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गोमाता की नजर से क्या है भारत का हाल!

पिछले साल पीएम मोदी ने कहा था कि गोहत्या से ज्यादा प्लास्टिक खाने की वजह से गायों की मौत होती है

Pallavi Rebbapragada

सर्वकामदुधे देवि सर्वतीर्थीभिषेचिनि ll

पावने सुरभि श्रेष्ठे देवि तुभ्यं नमोस्तुते ll


मंत्रों की और उनको पवित्र बनाने वाले बड़े-बड़े शब्दों की समझ मुझे नहीं है. कोई मुझे  सिर्फ चावल का दलिया खिलाकर पितृ और पूर्वजन्म के दोषों से मुक्ति पाना चाहता है, तो कोई मेरा मूत्र पी कर अपनी बीमारियों को खत्म करना चाहता है. कुछ ऐसे भी हैं जो मुझे छूकर अपने अपने काम पर निकल जाते हैं. दर्जा मां का है लेकिन आज भी कूड़े के ढेर से प्लास्टिक खाती मैं आपको भारत के किसी भी शहर में दिख जाउंगी.  

आयुर्वेद की 5000 साल पुरानी सुश्रुत संहिता में लिखा है कि गोमूत्र पचाने में आसान है. इससे दिमाग तेज होता है और यह खांसी-जुकाम के साथ-साथ एक्जिमा और लुकोडर्मा जैसी बीमारियों का भी इलाज करता है. पर सोचने वाली बात यह है कि उस दौर की गायों का पालन-पोषण आजकल की गायों से काफी अलग था.

ये है गायों की मौत की मुख्य वजह 

पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टाउनहॉल मैं यह कहा था कि गोरक्षक का लिबास पहने आजकल काफी ढोंगी देश में घूम रहे हैं, साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि गोहत्या से ज्यादा प्लास्टिक खाने की वजह से गायों की मौत होती है.

पर्यावरण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में एक दिन में 62 मिलियन टन कचरा जमा होता है और उनका अनुमान है कि यदि शहरों के हाल ऐसे ही रहे तो 2030 तक यह बढ़कर 165 मिलियन टन हो जाएगा. वर्ल्ड बैंक की रिसर्च यह कहती है कि पूरे विश्व में कचरे के उत्पादन में बढ़ोतरी हो रही है और 2025 तक लगभग 2.2 बिलियन टन कचरा पैदा होगा.

2016 में लागू किए गए सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स ने कचरे को अलग-अलग करने के लिए नियम बनाए. इसके तहत जैविक कचरे जैसे सब्जियों और फलों के छिलके अब प्लास्टिक और मेटल से अलग कहीं दूर फेंके जाएंगे.

 मुझे रिश्ता जोड़कर कोई ब्राह्मण, कोई दलित और कोई मुसलमान बन जाता है. कोई दूध से कमाता है, कोई मीट से. किसी को मुझे जीवित रखने में फायदा होता होगा और किसी को मुझे मारकर खाने में भी भला क्या नुकसान होता होगा. क्या एहसास होगा उस बेजुबान जानवर में जो इंसान को इंसान से ही लड़वा देता है.

भीड़ का कानून 

2015 में महाराष्ट्र सरकार ने बीफ-बैन संबंधी कानून बनाया. इसके तहत गोहत्या पर पांच साल की कैद और 10,000 रुपए का जुर्माने का प्रावधान किया गया. कुछ ही समय बाद हरियाणा में भी गोमांस बेचने पर 50,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान हो गया. इसके बाद नागौर, राजस्थान में अब्दुल गफ्फार कुरैशी और दादरी, उत्तर प्रदेश में मोहम्मद अखलाक को गोहत्या के दोषी करार करके मारे जाने की खबरें सुर्खियों में आईं.

अपने आप को गोरक्षक कहने वालों ने पिछले दो साल में कई प्रदेशों में दंगे करवाए. इन जगहों में हिमाचल प्रदेश का सिरमौर, झारखण्ड का लातेहार, राजस्थान का प्रतापगढ़, हरियाणा का प्रतापगढ़, कर्नाटक का कोप्पा, मध्य प्रदेश का मंदसौर और गुजरात का सोमनाथ जिला शामिल है. 2012 में स्थापित संस्था भारतीय गोरक्षा दल के 10,000 वालंटियर हैं लेकिन उनका कहना है कि लड़ाई और मारपीट के हादसे गाय को लेकर जो आम आदमी की भावनाएं हैं उनकी वजह से हो रहे हैं.

