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तीन तलाक: हिंदू संगठनों ने किया हाईकोर्ट की टिप्पणी का स्वागत

तीन तलाक पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी का हिंदू संगठनों ने जोरदार स्वागत किया है.

Debobrat Ghose

तीन तलाक पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी का हिंदू संगठनों ने जोरदार स्वागत किया है. हाईकोर्ट ने तीन तलाक को मुस्लिम महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है.

मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय संयोजक गिरीश जुयाल ने कहा कि, 'कोर्ट की टिप्पणी का हम स्वागत करते हैं. हम ट्रिपल तलाक की परंपरा के बिल्कुल खिलाफ हैं. हम इस पर रोक लगाने में पीछे रह गए हैं. लेकिन अब इस पर पाबंदी लगनी चाहिए.'


कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि कोई भी पर्सनल लॉ संविधान के ऊपर नहीं.

आरएसएस से जुड़े मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने कहा कि तीन तलाक पर मोदी सरकार की राय एकदम साफ है. सरकार इस मामले पर अदालत के खिलाफ नहीं जाएगी, जैसा कि शाहबानो के मामले में राजीव गांधी सरकार ने किया था.

संघ और जानकार दोनों खुश

सौजन्य: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ

जुयाल ने दावा किया कहा कि जब खलीफ़ा हज़रत  उमर (583 इस्वी-644 ईस्वी) के सामने तीन तलाक का एक मामला आया. तो उन्होंने अपना फैसला महिला के हक में सुनाया था.

दिल्ली के थिंक टैंक ओपन सोर्स इंस्टीट्यूट के तुफ़ैल अहमद कहते हैं, 'इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपनी टिप्पणी से सख्त संदेश दिया है कि सातवीं सदी के इस्लामिक कानून में बदलाव की जरूरत है'.तुफ़ैल के अनुसार ये मामला तब तक खत्म नहीं होगा, जब तक नया कानून नहीं बन जाता. पहले सुप्रीम कोर्ट को 1937 के शरीयत कानून को ही रद्द करना होगा'.

तुफ़ैल कहते हैं, 'मौलानाओं को समझना होगा कि संविधान, नागरिकों को जो अधिकार देता है वो बहुत अहम हैं. तीन तलाक से संविधान का उल्लंघन होता है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और दूसरे मुस्लिम संगठनों जैसे ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिसे मुशावरत असल में असंवैधानिक हैं. क्योंकि ये संगठन संविधान से मिले बुनियादी अधिकारों के खिलाफ काम करते हैं'.

तुफैल अहमद ने हाल ही में समान नागरिक संहिता का एक ड्राफ्ट तैयार किया है. ताकि अहम मसलों पर सार्वजनिक बहस हो सके.

वो कहते हैं,

जब तक सरकार 1937 और 1939 के शरीयत कानून में बदलाव नहीं करती, नया कानून नहीं बनाती, तब तक मुस्लिम महिलाओं को इक्कीसवीं सदी के हिसाब से सम्मान से जीने और बराबरी का अधिकार हासिल नहीं होगा.

1937 और 1939 का शरीयत कानून है क्या?

मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट 1937: 'भारतीय मुसलमान इस्लामिक जानकारों के हिसाब से शादी और तलाक ले सकते हैं. किसी भी भारतीय मुसलमान को इसी कानून के हिसाब से तलाक देना होगा. वो तलाक के लिए कोर्ट नहीं जा सकता.

वो चिट्ठी, फोन, वीडियो या इंटरनेट से तलाक दे सकता है. इसके दो तरीके हैं. ट्रिपल तलाक के तहत मर्द को पहले तीन बार लगातार तलाक कहना होगा. इससे शादी खत्म हो जाएगी. दूसरा तरीका ये है कि हर महीने एक बार तलाक कहकर तीन महीने में तलाक की प्रक्रिया पूरी की जाए. इस दौरान पति-पत्नी में समझौता हो सकता है'.

Source: Getty Images

डिजॉल्यूशन ऑफ मुस्लिम मैरिजेस एक्ट, 1939: 'ये कानून मुस्लिम महिलाओं को अधिकार ने देने के लिए बनाया गया था. ताकि वो तलाक ले सकें या तलाक का विरोध कर सकें. इस कानून के तहत एक मुस्लिम महिला दो तरह से तलाक ले सकती हैं. पहला तो ये कि वो मौलवियों के पास जाकर शादी रद्द करा सकती हैं या फिर वो कोर्ट जाकर तलाक ले सकती हैं.'

विश्व हिंदू परिषद इस मामले पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के रुख का विरोध करती रही है. वीएचपी ने इस पर सरकार के रुख पर खुशी जताई है. वीएचपी को लगता है कि इस मामले पर कोर्ट का रुख भी सरकार जैसा होगा. इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट में भी मुहर लगेगी.

वोट बैंक की राजनीति

विश्व हिंदू परिषद के डॉक्टर सुरेंद्र जैन कहते हैं, 'मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड हमेशा ही तीन तलाक खत्म करने का विरोध करता है और संविधान को चुनौती देता है. बोर्ड ने महिलाओं को मौत की धमकी भी दी. कोई भी पर्सनल लॉ बोर्ड संविधान के ऊपर नहीं हो सकता. और वो पूरे मुस्लिम समुदाय की नुमाइंदगी भी नहीं करता.

एक संवैधानिक व्यवस्था और सभ्य समाज में ऐसी चीजें बर्दाश्त नहीं की जा सकतीं. मुस्लिम महिलाओं को मध्य युग के दौर से बाहर आने की जरूरत है. उन्हें भी बराबरी का हक चाहिए.'

मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की महिला शाखा ने भी इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी का स्वागत किया है. उसने इसे 5 हजार मुस्लिम महिलाओं की कोशिशों की जीत बताया है, जो तीन तलाक के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान चला रही हैं.

मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने कहा कि, 'ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मुस्लिम महिलाओं को बराबरी का हक देने में नाकाम रहा है. आखिर आजादी के छह दशक बाद भी तीन तलाक पर रोक क्यों नहीं लग सकी है. पाकिस्तान में भी ये परंपरा खत्म हो चुकी है, ये तो और शर्मनाक है. कुरान और हदीस में इसका जिक्र नहीं. मजलूम मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक देकर रातों रात बेघर कर दिया जाता है'.

मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की रेशमा हुसैन ने कहा, 'वोट बैंक की राजनीति के चलते ही पिछली सरकारें इस पर रोक नहीं लगा सकीं. क्योंकि वो मुसलमानों को वोट बैंक समझती हैं. वो धर्म और संविधान को अलग नहीं कर सकीं, जिससे मुस्लिम महिलाओं को बराबरी का हक मिल सके. ये हमारी उन पांच हजार मुस्लिम बहनों की जीत है, जो तीन तलाक के खिलाफ लड़ाई लड़ रही हैं. हमें भी उनके समर्थन में हस्ताक्षर अभियान चलाना चाहिए. हमें उम्मीद है कि उनके समर्थन में हम 10 लाख मुस्लिम महिलाओं के दस्तखत जुटा लेंगे'