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बजट 2017: जनता को खुश करने वाला बजट लाएगी सरकार

नोटबंदी का दर्द कम करने के लिए सरकार हर मुमकिन कोशिश करने को तैयार

Pratima Sharma

नोटबंदी के फैसले से सरकार की जो गाड़ी बेपटरी हुई है उसे पटरी पर लाने की बजट में हर मुमकिन कोशिश की जाएगी.

सरकार की योजना बजट 2018 में खर्च बढ़ाने की है. इसके लिए सरकारी घाटे  की भी अनदेखी हो सकती है.


नोटबंदी के फायदों पर जोर 

फाइनेंस मिनिस्ट्री के अधिकारी ऐसे तमाम विकल्पों पर विचार कर रहे हैं, ताकि वह साबित कर सकें कि नोटबंदी से आम लोगों को फायदा हुआ है.

सरकार स्वास्थ्य, शिक्षा, पीने के पानी और सफाई जैसी बुनियादी चीजों पर ज्यादा खर्च करेगी.

पिछले हफ्ते भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने अपने सांसदों से कहा था कि योजनागत खर्चों के साथ इंक्रीमेंटल बजट पेश करने का कोई फायदा नहीं है. इंक्रीमेंटल बजट में योजनागत खर्चों

मीटिंग की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने कहा, 'ब्लैकमनी के खिलाफ हमारी कोशिशों की बदौलत हम अगले दो साल में 15 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच जाएंगे.'

सरकार का गणित ऐसे चलेगा

नोटबंदी के बाद बैंकों के पास डिपॉजिट काफी ज्यादा है लेकिन, वे बॉन्ड में निवेश नहीं कर सकते हैं.

8 नवंबर को नोटबंदी का फैसला लेने के बाद बेंचमार्क सरकारी बॉन्ड के यील्ड में कमी आई है.

दरअसल, नोटबंदी के बाद बैंक बॉन्ड खरीदने के लिए दौड़ पड़े थे, जिससे यील्ड घट गई थी. बॉन्ड की यील्ड और प्राइस में उलटा संबंध है. प्राइस बढ़ने पर यील्ड घटती है.

सरकार की कर्ज लेने की क्षमता बढ़ी 

फाइनेंशियल ईयर 2017-2018 में सरकार 2016-2017 के मुकाबले बाजार से ज्यादा कर्ज जुटा सकती है.

इसके लिए सरकार को निजी निवेश पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं होगी. उदाहरण के तौर पर नवंबर में डिपॉजिट बढ़ने के बाद रिजर्व बैंक को मार्केट स्टेबलाइजेशन स्कीम के तहत स्पेशल बॉन्ड का ऐलान करना पड़ा था. यह पैसा आरबीआई के पास पड़ा रहेगा.

जनता का दिल जीतने की तैयारी

अगले फाइनेंशियल ईयर में फाइनेंस मिनिस्ट्री दिल खोलकर खर्च करने की तैयारी में है. सरकार बड़े पैमाने पर कर्ज जुटाएगी और अपनी योजनाओं पर खर्च करेगी.

केंद्र की इस कोशिश का मकसद आम आदमी का दिल जीतना है. हालांकि बाजार से कर्ज उठाने पर सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ेगा लेकिन सरकार इस बात की अनदेखी कर रही है.

इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि बैंकों के पास डिपॉजिट बढ़ने से इंटरेस्ट रेट घटेगा, जिसे सरकार काफी हद तक मैनेज कर सकती है.

नोटबंदी का असर

नोटबंदी के असर पर एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स की क्रेडिट एनालिस्ट गीता चुग ने कहा, 'शॉर्ट टर्म में बैंकिंग सेक्टर पर नकारात्मक असर पड़ेगा. इससे एसेट क्वॉलिटी और प्रॉफिट घटेगा, जिसका मार्जिन पर दबाव बढ़ सकता है.'

योजनागत और गैर योजनागत खर्च का फर्क खत्म

सरकार के पास दूसरा विकल्प फिर से वर्गीकरण करने का है. बजट 2017-18 में फाइनेंस मिनिस्ट्री ने योजनागत और गैर योजनागत खर्च की कैटेगरी का फर्क खत्म कर दिया.

योजनागत खर्च की कैटेगरी खत्म होने के बाद मंत्रालय के अधिकारी फिलहाल गैर योजनागत खर्च को दुरुस्त करने की कोशिश में लगे हैं.

सरकार का पास तीसरा विकल्प भी है. केंद्र सरकारी कंपनियों के कुछ आंतरिक और अतिरिक्त बजट रिसोर्स आईईबीआर को एक साथ करने की योजना बना रही है.

इसकी वजह पूरी तरह साफ है. नोटबंदी के बाद सरकार की हर तरफ छीछालेदर हो रही है. ऐसे में सरकार हर मुमकिन कोशिश करेगी कि जनता को बजट से खुश किया जा सके.