दलितों के जाति आधारित व्यवसाय के तहत बूचड़खाने, चमड़े की फैक्टरियों में काम करना शामिल है. यहां तक गाय बैलों के शव को भी वही उठाते आएं हैं और इसी वजह से इन लोगों ने पौष्टिक आहार की खोज में इन शवों के मांसों को खाना भी शुरू किया. नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के अनुसार 2011-12 में 4% ग्रामीण घरों और 5% शहरी घरों में गाय का मांस खाया जा रहा था.

हाल ही में जब भारत सरकार ने पशु बाजार में मवेशियों की खरीद-बिक्री पर बैन लगाया है. नए नियमों से देश के एक लाख करोड़ के मीट उद्योग पर प्रभाव पड़ेगा. पर्यावरण मंत्रालय ने पशु अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत पशु व्यापार पर सख्ती कस दी है.

पशु बाजार समिति को इस बात का ध्यान रखना होगा कि मवेशियों को कोई काटने के लिए तो नहीं खरीद रहा है और इन्हें राज्य के बाहर के किसी व्यक्ति को नहीं बेच रहा है. ऐसे नए नियमों को विपक्ष ने केंद्र सरकार द्वारा दलितों और मुसलमानों पर हमला बताया है.

यूं होती है गोमाता की सेवा

सब गायें बराबर होती हैं पर कुछ गायें दूसरी गायों से ज्यादा खुशनसीब होती हैं. मैं दूर से गौशाला की घंटियों को सुनती हूं, चारे की महक और गुड़ की खुशबू से सुबह और शाम का अंदाजा लगाती हूं. कुछ गाड़ियां मुझे हॉर्न मार कर एक तरफ कर देती हैं, वहीं कुछ गाड़ियों में से विदेशी उतरकर मेरी फोटो खींचते हैं. मेरी लाचारी किसी के लिए नज़ारा है तो किसी के लिए नजर की कमजोरी.

गौशाला और डेयरी में अंतर होता है. गौशाला केवल ऐसे गोधन के लिए नहीं होती जिससे दूध की प्राप्ति होती है, गौशाला और गौसदन बूढ़ी, बीमार और अपाहिज गायों का भी घर होता है. आल इंडिया गौशाला फेडरेशन यह कहती है कि आज भारत में 3,000 गौशालाएं हैं जो सार्वजनिक फंड पर चलती हैं. 2012 की पशु जनगणना के अनुसार भारत में कुल 52,87,767 आवारा गाय-बैल थे.

‘मथुरा-वृंदावन हासानंद गोचर भूमि ट्रस्ट समिति’ नाम की एक गौशाला वृंदावन में 1935 से चल रही है. यहां 500 से अधिक गाएं हैं. यहां के लोग यह कहते हैं कि सरकार को उन्हें गौशाला चलाने के लिए अनुदान देना चाहिए और अनुदान प्राप्ति के लिए नियम आसान बनाए जाने चाहिए. राजकोट के श्रीजी गौशाला में गोसेवक यह कहते हैं कि केवल सूखे के दौरान उन्हें सरकार से 25 रुपए प्रति पशु मिलते हैं.

दिल्ली के भारतीय गोरक्षा दल को चलाने वाले यह कहते हैं कि एक सरकारी डाक्टर उनके पशुओं की जांच करने जरूर आता है पर उसे सरकार नहीं भेजती. यहां काम दान पर चलता है और ये मुनाफे के लिए अतिरिक्त दूध बाजार में नहीं बेचते, बल्कि स्वयंसेवकों में बांट देते हैं. तेलंगाना के ‘सत्यम् शिवम् सुंदरम्’ गौशाला चलाने में प्रतिदिन एक लाख बीस हजार रुपए खर्च होता है और इन्हें भी सरकार से कोई सहयोग नहीं मिलता.

पाप और पुण्य के बीच जो अंतहीन सड़क है, वहां मैं कब से नि:शब्द खड़ी हूं.