का राग छेड़ दिया है. यह बीजेपी के रुख से बिल्कुल अलग है. फिर भी सवाल यही खड़ा हो रहा है कि अब जबकि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं और फिर अगले साल की शुरुआत में लोकसभा के चुनाव होने हैं तो उसके पहले इस संवेदनशील मुद्दे पर कोर्ट के आदेश का इंतजार करने के बजाए हवा क्यों दी जा रही है? इस मुद्दे पर पिछले साढ़े चार सालों में क्यों नहीं दबाव बनाया गया? कहीं यह चुनावी चाल तो नहीं है?

संघ और बीजेपी भले ही इससे इनकार करें लेकिन, इस मुद्दे को राजनीति से अलग कर नहीं देखा जा सकता. हकीकत यही है कि राम के नाम पर सियासत पहले भी खूब हुई है, जिसका सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को हुआ है.

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने नाम लिए बगैर इस मुद्दे पर विपक्ष को कठघरे में भी खड़ा कर दिया. भागवत ने राम मंदिर मुद्दे पर जान बूझकर देरी करने और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टालने के लिए विपक्ष पर निशाना भी साधा. उन्होंने अबतक मंदिर नहीं बन पाने के लिए राजनीति को ही जिम्मेदार ठहराया.

संघ प्रमुख के नजरिए से साफ है कि अब यह मुद्दा खूब गरमाएगा जिसके निशाने पर विपक्ष रहेगा और सत्ता में बैठी बीजेपी इस मुद्दे का फिर से सियासी फायदा उठाने की कोशिश करती दिखेगी.

सबरीमाला मंदिर पर श्रद्धालुओं के साथ संघ

अपने विजयादशमी भाषण में संघ प्रमुख ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश बहाल करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल खड़ा किया. सबरीमाला मुद्दे पर भागवत ने कहा, ‘ स्त्री पुरुष समानता अच्छी बात है, लेकिन सालों से चली आ रही परंपरा का सम्मान नहीं किया गया.’ भागवत ने कहा कि पहले से आ रही परंपरा पर कोई भी फैसला करने से पहले सभी पक्षों की बात और वहां के माहौल को समझने की जरूरत थी. उन्होंने धर्म के मामलों में धर्माचार्यों की राय लेने की जरूरत बताई.

एससी-एसटी और सवर्णों के बीच खाई से संघ चिंतित

एससी/एसटी एक्ट में संशोधन के विरोध में रखे गए एक प्रदर्शन के दौरान की तस्वीर

लंबे वक्त से संघ हिंदू समाज को एक करने के मकसद से काम कर रहा है. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एससी-एसटी एक्ट को लेकर दिया गया फैसला और उसके बाद मचे बवाल ने समाज के भीतर खाई पैदा कर दी है. इससे संघ चिंतित है. जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए सरकार ने कानून पास करा दिया तो फिर सवर्ण तबका सरकार से नाराज हो गया है.

मोहन भागवत ने इस तरह के आंदोलन के पीछे राजनीतिक लोगों को जिम्मेदार ठहराया. भागवत ने शहरी माओवाद और उनकी तरफ से की जा रही साजिश के प्रति लोगों को आगाह भी किया. सोशल मीडिया पर चल रहे षड्यंत्र और अफवाह से बचने की जरूरत भी बताई.

लेकिन, संघ परिवार के मुखिया के भीतर अगले चुनाव में इस तरह के आंदोलन और उन आंदोलनों से साइड इफेक्ट की चिंता दिख रही थी. मोहन भागवत ने अगले चुनावों को लेकर जो कहा उसके एक-एक शब्द का व्यापक मतलब है. इसमे संदेश भी है उन लोगों के लिए जो पांच साल की बीजेपी सरकार से अपेक्षा के मुताबिक काम नहीं होने के चलते असंतुष्ट दिख रहे हैं.

सवर्णों की नाराजगी दूर करने की कोशिश

संघ प्रमुख ने कहा कि कोई भी सौ प्रतिशत अच्छा या बुरा नहीं होता. इसलिए जो भी एवेलेबल बेस्ट है, उसे चुनना होगा. दरअसल, मोहन भागवत की तरफ से उन्हें यह समझाने की कोशिश की जा रही थी, जो लोग नाराज होकर आने वाले चुनावों में नोटा का इस्तेमाल करने की धमकी दे रहे हैं.

इस वक्त एससी-एसटी एक्ट को लेकर सवर्ण समाज देश भर में आंदोलन कर रहा है. बीजेपी नेताओं को काले झंडे दिखाए जा रहे हैं और अगले चुनाव में सबक सिखाने की बात कही जा रही है. हर प्लेटफॉर्म पर नोटा को समर्थन देने की बात कही जा रही है. सवर्ण समाज बीजेपी के साथ रहा है. ऐसे में उसकी नोटा पर दिखाई गई नाराजगी का असर सीधे विपक्ष के फायदे के तौर पर दिखेगा.

संघ प्रमुख मोहन भागवत की तरफ से नोटा को न करने की सलाह को इसी संदर्भ में देखा जा रहा है. मोहन भागवत के कहने का मतलब है कि अगर दो में से एक एकदम बुरा है और दूसरा कुछ बेहतर है लेकिन, उतना नहीं, जितनी उम्मीद थी. तो इसे ही एवेलेबल बेस्ट मानकर वोट करना चाहिए. अगर ऐसा नहीं कर नोटा को समर्थन दे दिया गया तो इसका असर उल्टा होगा और एवेलेबल बेस्ट के बजाए एवेलेबल वर्स्ट को फायदा हो जाएगा.

मोहन भागवत की चिंता से साफ है कि सवर्णों की नाराजगी और बीजेपी को सबक सिखाने के लिए उनकी तरफ से किया जा रहा आंदोलन आने वाले विधानसभा चुनावों से लेकर लोकसभा चुनाव तक बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकता है. मोहन भागवत ने अपने भाषण में कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भी अपनी बात रखी. लेकिन, उनका भाषण में उन मुद्दों को ज्यादा तरजीह दी गई जिनका सीधा असर आने वाले चुनाव में देखने को मिल सकता है.