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लाल किला हमला: कावा की गिरफ्तारी के बाद शूटआउट के कुछ और राज खुलेंगे

देश और दुनिया को हिला देने वाले लाल किला आतंकी हमले से जुड़े अदालती दस्तावेज और इससे संबंधित अन्य रिकॉर्ड्स अचानक 17 साल बाद फिर तलब किए गए हैं

Sanjeev Kumar Singh Chauhan

लाल किले पर 22 दिसंबर 2000 को हुए आतंकवादी हमले की फाइल अब फिर खुल गई है. देश और दुनिया को हिला देने वाले इस हमले से जुड़े अदालती दस्तावेज और इससे संबंधित अन्य रिकॉर्ड्स अचानक 17 साल बाद फिर तलब किए गए हैं. वजह दिल्ली एयरपोर्ट से 10 जनवरी 2018 को लश्कर-ए-तैयबा के फरार चल रहे फाइनेंसर बिलाल अहमद कावा की गिरफ्तारी.

बिलाल की गिरफ्तारी के तुरंत बाद ही दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के डीसीपी (पुलिस उपायुक्त) प्रमोद कुमार सिंह कुशवाह ने लाल किला शूटआउट के जांच अधिकारी रह चुके इंस्पेक्टर सुरेंद्र संड को तुरंत तलब किया है. सुरेंद्र संड जुलाई 2010 में दिल्ली पुलिस से रिटायर हो चुके हैं.


मामले में चूंकि जांच अधिकारी इंस्पेक्टर संड थे. संड की जांच के आधार पर ही कोर्ट ने लाल किला शूट आउट के मुख्य आरोपी और लश्कर-ए-तैयबा के एरिया कमांडर मोहम्मद अशफाक उर्फ आरिफ को सजा-ए-मौत सुनाई थी. उसकी फांसी की सजा की फाइल सुप्रीम कोर्ट में अंतिम फैसले के लिए पैंडिंग पड़ी है. आरिफ हमले के बाद से ही तिहाड़ जेल की काल-कोठरी में कैद है.

लश्कर की मदद में लगा था कावा का कुनबा

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के अधिकारियों के मुताबिक लाल किले पर हमले की जांच के शुरुआती दौर में ही बिलाल अहमद कावा का नाम सामने आया था. हमले के कुछ समय बाद ही, जम्मू-कश्मीर पुलिस ने बिलाल कावा के बहनोई फारुख अहमद कासिद और उसके पिता नजीर अहमद कासिद को श्रीनगर से गिरफ्तार किया था. गिरफ्तार के बाद दोनों को दिल्ली की कोर्ट में कैद करा दिया गया.

लाल किला शूट आउट मामले की जांच फाइलों में दर्ज जानकारी के मुताबिक उस समय पुलिस ने फारुख अहमद कासिद के साले बिलाल अहमद कावा (जिसे 17 साल बाद गुजरात पुलिस के सहयोग से दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल ने 10 जनवरी 2018 को दिल्ली हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया) की भी तलाश थी. तमाम प्रयासों के बाद भी लेकिन कावा गिरफ्तार नहीं हो सका था.

बिलाल अहमद कावा

कोर्ट ने भगोड़ा, पुलिस ने इनाम घोषित किया

बहनोई फारुख अहमद कासिद और उसके पिता नजीर अहमद कासिद ने गिरफ्तारी के बाद पुलिस पूछताछ में कबूला था कि, कावा हवाला के जरिए आए पैसे को आतंकवादियों तक पहुंचाता है. इस जानकारी के आधार पर कावा का श्रीनगर की बैंक में मौजूद खातों की जांच की गई. पता चला कि, उसने 10 लाख रुपए का चैक अपने खाते से नजीर और फारुख को दिया था.

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गहराई से हुई जांच पड़ताल के बाद ही यह साबित हो पाया कि, लाल किला शूट आउट के मास्टरमाइंड और तिहाड़ में फांसी की सजा के इंतजार में कैद मोहम्मद अशफाक उर्फ मोहम्मद आरिफ ने कावा के श्रीनगर में मौजूद बैंक खाते में भी लाखों रुपए जमा कराए थे. जांच में ही यह भी साबित हुआ कि, कावा ने श्रीनगर की बैंक में बहनोई फारुख और उसके पिता नजीर (कावा की बहन का ससुर) के भी खाते खुलवाये थे.

यह तमाम सनसनीखेज खुलासों के बाद भी मगर पुलिस कावा तक नहीं पहुंच सकी. इससे आजिज दिल्ली पुलिस ने 4 मई 2001 को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट के मेट्रो पॉलिटिन मजिस्ट्रेट ए.के सरपाल की कोर्ट से कावा को भगोड़ा अपराधी घोषित करा दिया. इसके ठीक एक महीने बाद ही दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने अपने आदेश संख्या 17972-971/सीएंडटी/एसी-III दिनांक 4 जून 2001 के जरिए कावा की गिरफ्तारी पर 25 हजार का इनाम घोषित कर दिया.

