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रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने के फैसले को मानवाधिकार हनन के चश्मे से मत देखिए

भारत सरकार ने तमाम आपत्तियों, दबावों और दलीलों को दरकिनार कर देशहित में बड़ा और कड़ा फैसला लिया है जिसे मानवाधिकार हनन के चश्मे से देखना राष्ट्रहित और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ी भूल साबित हो सकता है.

Kinshuk Praval

क्या रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार वापस भेजने की विरोध करने वाली दलीलों का ‘द एन्ड’ हो गया? दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने भारत में अवैध रूप से रह रहे 7 रोहिंग्याओं को वापस म्यांमार भेजने की प्रकिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि इस मामले को लेकर सभी बातें रिकॉर्ड पर हैं और प्रक्रिया को गलत नहीं ठहराया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया.

कोर्ट का फैसला उन लोगों के लिए बड़ा झटका है जो रोहिंग्याओं के प्रति अपनी सहानुभूति को अलग-अलग फोरम में दिखा चुके थे. चाहे वो एक्टिविस्ट हों या फिर सियासतदां. रोहिंग्याओं को लेकर देश की राजनीति का मिज़ाज हमेशा गर्म रहा है. रोहिग्याओं को वापस भेजने के फैसले पर कई सवाल कई दफे खड़े किए जाते रहे हैं. यहां तक कि रोहिंग्या मुसलमानों पर केंद्र के रुख को सत्ताधारी बीजेपी का एंटी मुस्लिम एजेंडा तक कहा गया है.


देश के 46वें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के तौर पर जब जस्टिस गोगोई ने शपथ ली तो देश के कई उदारवादी, सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी वर्ग की आंखों में चमक बढ़ी. इसकी बड़ी वजह मुख्य न्यायाधीश की उदारवादी छवि और पूर्व में लिए गए सख्त फैसले हैं. उत्तर-पूर्व से आए वो देश के पहले सीजेआई हैं. सीजेआई का पद संभालने के तुरंत बाद ही उनके सामने रोहिंग्या का मामले सामने आया. आनन-फानन में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी गई. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दखल देने से इनकार कर दिया.

कोर्ट का फैसला देश में रोहिंग्या के लिए आंसू बहाने वालों को चौंकाने से कम नहीं है. इस फैसले के दूरगामी नतीजे देखे जा सकते हैं. इससे देश में अवैध रूप से रह रहे 40 हजार रोहिंग्याओं को भारत से बाहर करने की सरकार की कोशिशों को बड़ा आधार मिल सकता है. हालांकि, फिलहाल सरकार ने 7 शरणार्थियों से साथ 'मिशन घर वापसी' की शुरुआत की है.

इस बार भी गुरुवार को इन रोहिंग्याओं के डिपोर्टेशन से ऐन पहले सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई. याचिका की पैरवी कर रहे वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि ये कोर्ट का कर्तव्य है कि वो राष्ट्रविहीन रोहिंग्या नागरिकों की रक्षा करें जिन्हें देश से निकाला जा रहा है और इस पर सुनवाई की तुरंत जरूरत है. लेकिन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि कोई मेंशनिंग नहीं है और इसके संबंध में हम मानदंड निर्धारित करेंगे. साथ ही कोर्ट ने प्रशांत भूषण को कहा कि उन्हें ये बात याद दिलाने की जरूरत नहीं है कि जजों की क्या जिम्मेदारियां हैं.

प्रशांत भूषण उन रोहिंग्या नागरिकों को लेकर कोर्ट पर दबाव बना रहे थे जिनके बारे में केंद्र सरकार ने बताया कि उन्हें साल 2012 में फॉरेनर्स एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया है. साथ ही सरकार ने बताया कि म्यांमार सरकार ने इन 7 रोहिंग्याओं की नागरिकता की पहचान कर ली है.

