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म्यांमार से आए फॉर्म से क्यों डरे हुए हैं रोहिंग्या शरणार्थी, जानें पूरा मामला

म्यांमार सरकार से प्राप्त फॉर्मों ने दिल्ली में रोहिंग्या कैंप की परेशानी बढ़ा दी है. शरणार्थियों को डर है कि दस्तावेज उन्हें ऐसी जमीन पर निर्वासित करने के लिए हैं, जहां रोहिंग्या अभी भी बड़े स्तर पर मारे जा रहे हैं

FP Staff

म्यांमार सरकार से प्राप्त फॉर्मों ने दिल्ली में रोहिंग्या कैंप की परेशानी बढ़ा दी है. शरणार्थियों को डर है कि दस्तावेज उन्हें ऐसी जमीन पर निर्वासित करने के लिए हैं, 'जहां रोहिंग्या अभी भी बड़े स्तर पर मारे जा रहे हैं.' एक फॉर्म के मुताबिक, 'रोहिंग्या शरणार्थियों का व्यक्तिगत विवरण मांगा जा रहा है. बर्मीज के साथ अंग्रेजी में प्रिंट यह फॉर्म नाम, स्थान, जन्म, धर्म, आंखों का रंग और राष्ट्रीय पहचान के साथ किसी भी तरह के आपराधिक मामले का विवरण मांग रहा है, जिसकी वजह से उनकी विदेश यात्रा पर रोक लग सकती है.'

हालांकि, फॉर्म पर मांगा जाने वाला पहला विवरण शरणार्थी का नाम है. इस फॉर्म की शरुआत 1 'अमेम म्यांमार बंगाली' और 2 'अक्रिन अमे म्यांमार बंगाली' के कॉलम के साथ हो रही है. इसका मतलब है कि फॉर्म भरने वाले को 'नाम' और 'अन्य नाम' के साथ यह भी डिक्लेयर करना है कि 'मैं म्यांमार में बंगाली हूं'.


मदनपुर खादर शिविर के निवासी अब्दुल्ला ने कहा, 'इसका मतलब यह है कि मैं म्यांमार में एक बंगाली हूं, जो पूरी तरह से गलत है. हमारी पूरी लड़ाई हमारी पहचान के लिए थी. यह हमें वापस भेजने के लिए एक चाल है. हम नहीं जाना चाहते हैं.' फॉर्म 1 अक्टूबर को संबंधित पुलिस स्टेशनों द्वारा शरणार्थियों को दिए गए थे, लेकिन अब तक खाली हैं.

पूर्वोत्तर दिल्ली के खजूरी खास कैंप के निवासी अब्दुल ने कहा, 'हमें डीटेल्स भरने के लिए कहा गया था. हमने भारत में सभी औपचारिकताओं को पूरा कर लिया है, लेकिन हम इस तरह के फॉर्म नहीं भर सकते. दो दिन पहले मेरे होम टाउन रखाइन प्रांत के मौंगदाऊ क्षेत्र में दो रोहिंग्याओं को मार दिया गया. जब तक हमारे लिए सुरक्षित जगह नहीं होगी हम वापस नहीं जाएंगे.'

जब खजूरी खास पुलिस स्टेशन के एसएचओ पवन कुमार से पूछा गया कि शरणार्थियों को ऐसे फॉर्म क्यों दिए गए हैं तो उन्होंने कहा कि उन्हें कोई जानकारी नहीं है. इस फॉर्म का टाइटल 'पर्सनल डेटा फॉर्म' है और इसमें यह जानने की कोशिश की जा रही है कि आखिर शरणार्थियों ने विदेश यात्रा क्यों की? (जहां विदेश का मतलब भारत से है). वहीं म्यांमार के दूतावास को भेजे गए ईमेल पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.

कैंप के निवासियों का डर है कि यह फॉर्म पिछले हफ्ते निर्वासित सात रोहिंग्या शरणार्थियों की तरह अपना निर्वासन स्थापित करने के लिए है. कई शरणार्थी दिल्ली में कई सालों के बाद रोजगार खोजने और एक सभ्य जीवन व्यतीत करने में कामयाब हैं. सेंट्रल दिल्ली में एक कैंप के रोहिंग्या निवासी मोहम्मद ने कहा, 'ऐसा नहीं है कि वहां लोग मारे नहीं जा रहे हैं या स्थिति म्यांमार सरकार के नियंत्रण में है, बल्कि मैंने यहां काम करना शुरू कर दिया है, तो फिर मैं वापस क्यों जाऊंगा?'

गौरतलब है कि पिछले सप्ताह असम में गैरकानूनी तरीके से रह रहे सात रोहिंग्या प्रवासियों को म्यांमार वापस भेज दिया गया था. यह जानकारी असम पुलिस ने दी थी. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण की ओर से डाली गई याचिका को खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि केंद्र सरकार के पास पूरे दस्‍तावेज मौजूद हैं, जिससे पता चलता है कि सातों रोहिंग्‍या म्‍यांमार के हैं और उन्‍हें वहां भेजा जाना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि केंद्र के इस फैसले पर वह हस्‍तक्षेप नहीं कर सकता. पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने के बाद 2012 से ही ये लोग असम के सिलचर जिले के कचार केन्द्रीय कारागार में बंद थे.

(साभार न्यूज 18)