इसलिए कावा को दबोचने में लगे 17 साल

दिल्ली पुलिस सूत्रों के मुताबिक बिलाल कावा शातिर दिमाग है. शिक्षित भी है. बैंक के कार्यकलापों की कावा को बेहतर जानकारी है. लश्कर-ए-तैयबा ने काबिलियतों के मद्देनजर कश्मीर घाटी में संगठन का फाइनेंस कंट्रोलर बनाकर रखा था. कावा का काम था कि हवाला के जरिए देश-विदेश से जो धनराशी मिले उसे संगठन (लश्कर) के गुर्गों तक पहुंचाना.

किसी भी बैंक में खाता खुलवाने में भी कावा को महारत हासिल थी. कावा जानता था कि, कौन से बैंक के कामकाज में कहां और क्या कमियां हैं? इन्हीं का फायदा लेकर उसने श्रीनगर में अपना और अपनी बहन के पति और ससुर का भी उसने एक प्राइवेट बैंक में खाता खुलवाया. खाता खुलते ही उसमें हवाला की रकम का लेन-देन शुरु कर दिया.

प्रतीकात्मक तस्वीर

बहनोई और उसका पिता जेल से बाहर.. कावा जाएगा जेल

भारत में आतंकवादी संगठन की मदद के आरोपी और बुधवार (10 जनवरी 2018) दिल्ली में गिरफ्तार बिलाल अहमद कावा ने लाल शूट आउट से पहले अपने जिस तेज दिमाग का इस्तेमाल किया था, उसी में वो गच्चा खा गया. अपने तेज दिमाग के चलते भले ही उसने लश्कर-ए-तैयबा जैसे खतरनाक आतंकवादी संगठन की मदद कर दी.

आतंकी गतिविधियों में लिप्तता के आरोपी बहनोई और उसके पिता के जरिए हवाला की रकम को इधर-उधर करने में उनकी मदद की. मगर वही तेज दिमाग कावा खुद को कानून की गिरफ्त से महफूज नहीं रख पाया. यह दूसरी बात है कि, कावा तक कानून के हाथ पहुंचने में 17 साल का लंबा वक्त लग गया.

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दिल्ली पुलिस स्पेशल पुलिस सूत्रों के मुताबिक पुलिस जांच और आधे-अधूरे दस्तावेजों के चलते दिल्ली हाईकोर्ट ने तिहाड़ में कई साल तक बंद रहे कावा के बहनोई और उसके पिता को बरी कर दिया. वे दोनो अब जेल से बाहर हैं. हां, मगर कावा अब जेल के अंदर रहेगा.

कावा की तलाश में कई साल तक दिल्ली और कश्मीर का खाक छानते रहने वाले एक इंस्पेक्टर के मुताबिक, लोगों की नजरों ने बचने के लिए कावा ने दिल्ली कश्मीर के बीच चमड़े का बड़ा कारोबार कर रखा था. अकूत दौलत होने के बाद भी कावा ने कभी दिल्ली में स्थाई अड्डा (मकान, कोठी) नहीं बनाया. वो भारी-भरकम किराए पर दक्षिणी-दिल्ली के पॉश इलाकों की कोठियों में ही रहता रहा. यही वजह थी कि, लाल किला शूट आउट के बाद जब पुलिस ने सन् 2000 और 2001 में कावा के अड्डों पर ताबड़तोड़ छापामारी की, तो वह कहीं किसी भी अड्डे पर नहीं मिला.

दिल्ली पुलिस ने तलब किया लाल किला शूट आउट जांच अधिकारी

सूत्रों के मुताबिक बिलाल अहमद कावा की दिल्ली में गिरफ्तारी के तुरंत बाद ही दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के डीसीपी प्रमोद कुमार सिंह कुशावाह ने महकमे के रिटायर्ड पुलिस इंस्पेक्टर और लाल किला शूट आउट की जांच अधिकारी सुरेंद्र संड को तलब कर लिया. लाल किला जांच के अधिकारी होने के कारण सुरेंद्र संड को पूरा मामला गहराई से पता है.

कावा के खिलाफ जो चार्जशीट कोर्ट में भेजी गई वो भी सुरेंद्र संड ने ही भेजी थी. ऐसे में कावा से पूछताछ के दौरान इस पूर्व जांच अधिकारी की मौजूदगी दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल ने जरुरी समझी और उन्हें तलब कर लिया है. हालांकि की पूर्व जांच अधिकारी को बुलाए जाने के मुद्दे पर सुरेंद्र संड और स्पेशल सेल का कोई भी अधिकारी बोलने को राजी नहीं है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)