तमाम एजेंसियों की रिपोर्ट देश में चालीस हजार रोहिंग्या शरणार्थियों के होने का दावा करती हैं. ज्यादातर रोहिंग्या मुसलमान इस वक्त जम्मू कश्मीर, हैदराबाद, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली-एनसीआर में रहते हैं. जम्मू में सबसे ज्यादा 10 हजार के लगभग रोहिंग्या मुसलमानों की मौजूदगी मानी जाती है.

केंद्र सरकार अब 7 रोहिंग्याओं की घर वापसी कराकर ये संदेश दे रही है कि देश को अवैध शरणार्थियों से मुक्त कराने की दिशा में तमाम विरोधों के बावजूद आगे बढ़ रही है ताकि यहां के संसाधनों पर स्थाई नागरिकों का ही अधिकार हो. अवैध प्रवासियों की पहचान के लिए नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस का ड्राफ्ट भी उसी कड़ी का हिस्सा है जिसको लेकर राजनीति में इतनी हायतौबा देखी गई.

रोहिंग्या, अवैध प्रवासी और घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई का मानवाधिकार के नाम पर विरोध दरअसल उस सियासत का हिस्सा है ताकि अवैध शरणार्थियों के लिए ढाल बन कर उन्हें अपना वोटबैंक बनाया जा सके. पश्चिम बंगाल की ममता सरकार पर बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर कई आरोप लगते रहे हैं. यहां तक कि बीएसएफ के डीजी ने भी ममता बनर्जी पर संगीन आरोप लगाया था कि वो राज्य में रोहिंग्या मुसलमानों को बसाने का काम कर रही हैं. बड़ा सवाल उठता है कि देश की आंतरिक सुरक्षा की कीमत पर घुसपैठियों को राजनीतिक हित के लिए बसाने वालों के खिलाफ क्या कभी कोई कार्रवाई होगी?

आज अवैध इमीग्रेशन दुनिया की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है और ये दुनियाभर में सिरदर्द बन चुकी है.सवाल उठता है कि राष्ट्र पहले है या फिर मानवाधिकारों की दुहाई देती वो राजनीति जो वोटबैंक के लिए सहानुभूति का दामन फैलाए लेती है?

राष्ट्रहित में जनआकंक्षा विरोधी फैसले लिए जा सकते हैं लेकिन राजनीतिक स्वार्थ और महत्वाकांक्षा के लिए राष्ट्र विरोधी फैसले नहीं लिए जा सकते हैं. तमाम खुफिया इनपुट के बाद जब देश में मौजूद रोहिंग्याओं को लेकर सिक्युरिटी अलर्ट मिला तभी इनकी पहचान को लेकर सरकार ने तेजी और सख्ती दिखाई है. अगर आज सत्ताधारी पार्टी ये कह रही है कि घुसपैठिए दीमक की तरह देश के सीमित संसाधनों को खत्म करने का काम  कर रहे हैं तो इस पर शक नहीं किया जाना चाहिए.

बीते दिनों केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने देश में रह रहे सभी रोहिंग्याओं को अवैध आव्रजक बताते हुए कहा था कि ये पूर्वोत्तर राज्यों से लेकर केरल समेत दक्षिण राज्यों तक पहुंच चुके हैं. उन्होंने कहा कि रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर राज्य सरकारें उनकी पहचान और बायोमैट्रिक डाटा जुटा रही हैं ताकि उन्हें वापस उनके देश भेजा जा सके.

बीएसफ के डीजी के.के. शर्मा ने रोहिंग्याओं के मामले में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर संगीन आरोप लगाया. उन्होंने  कहा कि पश्चिम बंगाल की सरकार रोहिंग्याओं को कैंपों में बसाने का काम कर रही है.

बहरहाल, पहली दफे आधिकारिक तौर पर भारत ने 7 रोहिंग्या वापस लौटा कर एक निर्णायक शुरुआत की है. भारत सरकार ने तमाम आपत्तियों, दबावों और दलीलों को दरकिनार कर देशहित में बड़ा और कड़ा फैसला लिया है जिसे मानवाधिकार हनन के चश्मे से देखना राष्ट्रहित और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ी भूल साबित हो सकता है.