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रेप विक्टिम की मेडिकल जांच में ताक पर रख दिए जाते हैं नियम: रिपोर्ट

अध्ययन में जिन मामलों को शामिल किया गया है, वे परिचितों द्वारा बलात्कार से संबंधित हैं.

Bhasha

एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बलात्कार पीड़िताओं की चिकित्सा जांच स्वास्थ्य मंत्रालय की निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार नहीं की जाती है. अध्ययन में इस तरह की चिकित्सा जांच करने के लिए स्वास्थ्यकर्मियों को उचित ट्रेनिंग करने की मांग की गई है.

यह रिपोर्ट कानून और न्याय मंत्रालय के न्याय विभाग और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की सहायता से गैर सरकारी संगठन 'पार्टनर्स फॉर लॉ इन डेवलपमेंट' ने किया है.


इस रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि कुछ बलात्कार पीड़िताओं को एफआईआर दर्ज कराने में पुलिस के हाथों उत्पीड़न और अवरोध का अनुभव भी करना पड़ा.

रिसर्च के मुताबिक, एफआईआर की कॉपी तुरंत उपलब्ध नहीं कराई जाती है और अक्सर पीड़िताओं को इसकी कॉपी हासिल करने के लिए पुलिस का चक्कर लगाना पड़ता है. हालांकि बाद में ये कॉपी पीड़ितों को भेज दी जाती है.

न कायदे से एफआईआर, न जांच

रिपोर्ट में कहा गया है कि ये स्वास्थ्य जांच स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से निर्धारित दिशा-निर्देशों के हिसाब से नहीं की जाती हैं. इसमें कहा गया है कि औपचारिक तौर पर बलात्कार पीड़िताओं से स्वास्थ्य जांच की सहमति नहीं ली जाती है और अक्सर ही इसके लिए बाद में उनके हस्ताक्षर या अंगूठे के निशान ले लिए जाते हैं.

रिपोर्ट में बलात्कार पीड़िता के केवल उन्हीं कपड़ों को फोरेंसिक जांच के लिए भेजने की सिफारिश की गई है, जोकि उस अपराध से जुड़े हों. इसके अलावा बलात्कार पीड़िता या उसके गवाह और उसके रिश्तेदारों को सुरक्षा प्रदान करने की जरूरत पर जोर दिया गया है.

मुकदमे के दौरान अदालत में लगे कैमरा के माध्यम से अभियोजन पक्ष को अदालत में आरोपी की धमकी से बचाया जाता है. रिपोर्ट में दिल्ली में चार फास्टकोर्ट में चल रहे 16 मामले को शामिल किया गया था. अध्ययन में जिन मामलों को शामिल किया गया है, वे परिचितों द्वारा बलात्कार से संबंधित हैं. रिपोर्ट के अनुसार, भारत और दुनिया भर में होने वाले बलात्कार के अधिकतर मामले इसी श्रेणी में आते हैं.