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गोलवलकर के विचारों को छोड़कर नया RSS बना रहे हैं मोहन भागवत?

भागवत ने कहा कि आरएसएस अब संगठन के गुरु रहे एम एस गोलवलकर के कुछ विचारों से सहमति नहीं रखता है और खुद में बदलाव ला रहा है

FP Staff

RSS पिछले कुछ वक्त से इस बड़े संगठन को सबके बीच ले जाने के लिए और संघ से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने के लिए काम कर रहा है. इस दिशा में आरएसएस ने 'भारत का भविष्य: आरएसएस का दृष्टिकोण' नाम से एक कार्यक्रम करवाया और इस कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने संघ से जुड़ी कई भ्रांतियां तोड़ीं, तो वो कई बदलावों को गले भी लगाते नजर आए.

लेकिन एक जो बहुत नई और अप्रत्याशित बात नजर आई, वो ये कि बुधवार को कार्यक्रम के आखिरी दिन उन्होंने खुलेआम ये कहा कि आरएसएस अब संगठन के गुरु रहे एम एस गोलवलकर के कुछ विचारों से सहमति नहीं रखता है और खुद में बदलाव ला रहा है. ये बहुत नया है. ये बिल्कुल वैसा है जैसे कोई संगठन अपनी नींव उखाड़ दे. लेकिन भागवत आश्वस्त हैं कि वो नए आरएसएस का निर्माण कर रहे हैं.


समय के साथ बदलने को तैयार आरएसएस

इस कार्यक्रम में आरएसएस के नए लचीलेपन और गोलवलकर के कम जिक्र पर सवाल पूछे गए तो उन्होंने कहा कि संघ ने गुरु गोलवलकर की भाषणों के संग्रह की किताब 'बंच ऑफ थॉट्स' के कुछ हिस्सों को त्याग दिया है क्योंकि ये वक्त की मांग है.

भागवत ने कहा, 'गोलवलकर के भाषण परिस्थितिवश बोले गए हैं, जो शाश्वत नहीं रहते. संघ बंद संगठन नहीं है, समय बदलता है, हमारी सोच बदलती है, बदलने की परमिशन डॉ केशव बलिराम हेडेगवार से मिलती है, जिन्होंने कहा कि हम समय के साथ संगठन में बदलाव करने के लिए स्वतंत्र हैं.'

गोलवलकर ने अपनी किताब बंच ऑफ थॉट्स में ईसाईयों और मुस्लिमों को हिंदुओं के समाज के लिए आंतरिक खतरा बताया है. लेकिन आरएसएस के इस कार्यक्रम में भागवत ने बयान दिया था कि वो मुक्त भारत नहीं युक्त भारत में विश्वास रखते हैं और वो किसी दूसरे समुदाय को खतरे के रूप में नहीं देखते हैं.

भागवत का कहना था कि ‘हिंदू राष्ट्र का यह मतलब नहीं है कि उसमें मुस्लिमों के लिए कोई जगह नहीं है. हिंदुत्व भारतीयता और समावेशवादी है,’ हालांकि उन्होंने ये भी दावा किया कि विश्वभर में हिन्दुत्व की स्वीकार्यता बढ़ रही है जो उनके संगठन की आधारभूत विचारधारा है.

धर्मांतरण, गोरक्षा और मॉब लिंचिंग जैसे मुद्दे भी उठाए

मोहन भागवत ने इस समारोह ने विभिन्न ऐसे मुद्दों पर खुलकर अपनी बात रखी, जिनपर आरएसएस का दृष्टिकोण संकीर्ण माना जाता है साथ ही उन्होंने संघ की बदलती हुई छवि को भी पेश करने की कोशिश की.

अकसर हिंदुत्ववादी संगठन और भारतीय जनता पार्टी के नेता मुस्लिमों की बढ़ती आबादी और हिंदुओं की बढ़ती आबादी जैसे बयान देते रहते हैं. इसपर भागवत ने आबादी में संतुलन का हवाला देत हुए कहा कि दुनिया भर में जनसांख्यिकी संतुलन को अहम माना जाता है और इसे यहां भी कायम रखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘जहां अधिक बच्चे होते हैं लेकिन उनका पालन करने के साधन सीमित हैं और उनका पालन पोषण अच्छा नहीं हुआ तो वे अच्छे नागरिक नहीं बन पाएंगे.’

उन्होंने कहा, ‘इसे ध्यान में रखते हुए आबादी पर एक नीति तैयार की जानी चाहिए. अगले 50 सालों में देश की संभावित आबादी और इस संख्या बल के अनुरूप संसाधनों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए.' वहीं धर्मांतरण पर भागवत का कहना था कि ये अकसर बुरी भावना के साथ करवाया जाता है और इससे आबादी भी असंतुलित होती है.

उन्होंने गौरक्षा के नाम पर हिंसा और मॉब लिंचिग की आलोचना भी की. उन्होंने कहा कि गौरक्षा के नाम पर कानून के खिलाफ नहीं जाया जा सकता. भागवत ने कहा कि कानून को अपने हाथ में ले लेना एक अपराध है और ऐसे मामलों में कठोर दंड होना चाहिए.

अंतरजातीय विवाह को समर्थन, महिलाओं और एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए सुरक्षित माहौल

आरएसएस चीफ ने अंतरजातीय विवाह पर भी अपने विचार रखे. भागवत ने कहा कि संघ इस तरह के विवाह का समर्थन करता है और ये भी दावा किया कि अगर अंतर जातीय विवाहों के बारे में गणना कराई जाए तो सबसे अधिक संख्या में संघ से जुड़े लोगों को पाया जाएगा.

महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध पर भी उन्होंने कहा कि उनके लिए सुरक्षित माहौल तैयार करना होगा. उन्होंने एलजीबीटीक्यू से समान रूप से बर्ताव करने की भी बात कहीं. उनका कहना था कि इस समुदाय को अलग-थलग नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वे भी समाज का अंग हैं.

अंग्रेजी की जरूरत, अनुच्छेद 370 और 35 ए

साथ ही अंग्रेजी भाषा के प्रचलन पर भी भागवत बोले. उन्होंने कहा कि संघ अंग्रेजी सहित किसी भी भाषा का विरोधी नहीं है लेकिन उसे उसका उचित स्थान मिलना चाहिए. उनका संकेत था कि अंग्रेजी किसी भारतीय भाषा की जगह नहीं ले सकती.

संघ प्रमुख ने कहा, ‘आपको अंग्रेजी सहित किसी भी भाषा का विरोध नहीं करना चाहिए और इसे हटाया नहीं जाना चाहिए. हमारी अंग्रेजी से कोई दुश्मनी नहीं है. हमें इस भाषा को धाराप्रवाह बोलने वाले लोगों की जरूरत है.'

अन्य मुद्दों पर पूछे गये सवालों के उत्तर में उन्होंने जम्मू कश्मीर का भी उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि आरएसएस संविधान के अनुच्छेद 370 एवं 35 ए को स्वीकार नहीं करता.

संविधान का अनुच्छेद 370 राज्य की स्वायत्तता के बारे में है जबकि अनुच्छेद 35 ए राज्य विधानसभा को यह अनुमति देता है कि वह राज्य के स्थायी निवासियों को परिभाषित करे.