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मुंबई में आरएसएस का मंथन, राम मंदिर मुद्दे को गरमाने की तैयारी

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी आरएसएस की अखिल भारतीय प्रतिनिधिमंडल की तीन दिवसीय बैठक में संघ के संगठन विस्तार से लेकर पर्यावरण समेत कई मुद्दों पर चर्चा हो रही है.

Amitesh

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी आरएसएस की अखिल भारतीय प्रतिनिधिमंडल की तीन दिवसीय बैठक में संघ के संगठन विस्तार से लेकर पर्यावरण समेत कई मुद्दों पर चर्चा हो रही है. लेकिन, इस बैठक में भी अयोध्या में भव्य राम मंदिर का मुद्दा छाया हुआ है.

31 अक्टूबर से 2 नवंबर तक चलने वाली संघ की इस तीन दिनों की बैठक में देश भर से संघ के अखिल भारतीय, क्षेत्र और प्रांत के लगभग 350 पदाधिकारी शामिल हैं. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि इस बैठक में राम मंदिर मुद्दे पर भी चर्चा होगी. राम मंदिर के मुद्दे को लेकर संघ की तरफ से उसी वक्त से माहौल बनाना शुरू हो गया है जब संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने विजयादशमी के भाषण में नागपुर से ही राम मंदिर बनाने के लिए कानून बनाने की मांग कर दी थी. अब उसी लाइन को आगे बढ़ाते हुए संघ की तरफ से राम मंदिर मुद्दे को गरमाने की तैयारी हो रही है.


संघ के सहसरकार्यवाह मनमोहन वैद्य ने भी राम मंदिर के मुद्दे पर कहा, ‘यह मुद्दा न हिंदू-मुस्लिम का है और न ही मंदिर-मस्जिद के विवाद का है. बाबर के सेनापति ने जब अयोध्या में आक्रमण किया तो ऐसा नहीं था कि वहां नमाज के लिए जमीन नहीं थी. वहां खूब जमीन थी, मस्जिद बना सकते थे. पर उसने आक्रमण कर मंदिर को तोड़ा था.’

वैद्य ने दोहराया, ‘पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई में यह सिद्ध हो चुका है कि इस स्थान पर पहले मंदिर था. इस्लामी विद्वानों के अनुसार भी जबरदस्ती कब्जाई भूमि पर पढ़ी गई नमाज कबूल नहीं होती है और सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने फ़ैसले में कहा है कि नमाज के लिए मस्जिद जरुरी नहीं होती, ये कहीं भी पढ़ी जा सकती है.’ उन्होंने राम मंदिर को राष्ट्रीय स्वाभिमान और गौरव का विषय बताते हुए एक बार फिर से राम मंदिर को लेकर सरकार से कानून बनाने की मांग को दोहरा दिया.

गौरतलब है कि राम मंदिर के मुद्दे को लेकर साधु-संतों की तरफ से वीएचपी के साथ मिलकर आंदोलन चलाने का फैसला किया गया है. हाल ही में संच उच्चाधिकार समिति की बैठक में इस बाबत फैसला लिया गया है, जिसमें सांसदों के घेराव से लेकर हर राज्य में राम मंदिर के पक्ष में माहौल गरमाने की कोशिश की जाएगी. संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने भी इस मुद्दे पर साधु-संतों के आंदोलन का समर्थन करते हुए कहा, ‘हमने अबतक उनका समर्थऩ किया है और आगे भी वे जो निर्णय करेंगे उसमें हम उनका समर्थन करेंगे.’

दरअसल, अयोध्या मामले में 29 अक्टूबर को सुनवाई की तारीख तय हुई थी. उस वक्त उम्मीद की जा रही थी कि सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर अगर लगातार सुनवाई हुई तो फिर जल्द ही इस पर कोई फैसला आ सकता है. राम मंदिर पर फैसला आने की सूरत में हर तरह से फायदे में बीजेपी ही रहती. सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी मान कर चल रही थी कि अगर फैसला आ गया तो फिर लोकसभा चुनाव से पहले मंदिर निर्माण को लेकर माहौल बन सकता है, जिसका फायदा उसे होता, लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2019 तक सुनवाई टालकर बीजेपी के साथ-साथ संघ परिवार के मंसूबों पर पानी फेर दिया.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी नेताओं और संघ परिवार के लोगों की तरफ से आ रही प्रतिक्रिया से साफ है कि उनको किस तरह निराशा हाथ लगी थी. लेकिन, अभी भी संघ की तरफ से अब सरकार पर कानून बनाने के लिए दबाव बनाया जा रहा है. अब संघ परिवार को भी सुप्रीम कोर्ट के रूख से ऐसा लगने लगा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर शायद ही कोर्ट अपना फैसला दे. लिहाजा इस मुद्दे को गरमाकर ध्रुवीकरण की तैयारी फिर से शुरू हो गई है.

लेकिन, सबसे बड़ा सवाल है कि क्या सरकार संघ परिवार के दबाव में या संघ से सुझाव और सहमति के आधार पर राम मंदिर को लेकर अध्यादेश पर आगे बढ़ेगी. सरकार के लिए ऐसा करना आसान नहीं होगा. लेकिन, संघ की तरफ से मंदिर मुद्दे पर बनाए जा रहे माहौल से लग रहा है कि सरकार इस मुद्दे पर चुनावों से पहले कोई बड़ा फैसला ले सकती है.