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पढ़िए दीना वाडिया की 'जिन्ना हाउस' के लिए कानूनी लड़ाई की कहानी

जिन्ना हाउस बंगले के बारे में पूछे जाने पर एक अखबार को उन्होंने कहा था, ‘आप इसे जिन्ना हाउस क्यों पुकारते हैं ? वह नाम इसे अंग्रेजों ने दिया. इसका मूल नाम साउथ कोर्ट है

Bhasha

पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा मालाबार हिल पर समुद्र के सामने बनाया गया बंगला उनकी बेटी दीना वाडिया और भारत सरकार के बीच लंबी लड़ाई के केंद्र में रहा.

वाडिया का 98 वर्ष की उम्र में कल न्यूयॉर्क में निधन हो गया.


अपने बचपन के घर पर वापस कब्जा पाने संबंधी उनकी याचिका सुनवाई के लिए बंबई हाई कोर्ट की बेंच के सामने अंतिम सुनवाई के लिए अभी भी लंबित है.

मूल रूप से साउथ कोर्ट के तौर पर पहचाना जाने वाला आलीशान ‘जिन्ना हाउस’ बंटवारे के पहले मुस्लिम लीग और महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और जिन्ना के बीच हुई बैठकों का गवाह है.

जिन्ना की पारसी पत्नी रत्तनबाई पेटिट से हुई बेटी वाडिया का जन्म अगस्त, 1919 में लंदन में हुआ. उन्होंने यूरोपीय शैली की वास्तुकला में डिजाइन वाले आलीशान हाउस को साउथ कोर्ट कहने पर जोर दिया.

मुशर्रफ ने की थी मांग: बने दूतावास

वर्ष 2007 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने बंगले को पाकिस्तान की संपत्ति के तौर पर वाणिज्य दूतावास में बदलने की इच्छा जताई की थी.

उसी साल (अगस्त 2007 में) वाडिया (तब 88 साल की) ने बंबई हाई कोर्ट का रुख करते हुए एक याचिका दायर कर दावा किया कि बंगले का अधिकार उनके हवाले किया जाए क्योंकि जिन्ना की वह एकमात्र वारिस हैं.

वाडिया ने मुंबई में कई साल गुजारे लेकिन पिछले कुछ दशकों से अमेरिका में रह रही थीं. अपनी याचिका में उन्होंने कहा कि वह बाकी बरस मुंबई में घर में गुजारना चाहती हैं जहां पर उनके बचपन के दिन गुजरे.

वाडिया ने याचिका में दावा किया था कि बंगले को ‘विस्थापितों की संपत्ति’ के तहत नहीं रखा जा सकता क्योंकि उनके पिता ने निधन के पहले कोई वसीयतनामा नहीं छोड़ा था.

आखिरी बार इस साल 28 जुलाई को न्यायमूर्ति एस वी गंगापुरवाला और ए एम बदर की बेंच के सामने याचिका पर सुनवाई हुई थी. उस समय सुनवाई सात सितंबर के लिए निर्धारित की गई थी. उसके बाद से याचिका पर सुनवाई नहीं हुई है.

उनकी याचिका दाखिल होने के ठीक बाद हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को जवाब में अपना हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था.

अक्तूबर 2007 में सरकार ने अपना हलफनामा दाखिल कर कहा कि जिन्ना हाउस पर सरकार का हक है और केवल जिन्ना की बहन फातिमा या उनका कानूनी उत्तराधिकारी ही संपत्ति पर अधिकार जता सकता है.

हालांकि, वाडिया ने दावा किया कि वह जिन्ना की इकलौती वारिस थी और इसलिए संपत्ति का हक उनको सौंपा जाना चाहिए.

वाडिया के मुताबिक, (तत्कालीन) बंबई राज्य ने संपत्ति को अपने अधिकार में ले लिया क्योंकि फातिमा जिन्ना के वसीयतनामे की न्यासी थीं और 1949 में (आजादी के बाद पाकिस्तान जाने वाले ) विस्थापित घोषित किया गया.

वाडिया ने अपनी याचिका में दावा किया कि उनके पिता के वसीयतनामे को बंबई हाईकोर्ट ने प्रमाणित नहीं किया और इस कारण से यह कानून के दायरे में नहीं आता. इसलिए, फातिमा कानूनी मालिक नहीं हो सकती और हाउस को उनके (जिन्ना) कानूनी वारिस के हवाले किया जाना चाहिए.

साथ ही, अपनी याचिका में उन्होंने दावा किया कि वह (वाडिया) हिंदू कानून (खोजा समुदाय पर लागू-आजादी के पहले जिस समुदाय से जिन्ना आते थे) या शिया मुस्लिम कानून, दोनों के तहत जिन्ना की संपत्ति की इकलौती कानूनी वारिस हैं. अपने जवाब में केंद्र सरकार ने दावा किया था कि उनकी याचिका विचार योग्य नहीं है और इससे देरी हो रही है.

विदेश मंत्रालय में उप सचिव जी बालासुब्रमण्यन ने दाखिल जवाब में कहा था कि भारत सरकार ने बंबई विस्थापित संपत्ति कानून के तहत 27 जून, 1949 को एक अधिसूचना जारी की थी जिसे जिन्ना हाउस का कब्जा संरक्षक के साथ निहित है.

विस्थापित व्यक्ति ( मुआवजा और पुनर्वास) कानून के तहत एक और अधिसूचना 10 जून 1955 को जारी की गई जिससे हक, कब्जा और हित भारत सरकार में निहित कर दिया गया.

1936 में 2 लाख रुपए में बन कर तैयार हुआ

सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया कि जिन्ना ने 30 मई, 1939 को वसीयत में जिन्ना हाउस अपनी अविवाहित बहन फातिमा को दिया. बंटवारे के समय फातिमा पाकिस्तान चली गई और विस्थापित घोषित की गईं और बंबई विस्थापित संपत्ति कानून के तहत भारत सरकार ने इसे अधिकार में लिया.

अगस्त 2010 में हाई कोर्ट ने मामले में यथास्थिति बहाल करने का आदेश दिया लेकिन केंद्र को बिना किसी संरचनात्मक बदलाव के बंगले में मरम्मत का काम कराने की अनुमति दे दी.

दो लाख रुपए की लागत से 1936 में अपने पिता द्वारा बनाए गए बंगले को वाडिया साउथ कोर्ट कहना चाहती थीं.

वर्ष 2008 में मुंबई के दौरे के दौरान दक्षिण मुंबई में जिन्ना हाउस बंगले के बारे में पूछे जाने पर एक अखबार को इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, ‘आप इसे जिन्ना हाउस क्यों पुकारते हैं ? वह नाम इसे अंग्रेजों ने दिया. इसका मूल नाम साउथ कोर्ट है. आप इसे इसके मूल नाम से क्यों नहीं पुकारते?’ वर्ष 2004 में वह नुस्ली और उनके दो बेटों के साथ कराची में जिन्ना की मजार पर गयी थीं. तब आगंतुकों की पुस्तिका में उन्होंने लिखा था, ‘पाकिस्तान का उनका सपना सच हो.'