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रॉबिनहुड आर्मी: भारत और पाकिस्तान के एक दुश्मन से लड़ रहे हैं ये युवा

रॉबिन हुड आर्मी के नाम में वेबपोर्टल बनी तो वॉलेंटियर भी जुड़ने लगे

FP Staff

आपने रॉबिन हुड का नाम तो जरूर सुना होगा, अमीरों से लेकर गरीबों में बांटने वाले रॉबिन हुड की सोच को राजधानी के कुछ युवाओं की टीम सच में बदल रही है.

रॉबिन हुड आर्मी नाम के इस बैंड को युवा लड़के और लड़कियों की टीम चला रही है, जिसमें ये लोग होटलों और शादियों में बचे खाने को जरूरतमंद और गरीब लोगों तक पहुंचा रहे हैं.


इस टीम के ज्यादातर लोग स्टूडेंट या कहीं नौकरी करने वाले हैं. ये लोग अपने नाम के आगे रॉबिन लगाते हैं. हरे रंग की ड्रेस पहनते हैं और पूरे दिन अपना काम करने के बाद रात में होटलों से खाना लेकर बेघर और जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाते हैं.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार पिछले महीने जब भारत और पाकिस्तान अपनी आज़ादी के 70वें साल को सेलिब्रेट कर रहे थे, तब रॉबिन हुड आर्मी की टीम ने दोनों देशों के एक दुश्मन (भूख) से लड़ने का फैसला लिया और 48 शहरों के 1.32 मिलियन लोगों तक खाना पहुंचाने का फैसला लिया है.

रॉबिन हुड आर्मी के को-फाउंडर नील घोष का कहना है, हर साल एड्स, मलेरिया जैसी बीमारियों से भी ज्यादा मौतें भुखमरी की वजह से होती है. ऐसा भी नहीं है कि भोजन उतनी कमी है हमारे देश में बल्कि यहां लोगों तक बांटने वाली व्यवस्था सही नहीं है.’

10 सेकेंड में भूख से एक बच्चे की मौत होती है

बात 15 अगस्त 2014 की है. दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस पर नील घोष 160 बच्चों को भोजन करा रहे थे. भूखे गरीब बच्चों को भोजन कराने की उस अनुभूति का एहसास न केवल उनके साथी युवाओं को हुआ बल्कि राजधानी के कुछ युवाओं ने भी गरीबों के दर्द को महसूस किया. इंटरनेट पर अपलोड रिपोर्ट के आधार पर युवाओं को जब पता चला कि 10 सेकेंड में भूख से एक बच्चे की मौत होती है तो कुल बने भोजन का 40 फीसद हिस्सा फेंक दिया जाता है.

यह बात उनके  दिल को छू गई. चौक के मानस मेहरोत्रा, प्रदीप मिश्र, करिश्मा, ऋत्विक, विदिशा और अनुराग सहित 120 युवाओं ने मई 2016 को गरीबों को भोजन कराने का फैसला लिया. फेसबुक और वॉट्सएप जैसे सोशल मीडिया साइट के माध्यम से लोगों को इस आर्मी में शामिल करने की अपील भी शुरू हो गई.

होटलों से खाना ले जाने के लिए फोन आने लगे

15 अगस्त को राजधानी के अलग-अलग इलाकों में 65 हजार गरीब बच्चों को भोजन कराने वाले इस आर्मी के सदस्यों के पास अब देर रात बचे खाने को ले जाने का फोन आता है. मैसेज के माध्यम से एक दूसरे से संपर्क होता है और जो नजदीक होता है, वह भोजन लेकर पास के नजदीकी गरीब बस्ती में भोजन बांटने पहुंच जाता है.

19 शहरों में रॉबिन हुड एकेडमी की शुरुआत

रॉबिन हुड आर्मी की टीम ने 19 शहरों में रॉबिन हुड एकेडमी की भी शुरुआत की है, जहां वे लोग स्लम के बच्चों को पढ़ाते हैं और साथ ही उन्हें स्कूल तक पहुंचाने में भी मदद करते हैं.

रॉबिन हुड आर्मी के नाम में वेबपोर्टल बनी तो वॉलेंटियर भी जुड़ने लगे. सभी अपने नाम के आगे रॉबिन जोड़ने लगे और हरे रंग की टी शर्ट ड्रेस कोड भी हो गया. अपनी तस्वीरों के बजाय रॉबिन हुड आर्मी के बारे में लोगों को बताने का प्रयास करने वाले युवा न तो किसी से पैसा लेते हैं और न ही देते हैं. कोई इनकी आर्थिक मदद भी करना चाहता है तो मदद के बजाय उनसे गरीबों के लिए भोजन मांगते हैं.