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सीबीआई: आखिर देश की टॉप जांच एजेंसी का रिकॉर्ड कब सुधरेगा?

नेताओं से जुड़े मामलों में तो सीबीआई दशकों तक बिलकुल घिसट-घिसट कर चलती है

Prabhakar Thakur

कहने को तो देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी जिसकी तुलना अमेरिका की एफबीआई से होती है पर कई ऐसे मामले हैं जिनमें सीबीआई या तो गुनाहगार का पता कर पाने में विफल रही है या उसकी जांच पर गंभीर सवाल उठे हैं.

सबसे ताजा मामला है नोएडा के आरुषि तलवार के मर्डर का जहां इस 14 साल की लड़की की गला काट कर हत्या कर दी गई. मई, 2008 में उसकी लाश उसके घर से मिला, जिसके अगले दिन नौकर हेमराज का भी शव छत पर पाया गया. इस मामले को करीब दो हफ्ते बाद सीबीआई ने अपने हाथ में ले लिया.


इसके बाद दिसंबर, 2010 में सीबीआई ने अपनी क्लोज़र रिपोर्ट में बताया कि आरुषि के पिता राजेश तलवार ही हत्यारे हैं पर उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं. सीबीआई अदालत ने राजेश और उनकी पत्नी नुपुर तलवार को उम्रकैद की सजा सुना दी पर इसके खिलाफ अपील पर आखिरकार इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दोनों को बरी कर दिया.

9 सालों तक दोनों पर क्या गुजरी वो उन दोनों के अलावा और कोई नहीं समझ सकता. इन सालों में उन्हें मीडिया में हत्यारा बताया गया और लोगों ने उनके और उनकी बेटी के बारे में बेहद घिनौनी बातें की. अगर सीबीआई ने पहले ही जांच में असली कातिल को खोज निकाला होता तो तलवार दंपति को काफी पहले जेल से आजादी मिल गई होती और बदनामी भी न होती. उन्होंने अपनी बेटी खोई थी, मौत भी दर्दनाक ढंग से गला कट कर. ऊपर से जेल की सजा. दोनों को बेहद बुरे दिन देखने पड़े.

हद तो यह कि अब मामला अधर में लटक चुका है. आखिर आरुषि को किसने मारा यह किसी को पता नहीं. इस हत्याकांड की कहानी भी जेसिका लाल हत्याकांड की तरह हो गई-नो वन किल्ड आरुषि.

अन्य मामलों में भी उठे कई सवाल

रुचिका गिरहोत्रा केस भी ऐसा ही एक मामला है जहां सीबीआई की जांच सवालों के घेरे में आ गई. इस मामले में हरियाणा के पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौर पर आरोप था कि उन्होंने रुचिका के साथ छेड़खानी की थी. सीबीआई ने नवंबर, 2010 में अदालत में क्लोजर रिपोर्ट में लिखा कि रुचिका के आरोपों को साबित करने के लिए कोई सबूत ही नहीं हैं. सीबीआई ने पॉइंट टू पॉइंट रुचिका के पिता और भाई के आरोपों को ख़ारिज कर दिया. हालांकि बाद में राठौर को 6 महीनों की सजा हुई.

इसके अलावा 2005-06 में हुए निठारी कांड को कौन भूल सकता है. इस मामले में भी सीबीआई का लचर रुख सामने आया. सीबीआई ने इस कांड से जुड़े बहुत सारे मामलों में मोनिंदर सिंह पंढेर को यह कहते हुए छोड़ दिया कि हत्याओं के वक्त वह मौजूद नहीं था और सिर्फ उसके नौकर सुरिंदर कोली ने हत्याएं कीं. हालांकि जुलाई, 2017 में दोनों मालिक-नौकर को फांसी की सजा सुनाई गई.

केसों की  फेहरिस्त बेहद लंबी है. अब बोफोर्स केस को ही लें. 1986 के इस घूसकांड में भारत सरकार और स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स के बीच 410 तोपों की डील हुई थी. मामले में भारत के नेताओं को घूस दिए जाने का आरोप लगा. बिचौलिए क्वात्रोची की मौत भी हो गई पर वो भारत ना लाया जा सका. 2010 में सीबीआई ने दिल्ली की अदालत में आवेदन देकर कह दिया था कि क्वात्रोची के खिलाफ केस को बंद कर दिया जाए क्योंकि उसे भारत लाने की सभी कोशिशें नाकाम रही हैं.

नेताओं से जुड़े मामलों में दशकों से जांच जारी

33 साल पुराने 1984 के सिख दंगा मामले में कांग्रेस नेता जगदीश टाईटलर को क्लीन चिट दे दिया गया था. सीबीआई का कहना था कि टाईटलर के खिलाफ मामला आगे बढ़ाने को लेकर कोई सबूत ही नहीं है. उसके मुताबिक दो गवाहों जसबीर सिंह और सुरिंदर सिंह भरोसे के लायक नहीं हैं और उनके बयान झूठे हैं.

2002 के बाबरी मस्जिद विध्वंस मामला भी अब तक कोर्ट के ही चक्कर काट रहा है. सीबीआई ने अलग-अलग सरकारों के दौरान घिसट-घिसट कर जांच की है और जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एलके आडवाणी और अन्य बीजेपी नेताओं के खिलाफ षड्यंत्र का मामला दोबारा चलने के आदेश दिए हैं पर फिलहाल किसी नतीजे की उम्मीद करना बेमानी है.